Best Books : संस्कृति, संघ और कोविड-19 पर ख़ास किताबें

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प्रभात प्रकाशन ने कुछ ख़ास किताबें प्रकाशित की हैं जिनमें रंगाहरि की 'सुधा वाणी सुधी वाणी', सिद्धार्थ शंकर गौतम की 'स्वराज का शंघनाद' और सुनील आंबेकर की 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' शामिल हैं। साथ ही 'कोविड 19 : वैश्विक महामारी' तथा 'कोरोनानामा' को प्रकाशित किया है। 

सुधा-वाणी-सुधी-वाणी

सुधा वाणी सुधी वाणी :

समाज में सुसंस्कार, नैतिकता व उच्च जीवन-मूल्यों की स्थापनार्थ सुभाषित अत्यंत प्रभावी साधन हैं। सुभाषितों का उपयोग वेद काल से होता आया है। वेदों में प्रचुर संख्या में सुभाषित संकलित हैं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं पर संस्कारों के संवहन हेतु दैनंदिन सुभाषितों का उपयोग किया जाता है। देश-प्रेम, समाज-हित, धर्म अर्थात् कर्तव्यपरायणता और राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पण की प्रेरणा देनेवाले संस्कृत सुभाषित, महापुरुषों के अमृत वचन एवं प्रेरणादायी गीत संघ के नियमित बौद्धिक कार्यक्रमों के प्राण हैं। ऐसे ही अनगिनत सुभाषितों की निधि में से समाज में सामयिक व सतत सुसंस्कार निर्माण करनेवाले कुछ उपयोगी सुभाषितों व उनकी समाजोपयोगी सरल व्याख्या माननीय रंगाहरिजी ने इस पुस्तक में प्रस्तुत की है।

यह संकलन संस्कारों के ज्ञान-यज्ञ की अग्निशिखा के प्रज्वलन की प्रारंभिक आहुति है। सत्यनिष्ठा, राष्ट्रभक्ति, परिवार-निष्ठा, वृद्ध व असहाय जनों के प्रति कर्तव्य, प्रेरणा, तथा प्रकृति, सृष्टि व समष्टि से एकात्मता के प्रेरक, उच्च आदर्शों, नैतिकता एवं उच्च जीवन-मूल्यों के संवाहक ये सुभाषित, हमारे इतिहास, संस्कृति, प्राचीन वाङ्मय तथा महापुरुषों के प्रति निष्ठा का संवर्धन करेंगे।

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भारतीय-ज्ञान-परंपरा-और-विचारक

भारतीय ज्ञान परंपरा और विचारक :

पिछले दो दशकों में पूरे विश्व की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक संरचना में व्यापक बदलाव आया है। इस परिदृश्य में भारत एक बार फिर से विश्वगुरु बन सकता है-इसमें कोई संदेह नहीं है। हालाँकि कुछ लोग असहमत हो सकते हैं। राष्ट्रीय चिंतक यह मानते हैं कि भारत की सांस्कृतिक विशिष्टता में विश्वगुरु बनने के बीज-तत्त्व विद्यमान हैं। यहाँ का जन अपनी पहचान से भारत को विशिष्ट बनाए हुए है। भारतीय चिंतन और भारतीय दृष्टि मनुष्य को एक संपोष्य जीवन प्रणाली दे सकती है और यही वह कारण है जिससे भारत को विश्वगुरु बनना ही है, इसे कोई रोक नहीं सकता है।

रजनीश कुमार शुक्ल के लघु संग्रह में इसकी पड़ताल करने की कोशिश की गई है। इसमें भारतीय ज्ञानपरंपरा के सनातन प्रवाह की विविध धाराओं के रूप में समझने की कोशिश की गई है। इस धारा को प्रवाहित करने में योगदान करनेवाले कुछ विचारकों की विचार-सरणि का निदर्शन करने का यह एक विनम्र प्रयास भी है। विश्वास है कि अनादि से अनंत तक विस्तृत भारत की ज्ञानयात्रा को समझने में यह लघुतम प्रयास पाठकों को सार्थक लगेगा।

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राष्ट्रीय-स्वयंसेवक-संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ :

यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दीर्घ-यात्रा पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, फिर भी संघ सदैव ही सुर्खियों में रहता है। हाल के दिनों में संघ के कामकाज को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है, क्योंकि एक ओर इन दिनों में बहुत से स्वयंसेवक सरकार में शीर्ष पदों पर पहुँचे हैं, वहीं दूसरी ओर संघ के हिंदू-राष्ट्र और एकात्मता के मूल विचार अब हमारे सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र की मुख्यधारा बन गए हैं। भारत के लिए संघ का दृष्टिकोण क्या है? यदि भारत एक हिंदू-राष्ट्र बन जाता है, तो इसमें मुसलमानों और अन्य धर्मों का क्या स्थान होगा? इतिहास-लेखन की संघ की परियोजना कितनी बड़ी है? क्या हिंदुत्व जाति की राजनीति को खत्म कर देगा? परिवार की बदलती प्रकृति और विभिन्न सामाजिक अधिकारों पर संघ का क्या दृष्टिकोण है?

संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकर ने इस पुस्तक में इन सवालों का विश्लेषण किया है। आंबेकरजी को तथ्यों की गहरी समझ है, इसी कारण से वे विचार की स्पष्टता और उसके विस्तार, दोनों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हुए हैं। एक स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने शाखा पद्धति में कार्य किया है और उसे अपने जीवन में जिया है, उसी के आधार पर संघ की आंतरिक कार्य-प्रणाली, निर्णय-प्रक्रिया और समन्वयक-दृष्टि पर गहराई से दृष्टिपात किया है। वास्तविक जीवन के अनुभवों से भरपूर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ उन सभी के लिए एक पठनीय पुस्तक है, जो संघ-शक्ति की कार्यप्रणाली और इसकी भविष्य की योजनाओं को समझने के इच्छुक हैं।

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स्वराज-से-शंखनाद

स्वराज से शंखनाद :

किसी भी राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति की पूँजी होती है समाज के सामान्य व्यक्ति की समझ, जिसमें शिक्षा की भूमिका का महत्त्वपूर्ण होना स्वयंसिद्ध है। हिंदुस्तान की जनसंख्या को यदि दो भागों में विभक्त करें तो एक बड़ा वर्ग उन ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत है जहाँ न सरकार की पहुँच है, न सड़क है, न समाज; शक्ति के रूप में दिखता है और न ही पहुँच है साफ जल की। जो प्रकृति एवं धरती के जितना निकट, वही सांस्कृतिक मूल्यों का धनी है और जो इससे जितना दूर है वही नैतिक गिरावट का साम्राज्य है। किंतु यह विडंबना? जहाँ शिक्षा एवं वैभव है, वहाँ संस्कृति नहीं; और जहाँ नैतिकता है, वहाँ निरक्षरता एवं गरीबी में जीवन जीने को बाध्य हैं। अतः समाधान का मार्ग भी यही है।

दोनों वर्गों को आत्मीयता के सेतु से जोड़ दें तो एक की आर्थिक गरीबी दूर होगी तो दूसरे की सांस्कृतिक। और इसी उद्देश्य के समर्पित है एकल अभियान; जिसे सही अर्थों में ‘ग्राम शिक्षा मंदिर’ कहा जाता है। शिक्षा-संस्कृति-स्वराज को समर्पित एक महाअभियान ‘एकल’ की गौरवगाथा है यह पुस्तक।

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कोविड-19-वैश्विक-महामारी

कोविड-19 : वैश्विक महामारी -

यह पुस्तक आसान भाषा में कोविड-19 महामारी के सभी पहलुओं की जानकारी क्रमबद्ध तरीके से उपलब्ध कराती है। इस पुस्तक में वायरस क्या है? से लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस महामारी से पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की गयी है। साथ ही यह पुस्तक भारत सरकार द्वारा समय-समय पर की जाने वाली कार्यवाहियों, नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं का ब्यौरा भी प्रस्तुत करती है।

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कोरोनानामा-बुजुर्गों-की-अनकही-दास्तान

कोरोनानामा : बुजुर्गों की अनकही दास्तान -

यह रिपोर्ताज-संग्रह वैश्विक महामारी कोविड-19 यानी कोरोना-काल में बुजुर्गों के प्रति सजगता को परिलक्षित करती हुई उनकी विशिष्ट भूमिकाओं की एक ग्राउंड रिपोर्ट है। इसमें पाठकों को इस सामाजिक आपातकाल में वृद्धजनों की सेवा, सहयोग और सम्मान के कुछ अप्रतिम उदाहरणों के बारे में पढ़ने को मिलेंगे। बुजुर्गों की सेवा और उनके वीरत्व के ये उत्कृष्ट उदाहरण अत्यंत सराहनीय और अनुकरणीय हैं।

बुजुर्गों के प्रति संवेदना और श्रद्धा की आधारित घटनाओं की सजीवता न सिर्फ आपके हृदय को स्पर्श करेगी वरन् आपको भी किसी-न-किसी रूप में इनसे संबद्ध करेगी। हर वर्ग के पाठकों के भीतर संवेदनाओं को उकेरे और समाज में बुजुर्गों के प्रति हमारी भूमिका को रेखांकित कर पाए तो इसका प्रकाशन सोद्देश्य होगा।

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