Book Excerpt : वॉलेस डेलोइस वॉटल्स की पुस्तक 'महान् बनने का विज्ञान'

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'सचेतन विकास की यह शक्ति अन्य जीवों को नहीं मिली है. यह सिर्फ मनुष्य के पास है और वही इसका विकास करके इसमें वृद्धि कर सकता है.'

सुप्रसिद्ध लेखक वॉलेस डेलोइस वॉटल्स की लिखी इस पुस्तक को वर्ष 1910 में एलिजाबेथ टाउन कंपनी ने प्रकाशित किया था। यह पुस्तक ‘एक ही सबकुछ है’ और ‘सब एक है’ (प्रस्तावना का पहला पेज) हिंदू दर्शनों पर आधारित है।

यह पुस्तक जिस विचार पर आधारित है, उसे वॉटल्स ‘सोचने का खास तरीका’ कहते हैं। वॉटल्स का यह ‘खास तरीका’ उस ‘मानसिक उपचार आंदोलन’ से आया, जिसकी शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में फिनीस पी. क्विमबी ने की थी। जैसा कि होरोविट्ज ने ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ के एक रिपोर्टर को बताया था, जब लोगों को क्विमबी की ओर से किए गए मानसिक उपायों से शारीरिक कष्ट या बीमारी से राहत महसूस होने लगी, तब वे सोचने लगे कि अगर मन की दशा का मेरी शारीरिक स्थिति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है तो इसके और क्या-क्या फायदे हो सकते हैं? क्या इससे अमीर भी बना जा सकता है? क्या इससे मेरे घर में खुशियाँ आ सकती हैं? क्या प्यार और रोमांस की तलाश भी पूरी हो सकती है? इस तरह के सवालों का एक नतीजा वॉटल्स की ओर से पैसों के साथ ही शारीरिक समस्याओं के लिए क्विमबियाई ‘मानसिक उपचार’ की रणनीति के रूप में सामने आया। पढ़ें किताब से एक अंश :-

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर शक्ति का एक सिद्धांत होता है। इस सिद्धांत के बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग एवं मार्गदर्शन के द्वारा मनुष्य स्वयं अपनी आंतरिक शक्ति का विकास कर सकता है। मनुष्य में एक अंतर्निहित शक्ति होती है, जिसकी सहायता से वह जिस दिशा में चाहे, प्रगति कर सकता है और उसकी प्रगति की संभावनाओं की कोई सीमा भी दिखाई नहीं देती। अभी तक कोई मनुष्य किसी एक क्षेत्र में इतना महान् नहीं बन पाया है कि किसी और के उससे अधिक महान् बनने की संभावना न हो। यह संभावना उस मूल तत्त्व में है, जिससे मनुष्य बना हुआ है। प्रतिभा वह सर्वज्ञता है, जो मनुष्य के अंदर प्रवाहित होती रहती है।

प्रतिभा योग्यता से बढ़कर होती है। योग्यता तो सिर्फ किसी एक क्षेत्र में विशेष कार्य करने की क्षमता हो सकती है, जो अन्य क्षेत्रों के अनुपात में इस क्षेत्र में अधिक हो; किंतु प्रतिभा आत्मा के कर्मों में, मनुष्य और भगवान् के मिलन के समान होती है। महान् व्यक्ति हमेशा अपने कर्मों से अधिक महान् होते हैं। वे एक ऐसी संचित शक्ति के संपर्क में होते हैं, जो असीमित होती है। हम नहीं जानते कि मनुष्य की मानसिक शक्ति की सीमा कहाँ है; हम यह भी नहीं जानते कि ऐसी कोई सीमा है भी या नहीं।

सचेतन विकास की यह शक्ति अन्य जीवों को नहीं मिली है; यह सिर्फ मनुष्य के पास है और वही इसका विकास करके इसमें वृद्धि कर सकता है। अन्य जीव काफी हद तक इनसानों द्वारा प्रशिक्षित और विकसित किए जा सकते हैं; लेकिन मनुष्य स्वयं ही अपने आपको प्रशिक्षित करके अपना विकास कर सकता है। सिर्फ उसी के पास ऐसा करने की शक्ति है और वह भी असीमित मात्रा में।

