कहानी तब रोचक होती है जब उसकी बुनाई ढंग से की गई हो। उसमें उतार-चढ़ाव का सामंजस्य बनाना भी महत्वपूर्ण है। ऐसा न लगे कि चीज़ें बिखर रही हैं, तब ही लय टूट जाती है। इसलिए लेखक को हर पल चौकन्ना रहकर कलम चलानी पड़ती है। बार-बार 'मरम्मत' की जरुरत महसूस हो सकती है, और वह 'दिक्कतों' को सुलझाता चलता है। आखिर में वह एक प्रोडक्ट तैयार करता है जो फाइनल होता है। यदि वह पाठक की नब्ज़ जानता है, या उसे इतना अनुभव है कि वह ऐसा कर सकता है, तो कहानी पसंद की जा सकती है।
कई पुरस्कारों आदि से सम्मानित आइपीएस अफसर अमित लोढ़ा ने अपनी पहली किताब लिखी है। किताब का नाम है 'बिहार डायरीज़'। इसके नाम से ही जाहिर है यह बिहार के बारे में होगी। यह बिहार के एक पुलिस अफसर के बारे में है जो एक बेहद खतरनाक मिशन पर होता है। वह एक ऐसे अपराधी को पकड़ता है जो 'कसाई' की तरह है। लेकिन उसे बहुत कुछ दांव पर लगाना भी पड़ता है।
'बिहार डायरीज़' का प्रकाशन किया है पेंगुइन रैंडम हाउस के इम्प्रिंट हिन्द पॉकेट बुक्स ने। यह किताब इससे पहले पेंगुइन से अंग्रेज़ी में इसी नाम से प्रकाशित हुई थी जिसे खूब सराहा गया था।
अमित लोढ़ा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं जो वर्तमान में इंस्पेक्टर जनरल यानी आईजी के पद पर हैं। उनका अभी तक का करियर बेहद रोमाचंक और शानदार रहा है। उन्होंने कई सफल ऑपरेशनों में भाग लिया जिनमें अपराधिक गिरोहों के सरगनाओं की गिरफ्तारी और अपहृतों के बचाव अभियान भी शामिल हैं। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें प्रतिष्ठित प्रेसिडेंट्स मैडल फॉर मेरिटोरियस सर्विस, पुलिस मैडल फॉर गैलेंट्री और इंटर्नल सिक्योरिटी मैडल जैसे सम्मानों से नवाज़ा गया है।
अमित ने आईआईटी किया, आईपीएस बने और एक लेखक-वक्ता के तौर पर हम उन्हें जानते हैं। उनके एक बैचमेट समीर गहलोत ने इंडियाबुल्स की स्थापना की। वहीं बेस्टसेलर लेखक चेतन भगत नब्बे के दशक में आईआईटी दिल्ली में उनके साथी रहे हैं। अमित लोढ़ा आईपीएस बने। नागरिक सुरक्षा की भावना और रोमांचक करने के जुनून ने उन्हें पुलिस सेवा से जोड़ा।
अमित खुद कहते हैं,'मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मैं भारतीय सेवा से जुड़ा हूँ, क्योंकि मुझे पुलिसकर्मियों का काम बड़ा चुनौतीपूर्ण और फिर भी असीम संतोषदायी लगता है। यह उन दुर्लभ कामों में से एक है जहाँ कठोर परिश्रम का तुरंत फल मिल जाता है। वह अहसास जब एक अपहृत बालक अपनी माँ से मिलता है, शब्दों से परे है। ज्यादातर लोग पुलिस वालों के काम को आकर्षक मानते हैं, लेकिन सच यह है कि खून, पसीना और आँसू भी इससे जुड़े हैं। अपने किसी साथी को खो देना या अपने परिवार की असुरक्षा ऐसे पेशेवर खतरे हैं जिनका हमें रोज़ सामना करना पड़ता है।'
'बिहार डायरीज़' बिहार के एक जाबांज़ पुलिस अधिकारी की कहानी है जो अपनी हिम्मत और सूझ-बूझ के बल पर एक खूंखार अपराधी सामंत प्रताप और उसके गुर्गों को सलाखों के पीछे पहुंचाता है। यह किसी तेज रफ्तार फिल्मी कहानी की तरह है। जब किसी किताब की शुरुआत दिलचस्प होती है, और 'आगे क्या होगा' वाली स्थिति उपलब्ध कराती है, तो साँस रोककर पढ़ना स्वाभाविक है। जेल से फरार होने का वाकया इतना दिलचस्प है कि उसे बार-बार पढ़ने का मन करता है। वो अलग बात है कि वहां सामंत जैसे लोगों की क्रूरता का पता चलता है, उनकी बेरहम मानसिकता का पता चलता है। इससे अंदाज़ा लग जाता है कि कहानी और भी रोचक मोड़ लेने वाली है। यह किताब किसी रोलर कोस्टर-राइड से कम नहीं कहा जा सकता।
गिरगिटों का पीछा करने वाला और उनको पीट-पीटकर मौत के घाट उतारने वाला एक बालक किस तरह कुख्यात अपराधी सामंत प्रताप बन जाता है, उसे किताब में पढ़ा जा सकता है। किस तरह वह गठजोड़ कर आगे बढ़ता है और एक साम्राज्य खड़ा करता है, यह बेहद दिलचस्प है। अपराध, राजनीति, पुलिस और परिस्थितियों की वजह से किस तरह मर्ज बनकर समाज में फैलता है, उसे 'बिहार डायरीज़' बताने की कोशिश करती है।
यह किताब यह भी बताती है कि पुलिस चाहे तो किसी भी अपराधी को सलाखों के पीछे डाल सकती है। अपराध रोके जा सकते हैं। समाज को सुरक्षित और बेहतर बनाया जा सकता है।
'बिहार डायरीज़' पुलिस का वास्तविक चेहरा सामने लाने का एक शानदार प्रयास है। वह पुलिस जो जनता की सेवा करती है। वह पुलिस जो अपराधियों को पकड़ती है। वह पुलिस जिसका काम ही देशसेवा करना है।
यह किताब उन चुनौतियों का जिक्र भी करती है जो एक पुलिसवाले को झेलनी पड़ती हैं। एक तरह का मानसिक दवाब जो किसी को भी हतोत्साहित कर सकता है। उसके जीवन को बोझिल बना सकता है। एक युवा अफसर के सामने कई चुनौतियां होती हैं। उस समय उसकी समझ नए माहौल में विकसित हो रही होती है। जैसे-जैसे उसका अनुभव बढ़ता है, वह अधिक तेज-तर्रार होता जाता है।
'बिहार डायरीज़' में लेखक की पत्नी की हिदायतें भी हैं जो उन्हें कई मोड़ों पर मदद करती हैं। परिवार का सहयोग मिलने की वजह से कहानी का 'डेयरिंग कॉप' इतना कमाल कर पाया।
कुल मिलाकर 'बिहार डायरीज़' एक सफल लेखन कहा जा सकता है जिसमें मसाला है, रोमांच है, हैरानी है, ड्रामा है, एक्शन है, प्यार है, घ्रणा है, राजनीति है, जज़्बा है। वह सब है जो आज के पाठक पसंद करते हैं।