रिश्ते और फ़रेब का सफ़र

फ़रेब-का-सफ़र

लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि हम आभासी दुनिया के फेर में पड़कर अपनी निजि ज़िंदगी उनके हवाले कर रहे हैं.

अभिलेख द्विवेदी के पास अलग-अलग कहानियां हैं। उनकी हर किताब अपने अंदाज़ में अपनी बात कहती है। विषय भी ऐसा होता है, जिसपर कम लिखा जा रहा है या उस तरह से नहीं लिखा जा रहा। स्नमति पब्लिशर्स से अभिलेख द्विवेदी की किताब आई है -'फ़रेब का सफ़र'। यह नए ज़माने की कहानी है।

रिश्तों की पहेली बहुत ही पेचीदा है। हर रिश्ता अपने साथ कुछ ऐसे रेशों को लपेटकर लाता है, जिनकी गांठ ज़िंदगी भर रह सकती है या कई बार ऐसा होता है कि रिश्तों की डोर बंधने से पहले भी छूट सकती है। रिश्तों में उतार-चढ़ाव और मानसिक दवाब होना लाजिमी है। लेकिन जब रिश्ते इस तरह बनें कि उनका टूटना तय हो या फिर वे चलते-फिरते रिश्ते हों, तो स्थिति अलग समाज को पैदा करती है। सनी नाम के युवा के साथ ऐसा हुआ कि वह अनचाहे बंधनों में खुद को बांधता चला गया और आखिर में वह अकेला पड़ गया। लेकिन क्या वह उसके लिए जिम्मेदार था या कोई दूसरा?

सनी, सोनल, तान्या, रिया और रोहित जैसे पात्र आपके और हमारे बीच रहते हैं। उनके अपने सपने हैं, अपनी ख्वाहिशे हैं, अपनी विवशताएं भी हैं और रिश्तों में सिमटने और न सिमटने की वजहें भी।

आभासी दुनिया किस तरह आज के युवाओं को इस्तेमाल करती है, उसका सबसे बड़ा शिकार सनी बनता है। हालांकि वह जिस डेटिंग एप्प के जरिए अपनी ज़िंदगी को नए आयाम देने की ख्वाहिश रखता है, उसका मालिक उसका दोस्त रोहित है। सनी को यह बात किताब के आखिरी पन्नों में समझ आती है कि उसका इस्तेमाल होता रहा। उसी तरह उसके दोस्तों के साथ भी यही किया जाता रहा। उनकी हर जानकारी को रोहित प्राप्त करता रहा। फिर अपने मुताबिक उनकी ज़िंदगी में खेल करता रहा। एप्प अपडेट के बहाने वह उनकी निजि जानकारियां चुराता रहा। इसका खुलासा उसने कुछ इस तरह किया-'ए.आई. मतलब ​अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे मैं तुम लोगों के मैसेज, कॉल्स, वॉइस् नोट्स और स्क्रीन पर नज़र रखे हुए था। मुझे हर पल तुम लोगों के हर स्टेप्स की खबर रहती थी। ...चूंकि ये एप्प ही डेटिंग बेस्ड है और अगर लोग एक सोलमेट के साथ फिक्स हो जाएंगे तो फिर ऐसे एप्स क्या करेंगे? इसलिए बीच-बीच में मैं बात कर के खबर लेता था और कोई किसी के साथ परमानेंट अटैच्ड ना रहे इसलिए धीरे-धीरे मैंने तुम्हारी लाइफ से सबको निकाला।'

रिश्ते-और-फ़रेब-का-सफ़र

अभिलेख द्विवेदी ने यह बताने की कोशिश की है कि आजकल हम आभासी दुनिया के फेर में पड़कर अपनी निजि ज़िंदगी उनके हवाले कर रहे हैं और जो असली ज़िंदगी है उससे दूर होते जा रहे हैं। रिश्ते असली और नकली दुनिया के बीच झूल रहे हैं। हर काम के लिए ढेरों एप्स हैं। हर किसी की अपनी खूबी है। एक तरह से हम इनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रहे हैं। सनी जैसे नौजवान और उसी तरह किशोर भी जीवन के कीमती समय को कुछ अलग या खुशी के पलों की तलाश करने के कारण अपनी ज़िंदगी से खेल रहे हैं। आभासी दुनिया वाले अपना सामान बेच रहे हैं। वे हमारी भावनाओं से खिलवाड़ कर अपनी जेबे भरने में लगे हैं। हमारे फोन एक तरह से हैक हो गए हैं। हमारा निजि डेटा बेचा जा रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लेकर अलग-अलग टैक-कंपनियां हमें लुभावने ऑफर प्रदान कर रही हैं और हम उनमें फंसते जा रहे हैं।

जिस तरह तकनीक बढ़ रही है, उस तरह हमारे रिश्तों में भी खिंचाव आता जा रहा है। सुबह से शाम तक पैसा कमाने के लिए भागदौड़। इस तरह रिश्ते बनकर भी वक्त की भेंट चढ़ रहे हैं। सनी के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था। वह डेटिंग एप्प के ​जरिए दिल जोड़ने की ख्वाहिश रखता था या वह किसी मित्र के साथ दो पल सुकून के जीना चाहता था। उसका ब्रेकअप हो चुका था। उसके लिए रिश्ते की अहमियत थी मगर वह थोड़ा कन्फयूज़ भी था जैसा अक्सर आजकल के युवा हैं अपनी लाइफ को लेकर। इसे उसकी नासमझी या नादानी भी कह सकते हैं। वह इमोशनल भी था। लेकिन पार्टनरों को बदलने और उनके साथ वक्त बिताने की उसने भी कोशिश की। देखा जाए तो यहां हर कोई अपने फायदे की सोच रहा था। कोई दूध का धुला नहीं था। यानी फ़रेब के सफ़र में सभी शामिल थे। कोई पूरी तरह किसी के प्रति ईमानदार नहीं था।

कुल मिलाकर अभिलेख द्विवेदी ने 'फ़रेब का सफ़र' में आज के ज़माने की कई परतों को उजागर करने की कोशिश की है। किताब शुरु से आखिर तक दिलचस्प है।

फ़रेब का सफ़र 
लेखक : अभिलेख द्विवेदी
प्रकाशक : स्नमति पब्लिशर्स
पृष्ठ : 128
किताब लिंक : https://amzn.to/33VEHat