मनुष्य अपनी मरजी से अपना विकास कर सकता है; पेड़-पौधों का विकास सिर्फ कुछ संभावनाओं और विशेषताओं तक सीमित होता है; मनुष्य अपने अंदर ऐसी किसी भी विशेषता का विकास कर सकता है, जो उसने कहीं भी या किसी में भी देखी हो।

मनुष्य के लिए उसके जीवन का उद्देश्य है-बढ़ना और विकास करना, वैसे ही, जैसे पेड़-पौधों के जीवन का उद्देश्य भी बढ़ना होता है। पेड़-पौधे स्वतः ही-एक निश्चित तरीके से बढ़ते हैं, मनुष्य अपनी मरजी से अपना विकास कर सकता है; पेड़-पौधों का विकास सिर्फ कुछ संभावनाओं और विशेषताओं तक सीमित होता है; मनुष्य अपने अंदर ऐसी किसी भी विशेषता का विकास कर सकता है, जो उसने कहीं भी या किसी में भी देखी हो। जो कुछ भी भावना में संभव है, शरीर के लिए असंभव नहीं हो सकता। जो कुछ भी मनुष्य सोच सकता है, उसे कार्यान्वित करना उसके लिए असंभव नहीं हो सकता। जिस चीज की वह कल्पना कर सकता है, उसे प्राप्त करना उसके लिए असंभव नहीं है।

मनुष्य विकास करने के लिए ही बना है और प्रगति करना उसके लिए अनिवार्य है। उसकी खुशी के लिए यह आवश्यक है कि वह निरंतर बढ़ता रहे।

प्रगति के बिना जीवन असहनीय हो जाता है। जो व्यक्ति आगे बढ़ना छोड़ देता है, वह या तो निर्बल हो जाता है या पागल। जितनी अधिक-से-अधिक, सामंजस्यपूर्ण और निर्विघ्न उसकी प्रगति होगी, उसे उतनी ही अधिक खुशी प्राप्त होगी।

हर मनुष्य दुनिया में एक पूर्ववृत्ति के साथ जन्म लेता है, एक विशेष तरीके से प्रगति करने और उसके लिए उसी के अनुसार बढ़ना आसान होता है, बजाय किसी और तरीके के। यह एक बुद्धिपूर्ण व्यवस्था है, क्योंकि इससे हमें असीमित विविधता प्राप्त होती है।

जो शक्ति आप में है, वह आपके आसपास की वस्तुओं में भी है और जब आप प्रगति के पथ पर बढ़ना आरम्भ करेंगे तो ये चीजें खुद को आपके हित के लिए क्रमबद्ध कर लेंगी।

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किसी भी व्यक्ति में ऐसी कोई संभावना मौजूद नहीं होती, जो अन्य व्यक्तियों में न हो; लेकिन यदि वे स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ते हैं तो कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं बनते। एक समान नहीं होते। हर मनुष्य दुनिया में एक पूर्ववृत्ति के साथ जन्म लेता है, एक विशेष तरीके से प्रगति करने और उसके लिए उसी के अनुसार बढ़ना आसान होता है, बजाय किसी और तरीके के। यह एक बुद्धिपूर्ण व्यवस्था है, क्योंकि इससे हमें असीमित विविधता प्राप्त होती है। यह ऐसा ही है, जैसे कोई माली अपने सारे बीज एक ही टोकरी में डाल देता हो; सतही तौर पर देखनेवाले को वे सारे बीज एक जैसे लगेंगे, लेकिन जब पौधे बड़े होंगे तो उनमें काफी विभिन्नता नजर आएगी। ऐसा ही स्त्रियों व पुरुषों के साथ होता है। वे बीजों से भरी एक टोकरी के समान होते हैं। एक गुलाब की तरह खिलकर दुनिया के किसी अँधेरे कोने में रोशनी और रंग भर सकता है; कोई कुमुदिनी (लिली) बनकर हर देखनेवाले को प्रेम और पवित्रता का पाठ पढ़ा सकता है, कोई ऊपर चढ़नेवाली बेल बनकर किसी काली चट्टान की खुरदुरी व रूखी बाह्य रेखा को छुपा सकता है और कोई विशाल बलूत का पेड़ बन सकता है, जिसकी शाखाओं के बीच पक्षी अपने घोंसले बना सकते हैं, चहचहा सकते हैं और जिसकी छाया में दोपहर के समय पशुओं के झुंड आराम कर सकते हैं; लेकिन प्रत्येक मनुष्य कुछ-न-कुछ सार्थक करेगा, कुछ असाधारण, कुछ परिपूर्ण।

