'सुपरस्टार की मौत' उपन्यास एक अलग शैली में लिखा गया है जिसे पढ़ना बेहद रोचक अनुभव है.
फ़िल्मी दुनिया चकाचौंध से भरी है। हर मोड़ एक किस्सा है, एक कहानी है। हर मोड़ पर कुछ टूटता है, कुछ बिखरता है, कुछ जुड़ता है, कुछ संभलता है। फिल्मी दुनिया में ज़िन्दगी बहुत तेज़ी से दौड़ती है, तो कहीं हालात ऐसे भी बन जाते हैं कि एक पल भी हज़ारों साल जितना भारी लगता है।
जानेमाने लेखक रामकुमार सिंह ने फिल्म इंडस्ट्री के कई पहलुओं को लेकर 'सुपरस्टार की मौत' नाम का एक ख़ास थ्रिलर उपन्यास लिखा है। इसे एका वेस्टलैंड और हिन्द युग्म ने प्रकाशित किया है।
यह उपन्यास एक अलग शैली में लिखा गया है जिसे पढ़ना बेहद रोचक अनुभव है। कुछ पन्ने ऐसे भी हैं जिन्हें पाठक बार-बार पढ़ना चाहता है।
एक लड़का और एक लड़की मुंबई में अपना मुकाम पाने के लिए घर से भाग कर जाते हैं। लड़की को एक अदद रोल की तलाश है, वहीं लड़के को एक अच्छे प्रोड्यूसर की। लड़का और लड़की बाद में एक-दूसरे से टकराते हैं और कहानी दिलचस्प होती है।
उपन्यास में एक 'सुपरस्टार' भी है। यह शब्द ऐसा है जिससे लगता है कि एक इनसान सितारा है और वह हमेशा सितारा ही रहेगा। दरअसल ऐसा नहीं है, वह पहले सुपरस्टार था। मरने तक उसे सुपरस्टार कहा जाने वाला है। बिल्कुल मरने तक वह फिल्मी दुनिया का चमकता सितारा बना रहेगा चाहें उसकी फिल्में हिट हों या फ्लाप। इन दिनों उसकी फिल्में कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पा रहीं मतलब यह कि वह 'बुझता सितारा' होता जा रहा है। पर उसे अब भी 'सुपरस्टार' कहा जाता है।
रामकुमार सिंह के उपन्यास के सुपरस्टार को एक ऐसी कहानी की तलाश है जिससे उसका गर्दिश का सितारा फिर से जगमगाने लगे और उसके लिए वही पुराना दौर लौट आए। वह दिन-रात यही कामना करता है कि कुछ ऐसा हो जिससे वह अपनी स्टारडम पा सके।
मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री हमेशा एक पहेली की तरह है। हर कोई पर्दे के पीछे की कहानियाँ जानना चाहता है। यह उपन्यास ऐसी ही एक दिलचस्प कहानी कहता है, जहाँ एक सुपरस्टार मर गया है। उसकी भूमिका लंबे समय से तैयार हो रही है। हर साल बड़ी संख्या में युवा फ़िल्मी दुनिया का हिस्सा होने के लिए सपना देखते हैं लेकिन सच्चाई क्या है? क्या वहाँ सचमुच नए लोगों का स्वागत तहेदिल से किया जाता है। इस वक़्त पूरे देश में नेपोटिज्म की बहस चल रही है। यह उपन्यास दिखाता है कि उस शहर में नए रास्ते कैसे बनते हैं और उन पर चलने के ख़तरे और चुनौतियाँ क्या हैं? उपन्यास अपनी गद्य संरचना में ऐसा है कि एक बार पढ़ना शुरू करने पर पाठक उसके साथ बहने लगता है। उसे लगता है जैसे फ़िल्मी दुनिया के पर्दे के पीछे चल रही कहानी उसकी आँखों के सामने सजीव हो गई है।
हालांकि किताब के शुरु में ही हमें पता लग जाता है कि सुपरस्टार की मौत हो चुकी है। उत्सुकता के साथ हम हर पन्ने को यह जानने के लिए पढ़ते हैं कि यह कैसे हुआ, कौन इसके लिए जिम्मेदार है, और सुपरस्टार की लाश को जब उस व्यक्ति ने अपने कैमरे में कैद किया, तब क्या हुआ था। यानी लेखक ने पहले चंद पन्नों में ऐसा सस्पेंस बना डाला कि यह जरुरी हो जाता है कि किताब पूरी पढ़नी होगी।
मायानगरी में लेखकों की क्या स्थिति है, इसपर बीच-बीच में हमें देखने को मिलता है। किस तरह फिल्मी दुनिया की रंगीनियां जहां उकसाती हैं, दूसरी ओर पर्दे के पीछे ख्वाबों का बिखरना और मिटना जारी रहता है।
आखिर में सुपरस्टार की मौत बड़े ही अजीब अंदाज़ में हो जाती है।
यह किताब रोचकता से भरी है। इन दिनों पढ़ने के लिए यह एक ख़ास किताब है।