'डिवाइन चाइल्ड' ख़ास किताब है. इसे एक गहन शोध के बाद लिखा गया है.
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित अशोक चौधरी इस पुस्तक के लेखक हैं. वे 'द मिशन पॉजिटिव वर्ल्ड ट्रस्ट' के संस्थापक हैं. अशोक चौधरी विभिन्न माध्यमों के जरिये कई सामाजिक मुद्दों पर बदलाव के लिए जुटे हुए हैं. उनकी पत्नी रीना चौधरी ने भी इस पुस्तक में सहयोग दिया है.
यह पुस्तक बालमन का सूक्ष्म अध्ययन कर उनके चहुँमुखी विकास के लिए एक आवश्यक हैंडबुक है, जो बच्चों के सम्पूर्ण विकास का पथ प्रशस्त करने और माता-पिता के साथ उनकी भावनात्मकता को बल देने का काम करेगी.
प्रस्तुत है लेखक अशोक चौधरी और रीना चौधरी के विचार :
जीवन में सभी को खुशी और शांति चाहिए। खुशी के पीछे भागने से नहीं, बल्कि उसके योग्य बनने से खुशी मिलती है। खुशी ढूँढ़ने से नहीं मिलेगी, परंतु ईश्वरीय नियमों के द्वारा कर्तव्यों का निर्वहन करने से ये खुली धूप में छाँव की तरह आपके साथ रहेगी। सुख शांत मन में बसता है और शांति का वास हमारे भीतर होता है। वह चेतना का स्वरूप है, जिसे हम सत, चित और आनंद कहते हैं। लेकिन मजे की बात यह है कि बचपन के उन दिनों में जब हम वास्तव में खुश थे, तब हमें पता ही नहीं चला कि समय कब निकल गया। तब हमें न खुशी के पीछे भागना पड़ा था, न हमने यह जानना चाहा था कि खुशी और आनंद कहाँ हैं? हम जहाँ होते थे, खुशी और आनंद हमारे साथ होते थे। हम पर अपने बच्चों को वह सब कुछ देने की धुन सवार है, जो हम स्वयं चाहते हैं, जैसे कि पैसा, नाम, पद और प्रतिष्ठा। परंतु ध्यान रहे, इस चक्कर में हम वह न भूल जाएँ, जो हमें मिला था, जैसे कि माता-पिता का पर्याप्त समय, प्रेम, संस्कार, सहजता और सरलता। हमें सोचना होगा कि इसी भूल में कहीं हम आनेवाली पीढ़ी के बचपन को तो नहीं छीन रहे हैं?
संस्कार व मानवीय मूल्यों के बिना जीवन निरर्थक होता है। लेकिन आज दुनिया की इस भाग-दौड़ में हम भूल गए कि सही मायने में जीवन में हम जिसके पीछे भाग रहे हैं, वहाँ खुशी नहीं है, वह सिर्फ हमारी आवश्यकता है, जरूरत मात्र है। जीवित रहने के लिए तो हमें सिर्फ चार ही चीजें चाहिए और वह चारों चीजें ईश्वर ने हमें प्रकृति के रूप में मुफ्त में दी हैं। नींद, श्वाँस, भोजन और ज्ञान। हाँ, इसके अलावा मकान और छोटी-मोटी वस्तुएँ होती हैं। लेकिन उनके बिना जीवन असंभव तो नहीं है। अब यहाँ श्वाँस और नींद की बात तो आपको समझ आ गई होगी, लेकिन भोजन? जी हाँ, भोजन भी मुफ्त ही है। इनसान तो राई का एक दाना भी पैदा नहीं कर सकता, जब तक उसे सूर्य का प्रकाश, वायु, भूमि और पानी न मिले। हम तो सिर्फ ईश्वर के दिए सामान को उसी के बरतन में पका रहे हैं। रही बात ज्ञान की तो, वह समय-समय पर मानव जाति की आवश्यकतानुसार ईश्वर अपने अवतार लेकर आता है और हमें देकर जाता है। जैसे भगवान् कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर, स्वामीनारायण आदि। जैसा समय, उसके अनुसार ज्ञान।
जीवन में जब आपकी मरजी से कुछ नहीं हो रहा तो समझ जो ऊपर वाले की मरजी से हो रहा.

