झूठ के अँधेरे में रोशनी की तरह है 'उसने गांधी को क्यों मारा'

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ऐसी शोधपरक किताबें ज्यादा जरूरी हैं, जो विवादित मुद्दे पर तथ्याधारित सच्चाई सामने लाने की कोशिश करती हैं.

'उसने गांधी को क्यों मारा' यूँ ही साल की सबसे चर्चित किताब नहीं है बल्कि इसे पढ़ने के बाद ही आप जान पायेंगे कि क्यों ये किताब इस साल की बेहतरीन किताबों में से एक है। इस किताब में ऐसे प्रासंगिक विषय को उठाया है जिस पर पिछले सत्तर सालों में झूठ की कई परतें चढ़ायी गयीं। किताब की भूमिका में ही लेखक अशोक कुमार पांडेय कहते हैं कि गांधी हत्या से जुड़े हजारों पन्नों के दस्तावेज अब भी मौजूद हैं और इतिहास से छेड़छाड़ की कोशिश करने वाले इस दौर में उनके गायब होते जाने से पहले किताब में सहेजना जरूरी हो गया है। सच में इस किताब के लिए लेखक का शोध और अध्ययन हर पन्ने में दिखता है।

किताब को तीन भागों में बाँट कर गांधी हत्या से जुड़े तथ्यों पर रोशनी डाली गयी है। पहला खंड 'वो कौन थे' है, जिसमें लाल किले के गुनहगार के तौर पर उन सभी सात अपराधियों का परिचय विस्तार से दिया गया है जो वारदात में शामिल थे। गांधी हत्या के बाद इन सात हत्यारों पर लाल किले में ही अदालत लगाकर मुकदमा चला था। आमतौर पर लोग यही जानते हैं कि गांधी हत्या में गोडसे बंधु ही शामिल थे, एक को फाँसी हुई तो दूसरे को आजीवन सजा मिली, मगर गोडसे बंधुओं जिनमें नथूराम और गोपाल के साथ नारायण दत्तात्रेय आप्टे, विप्णु आर. करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया और दत्तात्रेय परचुरे भी इस अपराध में थे। नथूराम गोडसे और नारायण दत्तात्रेय आप्टे को ही फाँसी हुई, बाकी पाँच को हत्या के आरोप के साथ इस साजिश में शामिल होने के कारण आजीवन कारावास की सजा दी गयी। ये सारे अपराधी गांधी की हत्या में क्यों और कैसे शामिल हुए इस सवाल का जवाब किताब में तथ्यों के साथ बहुत विस्तार से दिया गया है।

गांधी हत्या में यदि मदनलाल पाहवा को छोड़ दें तो सभी हत्यारों का संबंध पुणे और वहां के कुलीन चितपावन ब्राह्मण समुदाय से था। पुणे के ये ब्राह्मण आखिर क्यों हो गये उस बुजुर्ग गांधी की जान के प्यासे जो आज़ादी की लड़ाई लड़कर देश को स्वतंत्र कराने के बाद हिंदू-मुसलिम दंगों की आग बुझाने में लगा हुआ था। हिंदू-मुसलमान इस बुजुर्ग को पूजते थे। उसकी आवाज और उपवास पर दंगाई हथियार छोड़ देते थे। जो बूढ़ा देश को आज़ादी दिलाने के बाद किसी पद पर नहीं बैठा आखिर उससे क्या भूल हो गयी जो ये ब्राह्मण उसकी जान के भूखे हो गये और उस निहत्थे पर दो बार हमला किया। पहला हमला असफल रहा तो दूसरे में उसके ठीक सामने जाकर ही तीन गोलियाँ उतार दी सीने में।

