रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथा

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जीवन में विभिन्न उतार-चढ़ाव पार करने वाले रामानंद सागर की कहानी कई अहम खुलासे भी करती है.

25 जनवरी, 1987 को ‘रामायण’ के पहले एपिसोड के प्रसारण के साथ ही भारतीय टेलीविजन हमेशा-हमेशा के लिए बदल गया। कुछ ही सप्ताह में पूरा देश इस सीरीज के आकर्षण में बँध गया। ‘रामायण’ के प्रसारण के दौरान सड़कें सूनी हो जाती थीं। सीरियल के समय पर न तो शादियाँ रखी जाती थीं, न राजनीतिक रैलियाँ। आज तीन दशक बाद भी ऐसा कुछ नहीं जो उसका मुकाबला कर सके। इस अद्भुत घटना के सूत्रधार और बॉम्बे के सफल फिल्म निर्माता रामानंद सागर टेलीविजन की बेहिसाब क्षमता को पहचानने वाले कुछ प्रारंभिक लोगों में शामिल थे।

पहली बार उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा राज कपूर की ‘बरसात’ (1949) के लेखक के रूप में मनवाया था। सन् 1961 से 1970 के दौरान सागर ने लगातार छह सिल्वर जुबली हिट्स लिखीं, प्रोड्यूस और डायरेक्ट कीं—‘घूँघट’, ‘जिंदगी’, ‘आरजू’, ‘आँखें’, ‘गीत’ और ‘ललकार’। ‘रामानंद सागर के जीवन की अकथ कहानी’, उनके पुत्र प्रेम सागर की लिखी पुस्तक है, जो एक पुरस्कृत सिनेमेटोग्राफर हैं।

यह पुस्तक एक दूरदर्शी के जीवन पर गहराई से नजर डालती है। इसमें 1917 में कश्मीर में सागर के जन्म और फिर 1947 में जब पाकिस्तानी कबाइलियों ने राज्य पर हमला किया तो किसी प्रकार वहाँ से बचकर निकलने से लेकर उनके बॉम्बे आने और उनके गौरवशाली करियर का वर्णन है, जिसके सिर पर कामयाबी के ताज के रूप में ‘रामायण’ धारावाहिक की ऐतिहासिक सफलता सजी है।

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क्या पापाजी की जीवन-यात्रा के भावुक गुप्त सत्य उजागर करना उचित होगा, चाहे वे राजनीतिक, व्यक्तिगत या चमत्कारिक पहलू हों, और पौराणिक टी.वी. सीरियल ‘रामायण’ के निर्माण से संबंधित हों; जो नियत ही था और यह लगभग 1942 के प्रारंभ में स्पष्ट भी हो गया था।

मैं आश्वस्त नहीं हूँ कि जीवनी श्रद्धांजलि के रूप में पापाजी, मेरे आदरणीय पिता रामानंद सागर के वे वृत्तांत लिख सकूँगा; जिन पर मेरे पुत्र शिव सागर ने गहन शोध किया है।

विभिन्न युगों, विभिन्न कालक्रम, युगांतरों में महानतम भारतीय महाकाव्य ‘रामायण’ का उपदेश मानवजाति के लिए भगवान् शिव ने माँ पार्वती को बताया था, काकभुशुंडी ने गुप्त रूप से सुना था, जिसे ब्रह्मर्षि वाल्मीकि ने काव्य रूप में प्रस्तुत किया; संत तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिपिबद्ध किया था। इस कलयुग में, दुर्वृत्ति के युग में, पतन के युग में, हितैषी और कृपालु श्रीराम का संदेश पुनर्जीवित करने और मानवजाति तक शताब्दी के सर्वाधिक शक्तिशाली माध्यम ‘दूरदर्शन’ द्वारा पहुँचाने के लिए महर्षि को धरती लोक पर भेजा गया था, संभवतः इसी के लिए पापाजी का जन्म हुआ था।

पत्रकारिता, लघु और लंबी कहानियों, मंचीय नाटक, पुस्तकों के लेखन और घूँघट, जिंदगी, आरजू, आँखें, गीत, ललकार, चरस और बगावत जैसी अत्यधिक सफल 29 फिल्मों में संवाद, कहानी या पटकथा लेखन, निर्माण; केवल ‘रामायण’ की जागीर को 65001 लाख दर्शकों तक पहुँचाने की ओर एक कदम था। विश्व स्तर पर असंख्य लोगों तक पहुँचने और दैविक पुनर्जीवन के लिए महर्षि डॉ. रामानंद सागर ने सिनेमा और टी.वी. की दक्षता अर्जित की थी। स्वयं को एक संदेश वाहक कहनेवाले आ चुके थे।

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हम सभी भाइयों सुभाष, आनंद, मुझे, मोती, पौत्र ज्योति को, उनकी सहायता करने के लिए धरती पर भेजा गया था; जैसे मानव के लिए मौलिक मर्यादा और धर्म की स्थापना करने में श्रीराम की सहायता करने के लिए बंदर और भालू के रूप में देवतागण को धरती पर भेजा गया था। निर्माण-कार्य सुभाष ने देखा, निर्देशन और संपादन का दायित्व आनंद और मोती का था, कैमरा संचालन, तकनीकी और मार्केटिंग की जिम्मेदारी मेरी थी।

केवल दो घंटे के लिए उन्हीं की आवाज में उनकी जीवनी रिकॉर्ड करने के लिए मुझे दो साल तक उनके पीछे लगे रहना पड़ा था। मेरे साथ अपने निजी क्षणों में, देर रात को अपने शयनकक्ष में, वे अपनी आहत आत्मा से लोहे की चादर हटाते थे, और मैं वे सब घटनाएँ लिख लिया करता था; वही सब इस जीवनी-श्रद्धांजलि के रूप में इन यादों का आधार बन गई हैं। वे अपना दुःख-दर्द किसी को बताना नहीं चाहते थे। मुझे चुना गया। मुझे लगता है कि सभी बच्चों में मैं ही उनके बहुत करीब था। मैंने भक्तिभाव से उनकी सेवा की, लेकिन ‘पितृऋण’ कभी चुकाया नहीं जा सकता है। रात में उनके पाँव दबाते हुए, उनके सो जाने से पहले कभी नहीं सोया; अपने परिवार और जीवनसंगिनी नीलम की अनदेखी भी की, यह मेरा धर्म था और उनकी कृपा थी कि मुझे उनके कमल-चरणों में स्थान मिला।

प्रश्न अब भी यही है कि क्या मेरे पिता ने मुझे उनके निजी जीवन में झाँकने की इतनी अनुमति दी थी कि मैं उनके चाहने वालों और भक्तों को, एक धर्म प्रचारक ऋषि के प्रेरक जीवन की यात्रा के बारे में बता सकूँ? राजकुमार से गरीब, गरीब से महर्षि; महर्षि से टी.वी. सीरियल ‘रामायण’ और ‘श्रीकृष्ण’ के निर्माता तक, उनका प्रेरणादायक जीवन।

इस दैविक योजना या आध्यात्मिक योजना और महामाया के अथाह समुद्र में, मैं एक अणु भी नहीं हूँ। मैं कोई लेखक नहीं हूँ और न ही मेरी इतनी सामर्थ्य है, पापाजी के जीवन, जीवनकाल, उनके कार्य और उद्देश्य के बारे में कुछ कहने की।

~प्रेम सागर.

रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथा
लेखक : प्रेम सागर
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन 
पृष्ठ : 348
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