पलायन . पीड़ा . प्रेरणा : कोरोना काल की 50 सच्ची घटनाएँ

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यह किताब चर्चित किताबों में शामिल है. यह लॉकडाउन के पलायन से लेकर प्रेरणादायक कहानियों को संजोए हुए है.

कोरोना महामारी की वजह से बीता साल त्रासदी की तरह बीता है। यही हाल इस बार भी हो रहा है। कोरोना संक्रमण का ग्राफ फिर से बढ़ने लगा है। माना जा रहा है इस बार वायरस का हमला पहले से घातक है। महानगरों से पलायन का सिलसिला फिर शुरु हो गया है। खबरें और तस्वीरें डरावनी हैं।

मयंक पाण्डेय ने बीते साल की भयावह तस्वीर को देखा। उन्होंने ऐसी 50 घटनाओं को अपने संकलन 'पलायन, पीड़ा, प्रेरणा' में दर्ज किया है। मयंक पाण्डेय सूरत में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं। यह किताब उनका पहला प्रयास है। इसका प्रकाशन प्रलेक प्रकाशन ने किया है।

2020 वह साल रहा जिसने मानव इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। हमारे जीने के तरीके को बदल कर रख दिया। हमें असहाय बना दिया। जिसकी कल्पना नहीं की थी, वह हो गया। सबसे अधिक असर हुआ उन लोगों पर जो गरीब हैं, मजदूर हैं और जिनके पास आसरा नहीं। पिछले साल जब लॉकडाउन घोषित किया गया तो शहरों में रहकर अपना पेट पालने वाले मजदूर घरों को लौटने लगे। हजारों किलोमीटर का सफर तय करने को मजबूर हुए। उन्हें पैदल, नंगे पैर तक यह कठोर यात्रा करनी पड़ी। जगह-जगह बाधायें आयीं। उन्हें भूखे-प्यासे अपने परिवार के साथ संघर्ष करना पड़ा। बहुत-से परिवार तबाह हो गए। घर पहुंचने से पहले बहुत लोगों ने दम तोड़ दिया। महिलाओं ने अपने पति खोए, बच्चे अनाथ हुए। इसी बीच ऐसे लोग मसीहा बनकर भी आए जिन्होंने ज़िंदगी की कीमत को पहचाना और इंसानियत का फर्ज निभाया। इस किताब में उनकी कहानियां भी हैं। ऐसे लोगों में अलग-अलग समाज, धर्मों और पुलिस-प्रशासन के लोग भी शामिल थे। ऐसे लोग समाज को प्रेरणा देने का कार्य कर रहे हैं।

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मयंक पाण्डेय ने दरभंगा की 13 साल की ज्योति पासवान की कहानी को भी लिखा है। ज्योति अपने घायल पिता के लिए श्रवणकुमार बनी। पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा लायी। लंबा और संघर्षभरा सफर उसने 8 दिन में पूरा किया। विश्वभर में उसके इस साहस भरे कार्य की सराहना हुई और वह महिला सशक्तिकरण की बेहतरीन मिसाल बनी।

राजस्थान के सीकर जिले में जब 54 मजदूरों को एक स्कूल में क्वारंटाइन किया गया तो उन्होंने उस दौरान एक अद्भुत कार्य किया। ​वहां के सरपंच और अन्य गांव वालों ने मजदूरों के लिए खान-पान आदि की इतनी अच्छी व्यवस्था की कि उन्होंने इसके बदले श्रमदान करने का संकल्प लिया और जिस स्कूल में वे ठहरे हुए थे उसकी काया ही पलट दी। उन्होंने 14 दिनों में पुराने भवन को रंग-रोगन कर नया बना दिया। लेखक के शब्दों में : स्कूल की दीवारों पर इंद्रधनुषी रंग बिखरा कर मजदूरों ने कई सारे बच्चों के भविष्य का निर्माणकर्ता विद्यालय साफ-सुथरा और जगमगाता कर दिया। जिन दीवारों पर काई जमीं थी वहां फूलों पर मंडराती तितलियों के चित्र बने।'

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किताब में कुछ ऐसी घटनाएं भी दर्ज की गयी हैं जिन्हें पढ़कर दिल दहल जाता है। कहीं कोई मासूम अपनी मां के शव पर ढकी चादर से लुकाछुपी करता है, कहीं कोई मां अपने बच्चों को सही-सलामत गांव तक ले आयी और दम तोड़ दिया।

एक सांस क्या, अरविना ने अपनी सारी सांसें बेटे रहमत और अरमान पर कुर्बान कर दीं। जिंदगी रहते उन्हें दुनिया के थपेड़ों से बचाती ये मां अपने गांव तक ले आयी और मरी तो ऐसे की सारी दुनिया ने आंसू बहाये।

जिलाधिकारी कंवल तनुज ने कहा -'आज जब मैं छोटे रहमत की नानी को जमीन का पट्टा और सहायता राशि का चेक दे रहा था तो छोटे रहमत ने हाथ आगे बढ़ा कर उसको खुद लेने का प्रयास किया। ऐसा लगा मेरे हृदय की सारी भावनाएं मेरी आंखों से बह निकलीं, छोटे रहमत हम लोग कौन होते हैं तुमको कुछ देने वाले, तुम्हारी सहायता ईश्वर करेंगे और सदैव करेंगे। हम सभी का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ रहेगा।'

लेखक ने अमनप्रीत पासी, विकास खन्ना और सोनू सूद जैसे लोगों के प्रयासों की सराहना करते हुए उनकी विस्तार से चर्चा की है। दिल्ली की ज्वाइंट कमिश्नर अमनप्रीत ने पैडवूमन की सफल भूमिका निभाई। वहीं मेघा और रुपल भार्गव, करुणा और वैभव जैन के द्वारा किए कार्यों को भी लिखा है।

मयंक पाण्डेय की यह किताब चर्चित किताबों में शामिल है। यह किताब लॉकडाउन के पलायन से लेकर प्रेरणादायक कहानियों को संजोए हुए है। लेखक का यह सफल प्रयास है।

पलायन . पीड़ा . प्रेरणा : कोरोना काल की 50 सच्ची घटनाएँ
लेखक : मयंक पाण्डेय
प्रकाशक : प्रलेक प्रकाशन
पृष्ठ : 295
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