अशोक लिखते हैं कि तात्कालिक कारणों को छोड़ दें तो गांधी हत्या के कारण उस सदियों पुरानी वर्ण व्यवस्था में छिपे हैं जिसमें अछूतों को अछूत ही माना गया था और गांधी छुआछूत विरोधी मुहिम चलाकर उन अछूतों के सम्मान की लड़ाई लड़ कर उनको बराबरी का हक दिलाना चाहते थे। गांधी इस देश को आज़ाद कर ऐसा लोकतांत्रिक देश बनाना चाहते थे जहां पर सभी धर्म जाति और इलाकों के लोग समान अधिकार से रहें। वो हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार थे, वो विभाजन के विरोधी थे। मगर विभाजन हो भी गया तो वो मुसलमानों को पाकिस्तान जाने देने से रोकने की मुहिम चला रहे थे, वो नोआखली, कलकत्ता और दिल्ली में दंगों की आग बुझाकर पाकिस्तान जाकर वहां हो रहे रक्तपात को रोकना चाहते थे। पर उनके ये हत्यारे जिनको मुसलमानों से नफरत करना ही सिखाया गया था, वो पाकिस्तान के बरक्स हिदुओं का हिन्दुस्तान बनाना चाहते थे जिसमें वर्ण व्यवस्था जारी रहे, ये देश के सारे मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने का मंसूबा पाले थे। इनकी राह का रोड़ा नेहरू-पटेल नहीं गांधी थे। इसलिये हिंदू महासभा से जुड़े इन लोगों को महाराष्ट्र के कई शहरों के सेठों की मदद मिल रही थी। इन पैसों की मदद से ये हवाई जहाज में यात्रा करते थे, हथियार गोला बारूद और रिवाल्वर खरीदते थे। सोचिये कितना अविश्वसनीय-सा लगता है कि जिस देश में गांधी को पूजा जाता है, उसी देश में लोग गांधी को मारने के लिये चंदा कर रहे थे।

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किताब में सिलसिलेवार गांधी हत्या के इतिहास उन पर हुए पहले के हमलों और आखिर में की गयी हत्या की पूरी साजिश का ब्यौरा तो है ही साथ ही लाल किले में लगी अदालत के दौरान गोडसे ने जो झूठ बोले उनका भी जवाब दिया गया है। अशोक लिखते हैं कि लाल किले में चले मुकदमे की तकरीबन डेढ़ साल की कार्यवाही को नथूराम ने शहीद बनने का मौका माना और बहुत सारे मसलों पर झूठ बोला जिसमें पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने में गांधी का हाथ और उनको देश विभाजन का जिम्मेदार मान कर प्रचारित किया। लेकिन झूठ के पाँव नहीं होते और आखिर 15 नवम्बर 1949 को नथूराम और नारायण आप्टे को फाँसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया।

गांधी हत्याकांड में सावरकर की भूमिका का भी इस किताब में उल्लेख करते हुए लिखा है कि विनायक दामोदर सावरकर सबूतों के अभाव में लाल किला से ही बरी हो गये, हांलाकि 1965 में बने कपूर कमीशन ने अपनी जाँच में उन्हें अपराधी पाया, लेकिन तब तक वो इस दुनिया को छोड़ चुके थे। किताब में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के उस पत्र का हवाला दिया गया है जो उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू को 27 फरवरी 1948 को लिखा था- इस षड्यंत्र को रचने और क्रियान्वित करने वाले सीधे सावरकर के अधीन काम करने वाले हिंदू महासभा के कटटरपंथी धड़े के लोग हैं।

व्हाट्सअप और फेक न्यूज के जमाने में सबसे ज्यादा नुकसान हमारे इतिहास को पहुँचा है। आज़ादी की लडाई हो या गांधी-नेहरू का योगदान इस सबको लेकर तरह तरह की बेसिर पैर की झूठी बातें फैलायी जा रही हैं। इन नेताओं पर तानों और उलाहनों का दौर चल पड़ा है। गांधी और नेहरू पर सवाल खड़ा करना किसी एक विचारधारा से जुड़े लोगों का खास शगल हो गया है। ऐसे में 'उसने गांधी को क्यों मारा' सरीखी शोधपरक किताबें ज्यादा जरूरी हैं, जो विवादित मुद्दे पर तथ्याधारित सच्चाई सामने लाने की कोशिश करती हैं। अशोक कुमार पांडेय ने बताया है कि जिन लोगों को भी गांधी का हफ्ते-भर का साथ मिला उन्होंने गांधी पर अच्छी किताबें लिखीं हैं, इसलिये कहा जाता है कि दुनिया में बाइबल के बाद सबसे ज्यादा गांधी पर ही लिखा गया है।

गांधी हत्या से जुड़े दस्तावेजों को आधार बनाकर लिखी इस किताब को पढ़ना आज बेहद प्रासंगिक है क्योंकि गांधी की देह को तो गोडसे ने गोलियों से 72 साल पहले मार दिया था मगर झूठ और दुप्प्रचार कर गांधी के विचारों को आज भी मारा जा रहा है। वैसे ये किताब झूठ के अँधेरे में रोशनी की तरह है।

~ब्रजेश राजपूत.

(लेखक ने 'वो सत्रह दिन' और 'ऑफ द स्क्रीन' जैसी बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं. ब्रजेश ABP न्यूज़ से जुड़े हैं)

उसने गांधी को क्यों मारा 
लेखक : अशोक कुमार पांडेय
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन 
पृष्ठ : 280
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