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हर गाँव के पास अपना एक महान् व्यक्ति होता है, चाहे वह कोई पुरुष हो या स्त्रा्; कोई ऐसा, जिसके पास संकट के समय सब सलाह लेने जाते हैं; कोई ऐसा, जिसे देखते ही समझ में आ जाता है कि उसके पास ज्ञान, बुद्धि और अंतर्दृष्टि का भंडार है।

हमारे आसपास के साधारण जनजीवन में अकल्पनीय संभावनाएँ विद्यमान हैं; कहा जा सकता है कि दुनिया में साधारण लोग हैं ही नहीं। राष्ट्रीय आपदा और त्रासदी के समय गाँव के सामान्य जन भी अंदर मौजूद शक्ति के सिद्धांत के स्पंदन के कारण हीरो और राजनीतिज्ञ बन जाते हैं। हर पुरुष और स्त्रा् में कोई विशिष्टता होती है, जो सामने लाए जाने के इंतजार में होती है। हर गाँव के पास अपना एक महान् व्यक्ति होता है, चाहे वह कोई पुरुष हो या स्त्री, कोई ऐसा, जिसके पास संकट के समय सब सलाह लेने जाते हैं; कोई ऐसा, जिसे देखते ही समझ में आ जाता है कि उसके पास ज्ञान, बुद्धि और अंतर्दृष्टि का भंडार है। ऐसे व्यक्ति के पास समाज के सभी लोग स्थानीय संकट के समय मदद लेने आते हैं; बिना कुछ कहे ही सब उसे महान् मानने लगते हैं। वह छोटे-छोटे कार्य भी शानदार तरीके से करता है। वह चाहे तो बड़े-बड़े काम भी कर सकता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति कर सकता है; आप भी कर सकते हैं। शक्ति का सिद्धांत हमें वही देता है, जो हम उससे माँगते हैं। यदि हम छोटे-छोटे दायित्व उठाना चाहते हैं तो वह हमें छोटे कामों को करने जितनी शक्ति प्रदान करता है; लेकिन यदि हम कोई महान् कार्य असाधारण तरीके से करने का प्रयास करते हैं तो वह हमें उसके लिए भी भरपूर शक्ति प्रदान करता है। लेकिन महान् कार्यों को साधारण तरीके से करने के प्रति सावधान रहें। इस विषय में हम विस्तार से बात करेंगे।

ऐसा दृष्टिकोण रखनेवाले व्यक्ति परिस्थितियों और वातावरण के नियंत्रण में रहते हैं। उनकी नियति बाह्य वस्तुएँ तय करती हैं। उनके अंदर शक्ति का सिद्धांत असल में कभी सक्रिय नहीं होता। वे कभी अपने मन से कुछ कहते या करते नहीं। दूसरा दृष्टिकोण व्यक्ति को एक बहते हुए झरने के समान बना देता है। शक्ति उसके अंतर्मन से निकलती है।

