कल्कि : दसवें अवतार का उदय

कल्कि-दसवें-अवतार-का-उदय

आशुतोष और अत्रि गर्ग द्वारा लिखी यह पुस्तक, कल्कि और कलियुग के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है.

''मुझे नहीं पता, तीसरे विश्व युद्ध में किन हथियारों का प्रयोग होगा, लेकिन इतना तय है कि चौथा विश्व युद्ध लकड़ियों और पत्थरों से लड़ा जाएगा!''

मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्‍टीन के इस कथन से लगता है, उन्हें अंदाजा था कि तीसरा विश्व युद्ध यदि हुआ तो दुनिया इस हद तक बरबाद हो जाएगी कि मानव सभ्यता लौटकर आरंभिक अवस्था में पहुँच जाएगी, जब इनसान पाषाण युग के आदि मानव की तरह पत्थर व लकड़ी से औजार बनाता था और पशुओं की तरह रहता था। तीसरा विश्व युद्ध अभी तक हुआ नहीं है, लेकिन कई बार लगता है कि वह अधिक दूर भी नहीं है!

इक्कीसवीं शताब्दी के दो दशक बीत चुके हैं और इनसान ने इतनी तरक्की कर ली है कि वह अपने ग्रह के रहस्यों को जान लेने के बाद अब ब्रह्मांड की परतें खोलने को व्याकुल है। विज्ञान ने मनुष्य को पंख दिए, तकनीक ने उनमें साहस भरा और अब हम अपनी प्रतिभा द्वारा संभावनाओं के अनंत आकाश में उड़ान भरने को तैयार हैं। मनुष्य ने विज्ञान और चिकित्सा की सहायता से जीवन को दीर्घायु करने में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। इस सफलता ने इनसान को इतना उत्साहित कर दिया है कि वह प्रयोगशालाओं में नवजीवन तैयार करने की योजनाएँ बना रहा है। लेकिन इस बेमिसाल प्रगति ने इनसान से उसका संतोष छीन लिया है। वह भौतिक चीजों में सुधार करते-करते इतना आगे चला गया है कि नैतिक-अनैतिक का अंतर मिटने को है और अब वह प्रकृति को नियंत्रित करने की कोशिश में लगा है। संक्षेप में कहें तो इनसान, भगवान् की जगह लेना चाहता है!

जीवन को बेहतर बनाने में कुछ बुराई नहीं है। इसके लिए नित नए प्रयोग और परिवर्तन करना आवश्यक है लेकिन प्रगति की राह पर आगे बढ़ता मनुष्य यह भूल चुका है कि उसकी महत्त्वाकांक्षाएँ दिनोंदिन अनियंत्रित और खतरनाक होती जा रही हैं। धन और सत्ता के लोभ में वह हैवान बन गया। उसने सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न किया, प्राकृतिक संसाधनों को दूषित किया, आस्था को हथियार बनाकर लोगों को लड़वाया, मन में एक-दूसरे के प्रति वैर का बीज बोया, आपसी संबंधों को विषाक्त किया, हवा-पानी में प्रदूषण का जहर घोला, विध्वंसक हथियार बनाए और समाज में भोग व सुविधाओं का ऐसा जानलेवा तंत्र तैयार कर दिया, जिसमें वर्तमान पीढ़ी मकड़ी के जाल में फँसे कीड़े की तरह बेबस होकर छटपटा रही है।

आशुतोष गर्ग/अत्रि गर्ग

हमें याद रखना होगा कि यह सृष्टि मनुष्य के बनाए हुए नियमों से नहीं, बल्कि प्रकृति और ईश्वर के सिद्धांतों के अनुसार चलती है। भगवान् ने बड़े प्रेम और आत्मीयता से इस संसार की रचना की है। इसलिए वे अपनी बनाई इस अनुपम कृति को ज्यादा समय तक विकृत अवस्था में नहीं देख सकते। मनुष्य जब स्वार्थ और अहंकार के चलते अव्यवस्था और असंतुलन को लगातार बढ़ावा देता है तो ईश्वर को इस सुंदर कृति की रक्षा के लिए स्वयं धरती पर आना पड़ता है। इसी प्रक्रिया को ईश्वर का ‘अवतार’ लेना कहते हैं। विभिन्न धर्म-ग्रंथों में ईश्वर के अनेक अवतारों का उल्लेख है। इनकी संख्या और नामों को लेकर भी कई मत हैं। परंतु यह हमारी चर्चा का विषय नहीं है। हमारा ध्यान इस बात पर है कि ईश्वर को अवतार लेने की जरूरत कब और क्यों पड़ती है।

