स्वामी जी आईआईएम और आईआईटी के छात्र रहे हैं। वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं तर्क के आधार पर आत्मसुधार की बात करते हैं.
स्वामी मुकुंदानंद ने अपनी किताब 'सफलता, प्रसन्नता व संतुष्टि के लिए 7 मानसिकताएँ' में लाभदायक मानसिकता को पैदा करने के जितने तरीके बताए हैं, उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। स्वामी जी ने अलग-अलग उदाहरणों के जरिए सकारात्मक उर्जा का संचार किया है।
इस किताब का प्रकाशन मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने किया है। हिन्दी अनुवाद रचना भोला 'यामिनी' द्वारा किया गया है।
स्वामी जी आईआईएम और आईआईटी के छात्र रहे हैं। वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं तर्क के आधार पर आत्मसुधार की बात करते हैं। वे वैदिक ग्रंथों के भी अच्छे जानकार हैं।
मुकुंदानंद के अनुसार उचित मानसिकता सफल लोगों की कुंजी होती है। उन्होंने सबसे पहले बिजली के बल्ब के आविष्कारक थॉमस एल्वा एडिसन का उदाहरण दिया है। जब एडिसन बिजली बल्ब का आविष्कार कर रहे थे, तो वे 3999 बार असफल हुए। इसपर एक पत्रकार ने उनसे पूछा,'आपको इस बात का अफसोस नहीं कि आप लगातार अपने प्रयासों में असफल हो रहे हैं?' उन्होंने उत्तर दिया,'मैं 3999 बार असफल नहीं हुआ, मैंने केवल उन 3999 तरीकों को मिटाया, जिनसे बिजली का बल्ब नहीं बन सकता।' थॉमस एडिसन ने चार हजारवीं बार में जाकर अपने आविष्कार में सफलता हासिल की थी।
पुस्तक में सात तरह की मानसिकताओं का वर्णन किया गया है। ये हैं :
1. सकारात्मक सोच की मानसिकता
2. अपने भावों का उत्तदायित्व लेने की मानसिकता
3. प्रेरणा की मानसिकता
4. अभिप्राय की शुद्धि की मानसिकता
5. ज्ञान को विकसित करने की मानसिकता
6. अनुशासन की मानसिकता
7. समस्याओं के बीच फलने-फूलने की मानिसकता
किताब में एक बात बहुत अच्छी कही गई है कि समस्या संसार में नहीं है, हमारी मानसिकता में है। मतलब यह है कि हम अपनी हर परेशानी के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता है। समस्याओं के लिए परिस्थितियां जिम्मेदार नहीं होतीं। हम उन्हें किस तरह देखते हैं। किस तरह उसका प्रभाव हम पर होता है। लेखक के अनुसार संसार को ईश्वर ने रचा है, वह संपूर्ण है और कृपालु भी।
यह पुस्तक हमें अपने भावों के प्रबंधन की कला सीखने में मदद करती है। यह हमारी मानसिकता को बेहतर करने के तरीके बताती है ताकि हमारा जीवन प्रसन्न और उन्नत हो सके।
सकारात्मक मानसिकता के विषय में चर्चा करते हुए स्वामी मुकुंदानंद कहते हैं कि यह खुशहाली लाती है। प्रसन्नता को खोजने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। वह तो हमारे भीतर ही है। मन को प्रसन्न रखना बेहद जरुरी है। मन प्रसन्न है, तो तन भी प्रसन्न होगा। ऐसा होगा तो तनाव नहीं होगा। शरीर निरोग रहेगा और उसका जीवन अच्छी तरह बीतेगा। वह जल्दी बूढ़ा नहीं होगा और लंबा जियेगा। तनाव की वजह से मधुमेह, रक्तचाप का बढ़ना, हृदय रोग आदि अलग-अलग तरह की बीमारियां घेर सकती हैं। लेखक ने वैज्ञानिक शोध के हवाले से बताया है कि तनाव की वजह से रोग-प्रतिरोधक तंत्र दवाब महसूस करता है। इससे बैक्टीरिया संक्रमण और वायरस का खतरा बढ़ जाता है। यानी तनाव हमें सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। यही वजह है कि स्वामी जी ने मन और विचारों को सकरात्मक करने की प्रेरणा दी है।
वे कहते हैं : तनाव तब पैदा होता है, जब हम किसी निश्चित परिणाम से जुड़ाव महसूस करते हैं, और हमें चिंता सताने लगती है कि शायद नतीजे हमारी पसंद के हिसाब से नहीं हों। उन्होंने तनाव के निदान के लिए उपाय भी बताए हैं।
