इलाहाबाद ब्लूज : यादों का एक खूबसूरत बस्ता

इलाहाबाद-ब्लूज

इलाहाबाद को अंजनी कुमार पाण्डेय एक शहर नहीं, बल्कि एक रोमांटिक कविता कहते हैं.

यादों का बस्ता बहुत यादों से भरा होता है। हर याद संजो कर नहीं रखी जा सकती, लेकिन कुछ ऐसी यादें होती हैं, जिन्हें भुलाये भुला नहीं जा सकता। अंजनी कुमार पाण्डेय ने संस्मरण लिखा है जिसमें उन्होंने खुद को, खुद से जुड़े लोगों को, इलाहाबाद के नुक्कड़-गलियों को, अपने संघर्ष को याद किया है। 'इलाहाबाद ब्लूज' एक ऐसी किताब है जिसमें अंजनी ने ईमानदारी से प्रतापगढ़ से, इलाहाबाद से, यूपीएससी के सफर को दर्ज किया है। किताब का प्रकाशन हिन्द युग्म ने किया है।

स्मृतियां, मध्यांतर और वर्तमान में किताब को बांटा गया है। लेखक बचपन के अपने दिनों की कहानी बतानी शुरु करते हैं। इलाहाबाद को अंजनी कुमार पाण्डेय एक शहर नहीं, बल्कि एक रोमांटिक कविता कहते हैं। वे धर्मवीर भारती का जिक्र करते हैं, महादेवी को याद करते हैं और बच्चन, निराला की चर्चा करते हैं। सच में इलाहाबाद एक ऐसा शहर है जिसे पढ़ते जाइए और डूबते जाइए।

इलाहाबाद का पुराना यमुना पुल लेखक को पुराने दिनों की याद दिलाता है। वहीं सिविल लाइंस से यादों का नया कारवां निकल पड़ता है। यूनिवर्सिटी रोड के बारे में लेखक कहते हैं कि चाहे कितनी भी उपमाओं को समेट लिया जाए, यूनिवर्सिटी रोड पर निरंतर फैले जीवन के रंगों को समेटना यकीनन नामुमकिन है। उस रोड को उन्होंने सपनों की रोड कहा है जहां सपने बसते हैं।

अंजनी लिखते हैं : शायद इसी रोड पर चलते हुए धर्मवीर भारती ने गुनाहों का देवता को जिया होगा! शायद यहीं कहीं महादेवी वर्मा ने अपने प्रेम को खोया होगा! शायद यहीं कहीं बच्चन ने प्याले छलकाए होंगे! और शायद यहीं कहीं फिराक गोरखपुरी ने मौसम की शरारत को महसूस किया होगा! इतने महान लोगों को जिसने अपने सीने में जगह दी हो, वह जगह ही कालजयी ग्रंथों की रचना की साक्षी हो सकती है! और यकीनन यह रोड मामूली नहीं हो सकता है!

कुंभ मेला का जिक्र करते हुए गंगा स्नान से कतराने वाले बच्चों की अच्छी चर्चा की है लेखक ने। वह बताते हैं कि बचपन में कोई भी इलाहाबादी बच्चा गंगा स्नान को अपनी मर्जी से नहीं जाता है। लेखक को भी उनके पिताजी हमेशा खींचकर ले जाते थे। कारण भी वाजिब था, ठंड में पारा माइनस में जो चला जाता था। लेकिन यह भी मानते हैं कि संगम में नहाकर उनकी ठंड एकदम भाग जाती थी। 

भगवान शंकर के उस प्रसिद्ध मंदिर का वर्णन उन्होंने बहुत ही सहज तरीके से किया है जिसे मनकामेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यहां विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवा शीश झुकाते हैं और ऐसी मान्यता है कि भोलेनाथ उनकी मुराद पूरी करते हैं। लाखों लोग यहां से शक्ति लेकर लौटते हैं।

अंजनी ने यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज का जिक्र किया है। असली आज़ादी उन्हें यहीं मिली। लेखक कॉलेज दिनों की यादों में मानो खो जाते हैं। वे खुद को साइकिल से कॉलेज जाते हुए देखते हैं। क्लासरुम में बैठे हुए, लिखते-पढ़ते हुए पाते हैं। ​शिक्षकों के पाठ उनके सामने साक्षात् हो रहे हैं। उनकी सीखों को वे आज भी नहीं भूले हैं। लेखक बताते हैं : कॉलेज में देखे हुए सपने बहुत ही हसीन होते हैं। वह दोस्ती भी बेहतरीन होती है जिसमें कुछ भी किसी एक का नहीं होता है। सब कुछ सबका होता है।