दो दृष्टिकोण हैं, जिनमें से एक का चुनाव व्यक्ति कर सकता है। एक उसे फुटबॉल की तरह बना देता है। उसमें लचीलापन होता है और ताकत लगाने पर उसकी ओर से मजबूत प्रतिक्रिया मिलती है; लेकिन उससे कुछ नया उत्पन्न नहीं होता; वह स्वतः कोई कार्य नहीं करता। उसके अंदर स्वयं की कोई शक्ति नहीं होती। ऐसा दृष्टिकोण रखनेवाले व्यक्ति परिस्थितियों और वातावरण के नियंत्रण में रहते हैं। उनकी नियति बाह्य वस्तुएँ तय करती हैं। उनके अंदर शक्ति का सिद्धांत असल में कभी सक्रिय नहीं होता। वे कभी अपने मन से कुछ कहते या करते नहीं। दूसरा दृष्टिकोण व्यक्ति को एक बहते हुए झरने के समान बना देता है। शक्ति उसके अंतर्मन से निकलती है। उसके अंदर पानी का झरना होता है, जो अनंत जीवन प्रदान करता है। वह शक्ति का विकिरण करता है; उसके ऊपर वातावरण का प्रभाव नहीं होता। उसके अंदर शक्ति का सिद्धांत सदैव क्रियाशील रहता है। वह स्वयं भी सक्रिय रहता है। उसके अंदर जीवन समाहित रहता है।

मनुष्य के अंदर शक्ति के सिद्धांत का जाग्रत् होना ही असली परिवर्तन है-मृत्यु से जीवन की ओर अग्रसर होना! ऐसा तब होता है, जब मृत व्यक्ति जीवित मनुष्य की आवाज सुनते हैं और आकर पुनः जीने लगते हैं। यह पुनर्जन्म और जीवन होता है।

स्वयं को सक्रिय रखने से बेहतर बात किसी भी पुरुष या स्त्री के लिए और कोई नहीं हो सकती। विधि द्वारा निर्धारित जीवन के सारे अनुभव मनुष्यों को सक्रियता की ओर ही उन्मुख करते हैं; उन्हें विवश करते हैं कि वे परिस्थितियों के आगे हथियार न डालें, बल्कि वातावरण को अपने अनुकूल कर लें। अपनी निम्नतम अवस्था में मनुष्य अवसर और परिस्थिति का शिशु होता है और भय का गुलाम। उसके द्वारा किए गए कार्य वातावरण में स्थित शक्तियों के उस पर प्रहार के फलस्वरूप उपजी प्रतिक्रियाओं के रूप होते हैं। वह उसी प्रकार कार्य करता है, जैसा उसके लिए किया जाता है। वह कोई नया सृजन नहीं करता; लेकिन उस निम्नतम अवस्था में उसके अंदर शक्ति का सिद्धांत इतनी मात्रा में होता है कि वह अपने हर डर पर विजय प्राप्त कर सकता है और यदि वह यह सब सीखकर स्वतः सक्रिय हो जाता है तो उसमें ईश्वरीय गुण आ जाते हैं।

मनुष्य के अंदर शक्ति के सिद्धांत का जाग्रत् होना ही असली परिवर्तन है-मृत्यु से जीवन की ओर अग्रसर होना! ऐसा तब होता है, जब मृत व्यक्ति जीवित मनुष्य की आवाज सुनते हैं और आकर पुनः जीने लगते हैं। यह पुनर्जन्म और जीवन होता है। जब यह जाग्रत् होता है तो मनुष्य उस सर्वव्यापी का पुत्र बन जाता है और स्वर्ग में तथा पृथ्वी पर उसे सारी शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं।

ऐसा कुछ भी किसी मनुष्य में नहीं था, जो आप में नहीं है; किसी के पास इतनी आध्यात्मिक या मानसिक शक्तियाँ नहीं हुई हैं, जो आपके पास नहीं हो सकतीं; किसी ने अब तक इतना महान् कर्म नहीं किया है, जो आप नहीं कर सकते। आप निश्चित रूप से वह बन सकते हैं, जो आप बनना चाहते हैं।

महान् बनने का विज्ञान 
लेखक : वॉलेस डेलोइस वॉटल्स
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन 
पृष्ठ : 128
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