स्वामी मुकुंदानंद एक जगह लिखते हैं : जीवन हमेशा हमें चॉकलेट या केक नहीं परोसता। यह हमें कई बार नींबू भी खिलाना चाहता है यानी जीवन में सुख और दुख दोनों ही आते हैं। परंतु वे नींबू हमारे दांत खट्टे करेंगे या वे हमारे लिए शिकंजी बनेंगे? यह पूरी तरह से हमारे भावों के प्रबंधन की योग्यता पर निर्भर करता है।
किताब में उन लोगों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई जो बार-बार कहते हैं कि यह तो ईश्वर की मर्जी थी और गलतियां करते रहते हैं। इसके लिए पुस्तक में स्वामी जी लिखते हैं : एक व्यक्ति प्रह्लाद की तरह संत है, तो दूसरा हिण्यकश्यप जैसा राक्षस है। यह विविधता इस बात की सूचक है कि हमारे पास अपने ही विचारों व कर्मों के चुनाव की स्वतंत्रता है। ईश्वर नहीं, केवल हम ही उनके लिए उत्तरदायी हैं।
स्वामी मुकुंदानंद भाग्य को जानने के बजाए उसे किस तरह बनाया जा सकता है, उसपर चर्चा करते हुए कहते हैं कि अपने भाग्य के बारे में जानने से कोई लाभ नहीं है। केवल वर्तमान ही हमारे हाथ में है। हम अपने पुरुषार्थ और स्वतंत्र इच्छा के बल पर अपने भविष्य को बदलने की क्षमता रखते हैं। ज्योतिष के अध्ययन में समस्या यही है कि यह हमें भाग्यवादी बनाता है। हम अपने ही प्रयत्नों पर केंद्रित नहीं रह पाते।
उन्होंने महान कालिदास का उदाहरण देते हुए बताया है कि यह पुरुषार्थ का फल है जिसने एक जड़ मूर्ख को परम ज्ञानी और महाकवि बना दिया। यदि कालिदास ने ईश्वर की इच्छा या फिर अपनी शिक्षा के अभाव को बहाना बनाया होता, तो वे अपने जीवन के रुपांतरण के लिए प्रयत्न कभी नहीं कर पाते।
प्रेरणा की मानसिकता पर चर्चा करते हुए स्वामी जी लिखते हैं कि प्रेरणा हमारे भीतर ऊर्जा का संचार करती है। यह वह ईंधन है, जो हमारे प्रयासों को सशक्त करते हुए, भौतिक व आध्यात्मिक सफलता के शिखर को उन्नत करता है। यह हमारे विचारों को गहराई देता है, और प्रयत्नों की गुणवत्ता को निखारता है।
पुस्तक में कार्पोरेशनों में काम करने वाले लोगों के उत्साह में नकारात्मकता के कारणों पर भी लिखा गया है। यहां 11 कारणों के बारे में बताया गया है जिनमें असफलता का भय, दिशा का अभाव, गुणवत्ता के बुरे मापदंड, अन्यायपूर्ण व्यवहार, निर्देशों को बार-बार बदलना आदि शामिल हैं। फिर किताब हमें प्रेरित होने के तरीके भी बेहद सरल भाषा में बताती है।
स्वामी जी ने जीवन में सफलता को परखने के तीन पैमानों पर भी विस्तार से चर्चा की है। जीवन में सफलता पाने का अर्थ है, अच्छे बनें, अच्छे काम करें और अच्छा महसूस करें।
अभिप्राय की शुद्धता कर्म योग के अभ्यास में छिपी है। इसमें हम सब कुछ ईश्वर के आनंद के लिए करते हैं। यह हमें आंतरिक रुप से अपना मानसिक समत्व बनाए रखने में सहायक होता है, और बाहरी तौर पर सभी प्रकार के कठिन काम पूरे करने में मदद मिलती है।
किताब में ज्ञान को विकसित करने की मानसिकता पर विस्तार से चर्चा करते हुए आत्म-ज्ञान, सत्य की खोज, वैज्ञानिक ज्ञान की सीमाएं, आध्यात्मिक पथ पर ज्ञान के महत्व और उसे पाने के उपाय पर लिखा है।
साथ ही अनुशासन की मानसिकता और समस्याओं के बीच फलने-फूलने की मानसिकता पर भी चर्चा की गई है। कुल मिलाकर यह पुस्तक जीवन के प्रति हमारा एक सकरात्मक नजरिया उत्पन्न करती है। यह हमें आध्यामिकता के मार्ग पर ले जाते हुए वैज्ञानिक व तर्क के साथ आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। यह किताब विचारों की शुद्धि करते हुए बेहतर मनुष्य से एक उन्नत समाज बनाने की प्रेरणा देती है। इसमें सरल भाषा में आसान तरीके बताए गये हैं जिनसे हम जीवन में नकारात्मकता का त्याग कर सकारात्मकता ला सकते हैं।
सफलता, प्रसन्नता व संतुष्टि पाने के लिए यह पुस्तक एक अच्छा प्रयास है।