मैं तुम्हारी कोशी : एक अंग्रेज़ की आदिवासी पत्नी की आत्मकथा

मैं-तुम्हारी-कोशी

एक अनपढ़ आदिवासी महिला की कई साल पुरानी कहानी कहने के लिये प्रवीण ने आत्मकथात्मक तरीका अपनाया है.

'मैं तुम्हारी कोशी' आदिवासी समाज के एक ऐसे अनछुए विषय पर गहराई से लिखी किताब है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह मध्यप्रदेश के मंडला डिंडौरी जिले के एक गांव की सच्ची कहानी है जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्व अधेड़ अंग्रेज आदिवासी राज गोंड कन्या से शादी करता है। देश-दुनिया में वाह-वाही पाता है। उसे सब्जेक्ट समझ कर व्यवहार करता है और कुछ साल बाद उसे तलाक देकर छोड़ जाता है। यह कहानी है उस कोशी की जिसे मशहूर मानव विज्ञानी वेरियर एलविन ने ब्याहा और बाद में छोड़ दिया। 

एलविन के रूतबे का अंदाजा यह था कि मिशनरी होने के बावजूद 1927 में जब वो भारत आये तो गांधी, नेहरू और जमनालाल बजाज के करीबी थे। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा के पास के मंडला डिंडोरी जिलों में मिशनरी के तौर पर स्कूल और अस्पताल खोले मगर असल काम उनका आदिवासियों की परंपराओं को करीब से जानना और उनपर लिखना था। इसी बीच रैथवार गांव की तेरह साल की कन्या कोशी बाई पर रीझ कर उससे शादी करते हैं और एक-दो साल में ही उससे दूर होकर कोई दूसरा साथी खोजते हैं। गांव में गुजर करने वाली अकेली कोशी को नौ साल बाद आधिकारिक तौर पर तलाक देकर किनारा कर लेते हैं। इस सपने-सी शादी वाली कहानी पर किसी ने इतने विस्तार से नहीं लिखा। 

पहले अखबार और अब टेलीविजन में काम कर रहे प्रवीण दुबे ने बडी मेहनत और शोध के बाद यह कहानी सामने लाए हैं। प्रवीण का यह पहला उपन्यास है जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है। एकदम नयी आत्मकथात्मक शैली में इसे लिखा है। फिर चाहे वो कोशी के मन के भाव हों या वेरियर एल्विन की मानसिक उलझन, दोनों पात्रों को आत्मकथात्मक तरीके से बात करते हुए कहानी आगे बढ़ायी है।

इस उपन्यास में सपनों के टूटने की कथा तो है ही, किसी अंतरराष्ट्रीय विद्वान के चेहरे पर से नकाब उतारने की कोशिश भी है। प्रवीण ने किताब का नाम ही 'मैं तुम्हारी कोशी : एक अय्याश अंग्रेज का रैंडम सैंपल' रखा है। मुझे थोड़ी हैरानी है कि किताब के शीर्षक में ही कहानी के महत्वपूर्ण पात्र के लिए अय्याश सरीखे शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे बचा जा सकता था। 

एक अनपढ़ आदिवासी महिला की कई साल पुरानी कहानी कहने के लिये प्रवीण ने आत्मकथात्मक तरीका अपनाया है। जिसमें कोशी अपनी पुरानी यादों में खोकर सारी बातें कहती है। उसके लिए वेरियर एलविन से शादी किसी सपने से कम नहीं थी मगर शायद इस शादी का मकसद दूसरा था। इसलिए यह रिश्ता हिचकोले खाते हुए चलता रहा और कोशी दो बच्चों की मां बन गयी। अपनी मौत तक कोशी समझ नहीं पायी कि यह शादी आखिर क्या थी। प्रेम, प्यार, वासना या फिर आदिवासियों की यौन आदतों को समझने के लिये वैरियर का शादी के नाम पर रचा गया प्रपंच। हांलाकि शुरूआती दौर में वेरियर भी उलझन में रहे मगर वो जल्दी ही उबर गये और एक दूसरी आदिवासी महिला से शादी कर कोशी को भुला बैठे।

हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की करीबी पाने के लिए वेरियर ने अपने बड़े बेटे का नाम जवाहर ही रखा और अपनी गर्भवती पत्नी को जवाहर से मिलवाया भी। ये कुछ ऐसी बातें हैं जो पहले सामने नहीं आयीं और प्रवीण ने उन्हें अच्छे तरीके से गुंथा है। प्रवीण का यह पहला उपन्यास है। इसलिए कुछ बातें कहना चाहूंगा कि उनकी भाषा बहुत सधी हुई है। उनके पास अच्छी हिंदी के शब्द हैं, मगर ये शब्द कोशी के मुंह से सुनकर थोड़े खटकते हैं। वो तो आदिवासी महिला है। सामान्य हिंदी तो बोल लेगी मगर त्याज्य, दरयाफत, मुल्तवी और काफूर सरीखे शब्द उपन्यास में उस कैरेक्टर में उतरने से पाठक को रोकते दिखते हैं। उपन्यास और अच्छे से बुना जा सकता था यदि उसे सीधा उपन्यास की शैली में ही लिखा जाता, तो ज्यादा प्रवाह और पकड़ आती क्योंकि प्रवीण के पास वो लेखन शैली है।

इस उपन्यास में कोशी और ऐलविन के बहाने देह की भाषा और व्यवहार पर लंबा लिखा गया है और इस लेखन ने प्रवीण ने अपनी छाप छोड़ी है। एक बार में बैठ कर पढ़ा जाने वाला उपन्यास जिसके बहाने अंग्रेज विद्वान की एक छिपी हुई जिंदगी का काला पहलू भी सामने आता है। अंजान कोशी को दुनिया से मिलवाने के लिये लेखक को बधाई।

~ब्रजेश राजपूत.

(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं.)

(वेरियर एलविन ने कई किताबें लिखी हैं। उन्हें पद्मभूषण भी मिला है। अमेज़न पर उनकी किताबों की सूची देखें : https://amzn.to/3qm6Vnf)

मैं तुम्हारी कोशी
लेखक : प्रवीण दुबे
प्रकाशक : प्रलेक प्रकाशन
पृष्ठ : 150
किताब लिंक : https://amzn.to/3v0EEGu