कुछ लोगों का मानना है कि सृष्टि के विनाश का समय निकट आता है तो ईश्वर अवतार लेते हैं और प्रलय आती है। कुछ कहते हैं कि अवतार का उद्देश्य अधर्म का अंत करके पृथ्वी पर धर्म की पुनर्स्थापना करना है। ईश्वर के अवतार और उसके उद्देश्यों से जुड़ी इन बातों में कितना सत्य है, इस पर प्रामाणिक टिप्पणी करने की समझ, सच कहा जाए तो मनुष्य को बिल्कुल नहीं है। लेकिन इतना तय है कि कोई रचनाकार अपनी एक साधारण-सी कृति को भी जल्दी से मिटाने के बारे में नहीं सोचता। इस दृष्टि से यह तर्क उचित नहीं लगता कि संसार का सर्वश्रेष्ठ रचनाकार, यानी भगवान् अपने ही बनाए अद्भुत और अनूठे संसार को नष्ट करने या उसे मिटाने के लिए धरती पर जन्म लेता होगा! हमारे विचार से इसका अवश्य कुछ और प्रयोजन होना चाहिए। फिर, यदि प्रलय और विनाश नहीं, तो आखिर ईश्वर के अवतार का वास्तविक उद्देश्य क्या है? वह लोगों को क्या संदेश देना चाहता है?

विभिन्न पौराणिक ग्रंथों के विश्लेषण से लगता है कि ईश्वर का उद्देश्य संसार को नष्ट करना या जीव-जगत् का अंत करना नहीं, अपितु समाज में व्याप्त असंतुलन और अव्यवस्था को दूर करना है। इस दौरान समाज के विभिन्न स्तरों पर गड़बड़ी फैलानेवाले तत्त्वों का अंत होना स्वाभाविक है, क्योंकि संतुलन और सुशासन कायम करने के लिए यह जरूरी है। इस कार्य को पूरा करने के लिए भगवान् कर्म के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए अपनी लीला को बड़ी कुशलता से कार्यान्वित करते हैं लेकिन मनुष्य इस लीला को समझ नहीं पाता और वह इसे ‘प्रभु की माया’ कहकर चुपचाप स्वीकार कर लेता है।

हिंदू धर्म-ग्रंथों में भगवान् विष्णु के दस अवतार बताए गए हैं, जिनमें से नौ अवतारों के विषय में हम जानते हैं। विष्णु के दसवें अवतार ‘कल्कि’ के विषय में जानना अभी बाकी है। क्या विष्णु का दसवाँ अवतार ‘कल्कि’ जन्म ले चुका है? क्या कलियुगी इनसान को सबक सिखाने आए कल्कि का काम केवल तीर व तलवार से चल जाएगा या उसके पास भी अलग तरह की शक्तियाँ हैं? बीते सौ वर्षों में मनुष्य द्वारा उत्पन्न अव्यवस्था को फिर से चुस्त-दुरुस्त करने के लिए कल्कि ने किसे अपना हथियार बनाया है? क्या अतीत में हुए युद्ध, मनुष्य द्वारा फैलाई अराजकता और असंतुलन का मौजूदा समस्याओं एवं विनाशकारी घटनाओं से कोई संबंध है? यदि हाँ, तो कल्कि की इसमें क्या भूमिका होगी? और आधुनिक संदर्भ में अधर्म के नाश एवं धर्म की पुनर्स्थापना से वास्तविक आशय क्या है? इस पुस्तक में भगवान् के दसवें अवतार और मनुष्य की विध्वंसक गतिविधियों से उत्पन्न संकट से जुड़े इन्हीं कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास किया गया है।

विश्व-इतिहास, साइंस फिक्शन, जीवन-दर्शन और पौराणिक पृष्ठभूमि को आपस में गूँथती यह पुस्तक, हिंदी लेखन में अपने ढंग का पहला और अनूठा प्रयोग है। प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) से आरंभ करके मौजूदा पैंडेमिक (वैश्विक महामारी‌) और फिर भविष्य की आशंकाओं तक लगभग एक शताब्दी का सफर तय करती यह पुस्तक, चार पीढ़ियों की एक रोमांचक काल्पनिक कहानी है। यह कथा विष्णु के दसवें अवतार ‘कल्कि’ को केंद्र में रखकर अंतरराष्ट्रीय इतिहास की रक्त-रंजित गलियों से होती ‘म्यूविड-20’ नाम की एक खतरनाक पैंडेमिक के त्रासदी भरे संसार में प्रवेश कर जाती है। यह पुस्तक ईश्वरीय अवतार की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ महामारियों को नए सिरे से देखने-समझने की दृष्टि भी देती है।

~आशुतोष गर्ग / अत्रि गर्ग.

कल्कि : दसवें अवतार का उदय
लेखक : आशुतोष गर्ग/अत्रि गर्ग
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 160
किताब लिंक : https://amzn.to/39RD9Br