किसानों और उनके जीवन से जुड़ी कड़वी सच्चाईयों पर लिखा जाता रहा है जिसमें किसानी के महत्व और किसान की आवाज़ को पूरी तरह उजागर नहीं किया जाता। समय के साथ कई राज्यों में कृषि के नए तौर-तरीके और आधुनिक बीज और कीटनाशकों की भरमार है तो कई राज्यों में प्राकृतिक और देसी बीजों के सहारे प्राचीन ढंग से खेती की जा रही है।
कई विषयों पर लोकप्रिय लेखन करने वाली अंकिता जैन ने हाल में 'ओह रे! किसान' शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है जिसे वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक 11 अध्याय में कृषि और किसान से जुड़े अधिकांश मुद्दों पर विस्तार से चर्चा करती है।
पुस्तक में पहला अध्याय किसान के जीवन पर आधारित है। उसके बाद 'विश्व गुरु से कृषि प्रधान देश बनने तक' शीर्षक से अगले अध्याय में प्राचीन भारत की कृषि और आधुनिक कृषि पर चर्चा की गई है। विलुप्त हो रहे छोटे किसानों पर भी ख़ास चर्चा की है। किताब में कई तरह के आंकड़ों और एतिहासिक घटनाओं का भी हवाला दिया गया है।
हम कहते हैं कि किसान अनाज उगा रहे हैं लेकिन असल में मनुष्य यह नहीं कर सकता. कुछ नहीं से कुछ उगाने की क्षमता केवल प्रकृति के पास ही है. किसान उसमें सिर्फ प्रकृति की सहायता कर सकता है.
आधुनिक प्रगतिशील कृषि के नाम पर नए बीजों और खेती में प्रयुक्त खतरनाक जहरीले कीटनाशकों पर अंकिता जैन ने जोरदार ढंग से समझाने की कोशिश की है। उनके मुताबिक भारत में पश्चिमी देशों से भी अधिक जहरीले कीटनाशक खेती में प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका हमारे उपभोक्ताओं पर बहुत खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही भूमि जहरीली और ऊसर हो रही है। अंकिता ने इसे बहुत ही सरल ढंग से समझाने की कोशिश की है। इससे पुस्तक का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह केवल किसानों के लिए ही नहीं बल्कि देश के उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो कृषि जिंसों का उपभोग कर रहे हैं। पुस्तक हर आम और हर खास नागरिक को जागरुक करने में महत्वपूर्ण उद्देश्य के साथ लिखी गई है।
कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र है जो कभी 'आउटडेटेड' नहीं होगा. जब तक मनुष्य का अस्तित्व है तब तक भोजन की आवश्यकता कृषि को जीवित रखेगी. कृषि युवा उद्यमियों के लिए सोने की खान साबित हो सकती है यदि वे इसमें गहरायी से उतरें और मेहनत करें.
'हल में जुता दूसरा कन्धा स्त्री का है' अध्याय में कृषि कार्यों में संलग्न महिलाओं के योगदान पर लिखा गया है। यह लेखन अंकिता ने भुक्तभोगी महिलाओं के बीच पहुँचकर उनके दैनिक जीवन और परिश्रम का आकलन किया। उनसे बातें कीं, उनके दुख-दर्द और अनुभूतियों को सुना। उनके जीवन जीने के हाल-चाल को करीब से देखा-सुना और वहां समय भी गुज़ारा। किसान महिलाओं की समस्याओं तथा चुनौतियों का सजीव हाल लिखने में उन्होंने सभी पक्षों की जमीनी पड़ताल की।
बहुत से किसानों के बीच पहुँच कर, एक-एक तथ्य और बात के नोट कर यह पुस्तक लिखी गई है। कृषि के साथ ग्रामीण रोजगार, गाँवों की आत्मनिर्भरता, स्वरोजगार, पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी बहुत उपयोगी लेखन किया गया है। उम्मीद है इस पुस्तक को भी पाठक उनकी पहली पुस्तकों की तरह पसंद करेंगे और लाभान्वित होंगे।