वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित हुईं चार ख़ास किताबें

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राजेन्द्र भटनागर की ‘नीलचन्द्र’ और ‘आनन्द पथ’ तथा सुजाता की 'नीलांचल चन्द्र' और 'नोआखाली'.

समकालीन समय एक विरोधाभास के रूप में सामने आया है। हर ओर भिन्न-भिन्न सूरतों में निराशा का दृश्य बना हुआ है। ऐसे समय में जब उदासीनता के बादल गहराते जा रहे हैं, वाणी प्रकाशन ग्रुप ने सन्त साहित्य की ओर रुख़ किया है। सन्त जीवन के परिप्रेक्ष्य से समाज और मनुष्यता की चुनौतियाँ गम्भीरता से अपना आकार, नवीनता और पूर्णता की ओर ले जाती है। इस प्रयास में वाणी प्रकाशन  ग्रुप द्वारा श्री अरविन्द घोष के जीवन के विभिन्न आन्तरिक पक्षों को दो भागों ‘नीलचन्द्र’ और ‘आनन्द पथ’ और सुश्री सुजाता द्वारा लिखी गयी चैतन्यदेव की जीवन-यात्रा पर आधारित 'नीलांचल चन्द्र' और गाँधी के नोआखाली प्रवास की कालजयी गाथा 'नोआखाली' पुस्तकें प्रकाशित की गयी हैं।

'नीलचन्द्र’ और ‘आनन्द पथ’ एक अपूर्व गाथा है  उस परम योगी की, जिन्होंने स्वयं के दृष्टि-अवलोकन को वह दिशा दी जो साधारण मनुष्य के लिए सम्भव नहीं। प्रथम भाग ‘नीलचन्द्र’ में श्री अरविन्द घोष के बचपन और युवावस्था का एक पक्ष जो 'अन्य'(जीवन) के लिए सम्भावनाओं के कई सात्विक मार्गों को आश्वस्त करता है और दूसरे भाग ‘आनन्द पथ’ में उनके क्रान्तिदृष्टा से महर्षि बनने की अन्तर्गाथा का विराट दर्शन है। जीवन सहज रूप में सुख, दुख, प्रशंसा, शान्ति और आनन्द की अनुभूति से लेकर अति-साधारण में जीवन के उच्च मानकों पर स्वयं को तोलने तक कितना विराट और दिव्य है, कितना चैतन्य है, यह श्री अरविन्द घोष के बचपन, युवावस्था और उनके महर्षि होने के पक्षों पर दृष्टि डालने से सरलता से समझा जा सकता है।

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पुस्तक के दोनों भाग एक महान जीवन-दर्शन को समझने का एक आधार-बिन्दु है। एक प्रशिक्षण है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी  अन्तर्ध्वनियों की पहचान कर सकता है। भौतिक जीवन की प्रकृति एक ओर सुख का पथ दिखलाती है वहीं दूसरी ओर जीवन के खोखलेपन का भी अनुभव कराती है। वर्णित पुस्तकों में श्री अरविन्द घोष के बाल्यकाल और युवावस्था के अनेक प्रसंगों द्वारा जीवन की सूक्ष्म अनुभूतियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। इस पुस्तक का पाठ करते हुए पाठक को उस आनन्दमय जीवन की असीम शक्ति और ऊर्जा का अहसास होगा जहाँ मनुष्य स्वयं के जीवन को बड़े फलक पर देख सकता है, अपनी ऊर्जाओं के समकक्ष एक ऐसा दृश्य रच सकता है जो अधिक विनयशील, अधिक बेख़ौफ़ और अधिक शिष्टाचारी बनना सिखाता है।

बाल्यावस्था में अरविन्द बड़े हाज़िरजवाब थे इसलिए उनके अध्यापक उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। वहीं अपनी अध्यापिका मैरी रोज़ संग रंगों की माया और जीवन के गहनतम सत्यों को समझते हुए वे मानवता के उच्च गुणों को आत्मसात करते रहे।

समय बीतता है और उसके विस्तार में बालक अरविन्द, युवावस्था में कदम रखता है। शांत-चित्त, धीर-गम्भीर और विलक्षण युवक से क्रान्तिदृष्टा और फिर महर्षि बन कर एक विस्तारित दृष्टि से संसार देखता है। वह प्रकृति के मौन को, उसके सन्नाटे को भावुक और गौरवान्वित होकर महसूस करने लगता है।

पुस्तक के इन दोनों भागों में अनेक सुन्दर संवादों और उदाहरणों द्वारा श्री अरविन्द घोष के जीवन का विहंगम और सांस्कृतिक चेतना से युक्त जीवन दृश्य पाठकों के समक्ष आता है। यह कृति स्वयं में एक महान व्यक्तित्व का पुनर्पाठ है, एक आख्यान है, जो हमारे वर्तमान से भी सम्बन्ध रखता है और भविष्य से भी। श्री अरविन्द घोष का चरित्र बहुआयामी था और भारत की आज़ादी के लिए चल रहे संघर्ष में उनकी सक्रियता को समझने की विशेष आवश्यकता है जिसे 'आनन्द पथ' के माध्यम से समझा जा सकता है।

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नीलांचल चन्द्र : https://amzn.to/2WfDEhq

सुश्री सुजाता द्वारा लिखी गई औपन्यासिक कृति 'नीलांचल चन्द्र' प्रेम, करुणा और भक्ति का विस्तार करते हुए एक ऐसे महामानव की गाथा है जो सर्वोच्च सत्ता से मिलन के लिए स्वयं भाव की उच्चतम अवस्था महाभाव में भावित होकर अपने 'मूल' को परिवर्तित कर लेता है और नीलांचल चंद्र बन जाता है। इस अवस्था में कोई लिंग-भेद नहीं रह जाता अर्थात वे न पुरुष रहते है और न स्त्री, वे प्रेम स्वरूप ईश्वर बन जाते हैं।

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नोआखाली : https://amzn.to/2WcU4XV

'नोआखाली' एक ऐसी ऐतिहासिक हृदयविदारक घटना पर आधारित है जिसका दाग शायद ही कभी धुँधला हो पाये। इस घटना के समय महात्मा गाँधी की भूमिका को विस्मृत नहीं किया जा सकता। नोआखाली के जिन 47 गाँव में 116 मील बापू नंगे पाँव लोगों को साम्प्रदायिकता की आग से बचाने के लिए दीवानों की तरह भटके थे वे आज भी उन क्षणों की गवाही देते हैं। 'नोआखाली' का सांप्रदायिक सौहार्द महात्मा गाँधी के हस्तक्षेप के बाद कभी नहीं बिगड़ा था। नोआखाली वासियों ने अपने पीर और महात्मा की सीख को गाँठ बांध लिया था।

औपन्यासिक विधा में रची गई ये अमूल्य कृतियाँ वाणी प्रकाशन ग्रुप की प्रकाशकीय प्रतिबद्धता के साथ एक उत्तम रचना-कर्म के रूप में पाठकों के समक्ष है।