किताब में लेखक की एक अधूरी प्रेम कहानी का भी जिक्र है। साथ ही डीबीसी के बारे में जानना भी मजेदार है।

लेखक ने जब पहली बार निर्जीव शरीर को देखा, उन्हें दुख हुआ, आंसू बहे और पहली बार कुछ खोने का अहसास भी हुआ। उनकी दादी मां नहीं रहीं थीं। उनकी चिता जल रही थी जिसे एक बारह साल का मासूम-सा लड़का देखकर भावुक हो रहा था।

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यूपीएससी की तैयारी के लिए इलाहाबाद से दिल्ली जाना और वहां संघर्ष करना बेहद रोचकता से बयान किया गया है। लेखक को लगातार भीतर से यह भी लगता था कि कहीं वे असफल हो गए तो क्या होगा? उनसे परिवार की उम्मीदें जुड़ी थीं और वे खुद भी परीक्षा को पास करने का सपना पाले हुए थे। उन्होंने सफलता और असफलता का स्वाद चखा। दिल्ली ही वह जगह थी जिसने उन्हें मानसिक तौर पर मजबूत किया। दिल्ली ही वह जगह थी जहां से वे जीवन की सच्चाई से रुबरु हुए। कहना गलत न होगा कि दिल्ली से ही उन्होंने असली ज़िंदगी का रोमांच महसूस किया।

यह किताब प्रेरणादायक है। हमें असफलताओं से घबराकर अपने पैरों को कभी पीछे नहीं खींचना चाहिए। क्या हुआ आज सफल नहीं हुए, फिर से कोशिश करते हैं। तब तक कोशिश करते हैं जब तक सफल नहीं हो जाते। यह लड़ाई हमारी अपनी है, जिसे जीतना भी हमें ही है।

एक जगह अंजनी लिखते हैं : अगर आपने संघर्ष किया है और आपको लगता है कि आपको आपकी मेहनत के बराबर फल नहीं मिल रहा है, तो आपको यह जान लेना चाहिए कि अभी मेहनत और बाकी है। आप अभी सर्वोत्तम से दूर हैं। दुख, तकलीफ, त्रासदी, असफलताएं आती रहेंगी, लेकिन ये आपकी तकदीर नहीं बदल सकती हैं। आप जीवन में सर्वोत्तम पाने के हकदार हो और वह आपको मिलकर ही रहेगा। आप बेहतरीन के लिए ही बने हैं। बेहतरीन नौकरी, बेहतरीन जीवन और बेहतरीन जीवनशैली। बेहतरीन बनने का यही एक मौका है। लग जाइए जी-जान से और पा लीजिए वो सब कुछ जिसके लिए आप बने हैं।

लेखक गांव की बात करते हैं, वहां की मिट्टी की बात करते हैं। अपनी मां और दादी की बात करते हैं। इसे पढ़कर भीतर से रिश्तों की गर्माहट का अहसास होने लगता है। अपनों के साथ गुज़ारे पलों को याद करना बहुत सुकून देता है। वे पल लौट कर नहीं आने वाले, यांदे संजोकर उन्हें अंजनी कुमार ने अपने एक खूबसूरत बस्ते में समा लिया है।

मई 2010 में आईएएस एग्जाम का रिजल्ट आया। उन्हें इन्कम टैक्स कैडर मिला। लेखक अपने ट्रेनिंग के दिनों को याद करते हैं। आईआरएस अकादमी के सोलह महीने उनके मुताबिक खुशगवार गुजरे। नौकरी करने के बाद भी इलाहाबाद उनके दिल में बसा है।

'इलाहाबाद ब्लूज' रोचक किताब है। यहां एक व्यक्ति का सफर है, उसकी ज़िंदगी के खट्टे-मीठे किस्से हैं और इलाहाबाद शहर और उसकी यादें। अपनों की बात और उनके साथ बिताए ख़ास पल। 

ऐसी किताबें जीवन के अनुभवों से भरी होती हैं। एक उम्मीद जगाती हैं और ऊर्जा प्रदान करती हैं।

इलाहाबाद ब्लूज
लेखक : अंजनी कुमार पाण्डेय
प्रकाशक : हिन्द युग्म
पृष्ठ : 132
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