भगवान् राम, जो कि मर्यादा पुरुषोत्तम थे, कैसे उन्होंने परिवार की मर्यादा का पालन करते हुए साधारण जीवन जीकर बता दिया कि मनुष्य कोई साधारण जीव नहीं है, सभी शक्तियाँ उसके भीतर हैं, उसके लिए सब कुछ संभव है। कृष्ण अवतार में उन्होंने जीवन को कैसे विविध रंगों से भरा। प्रेम-वात्सल्य, मित्रता, खेल-कूद, धर्म का पालन और मनुष्य के अंतिम लक्ष्य की प्रेरणा, जो कि वे स्वयं हैं। भगवान् स्वामीनारायण ने पूरा जीवन मानव जाति को ज्ञान का प्रकाश बाँटने और कठोर तपस्या करने में बिताया, जबकि भगवान् बुद्ध ने संदेश दिया कि ‘आप्प दीपो भवः’ यानी खुद के प्रकाश खुद बनो। आसक्ति ही सब दुःखों का कारण है। उन्होंने धर्म, भगवान् और आत्मा इन सब के बारे में कुछ नहीं बताया, क्योंकि उस दौर में भगवान् के नाम पर पाखंड बहुत बढ़ गया था।
मैं मानव संस्कृति का निरीक्षण करता आ रहा हूँ। संस्कृति, धर्म, परंपराएँ, तकनीक और वातावरण, इन सब के बीच में कैसे बाल्यकाल में ही बच्चों में समस्याएँ विकसित हो जाती हैं और धीरे-धीरे वह इतनी बड़ी हो जाती हैं कि उनका पूरा जीवन बचपन के उन गलत विश्वासों, डर और भय से प्रभावित हो जाता है। बाल्यकाल में बोए गए विश्वासों के बीज मार्गदर्शन के सिद्धांत बन जाते हैं।
हम सब बचपन से मानवीय मूल्यों, ईश्वरीय नियम या प्रकृति के नियम के बारे में सुनते-पढ़ते आए हैं। सभी धर्म और धर्म-ग्रंथ इन्हीं मानवीय मूल्यों और ईश्वर के नियमों की शिक्षा देते हैं। वे बताते हैं कि इनके बिना जीवन में स्थायी खुशी और असीम आनंद संभव नहीं है। विज्ञान भी इन्हीं नियमों या सिद्धांतों की बात करता है।
बच्चे में बदलाव तब नहीं आता, जब आप उसे बेहतर विकल्प उपलब्ध कराते हैं. वस्तुत: बच्चे में बदलाव तब आता है, जब उसे इस बात का एहसास होता है कि अब कोई विकल्प बचा नहीं है.

मानवीय व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए हमें वैज्ञानिकता व आध्यात्मिकता दोनों को साथ लेकर चलना होगा। आज विज्ञान व तकनीक ने भौतिक दूरी कम कर दी है, संसार के विभिन्न भागों में रहनेवालों को एक साथ ला दिया है। किंतु बिना आध्यात्मिकता व मानवीय मूल्यों के इनसान स्वार्थ, लालच, असुरक्षा, तनाव व अमानवीयता की दिशा में बढ़ रहा है। वह अहं व स्वार्थ के कारण दुर्बल होता जा रहा है, जिसके चलते उसे कई बीमारियों से जूझना पड़ रहा है।
दोस्तो, बात दरअसल यह है कि जब हम प्रभाव पर काम करते हैं तो समस्या वहीं की वहीं रहती है। जबकि कारण पर काम करने से समस्या जड़ से खत्म होती है। मलेरिया तब तक महामारी था, जब तक बुखार के इंजेक्शन दिए जा रहे थे। हजारों लोग मर रहे थे, क्योंकि बुखार तो प्रभाव था। जब उसका कारण (Cause) पता चला कि ये एक मच्छर के काटने के कारण होनेवाली बीमारी है, तब वैज्ञानिकों ने उस पर अनुसंधान किया और इस तरह मलेरिया की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक आया। आज हम सब देख रहे हैं कि तीन दिनों में ही मलेरिया की समस्या खत्म हो जाती है।
दिव्य बालक (डिवाइन चाइल्ड) नामक इस पुस्तक में हम कारण और समाधान पर बात करेंगे। विज्ञान, धर्म, अध्यात्म, तकनीक के साथ ही पुरानी और नई पीढ़ी के अंतर को समझेंगे तथा उसके सरल व आसान समाधान पर बात करेंगे। सफल माता-पिता कैसे बनें? इस बड़ी समस्या के साथ-साथ माता-पिता अपने जीवन को आनंद व शांतिपूर्वक कैसे जिएँ, जीवन का असली लक्ष्य क्या है? भौतिक व आध्यात्मिक जीवन में समन्वय स्थापित करना तथा वैज्ञानिक व आध्यात्मिक तरीकों से जीवन को सुंदर बनाने के उपायों सहित जीवन के सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
खुशी के लिए काम करेंगे तो खुशी नहीं मिलेगी पर खुश होकर काम करेंगे तो खुशी व सफलता, दोनों मिलेगी.
बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं। कोई देश पैसों से महान् नहीं बनता, बल्कि जिस देश के बच्चे महान् होंगे, वही देश महान् बनेगा। बच्चे ही देश की असली संपत्ति हैं। मेरा मानना है कि बच्चों की नैतिक, चारित्रिक और संस्कारों की नींव मजबूत होगी, तभी परिवार, देश व विश्व की उन्नति संभव हो पाएगी। आज बच्चों को शिक्षा तो मिल रही है, किंतु पूर्ण ज्ञान नहीं मिल रहा है। उन्हें सिर्फ पैसा कमाने का तरीका सिखाया जा रहा है। आज की शिक्षा प्रणाली में नैतिक और मानवीय मूल्यों को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जा रहा है। बच्चों को सही मार्गदर्शन न मिलने के कारण वे हमारी संस्कृति, परंपरा और नैतिक मूल्यों से विमुख हो रहे हैं और इसका परिणाम देश देख रहा है। नशे की लत, आत्महत्या और डिप्रेशन के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिन माँ-बाप ने अपना सारा जीवन बच्चों के पीछे खपा दिया, आज वे वृद्धाश्रम में तड़प रहे हैं। इस दौर में बड़ी तादाद में बच्चे सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों से परे सिर्फ भौतिक तरक्की की दिशा में अग्रसर हैं। मेरा मानना है कि बच्चे की शिक्षा का प्रारंभ घर से ही होता है और अगर घर में अच्छा माहौल रहेगा तो बच्चों का व्यवहार भी अच्छा ही रहेगा। अतः बालक की पहली पाठशाला परिवार है और पहले गुरु माता-पिता ही हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि बालक हमसे छोटा जरूर है, लेकिन उसकी आत्मा हमसे महान् है।
लाखों जन्मों के बाद, हमें मानव शरीर मिलता है। इस मानव जीवन में कुछ को असली आध्यात्मिक मार्ग पता चलता है, कुछ उस पर चल पाते हैं और कुछ ही उस पर चलकर अपने अंतिम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति /भगवद् प्राप्ति और कभी न मिटने वाला असीम आनंद व शांति को प्राप्त कर पाते हैं। आदि शंकराचार्य ने यह भी कहा है कि मानव जन्म प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।
हम सब का अधिकार है कि हम परमात्मा की खोज में अपने असली अस्तित्व की खोज में लगें और हमारी जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को भी भौतिक जीवन में खुशी व सफलता के साथ-साथ आध्यात्मिक पथ पर लाएँ! माँ-बाप का इससे बड़ा दिव्य उपहार अपनी संतान के लिए और कुछ नहीं हो सकता कि अपनी संतान को ईश्वरीय मार्ग/सत्य और आनंद के मार्ग से परिचित कराएँ। जीवन की इस यात्रा में आप पता नहीं कब आखिरी साँस लेंगे और तब उनको अकेले ही इस यात्रा को पार करना होगा, कहीं वे भटक न जाएँ, वे हमेशा आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए मनुष्यत्व से देवत्व और फिर ऐश्वर्य को प्राप्त करें! न कि मनुष्यत्व से पशुत्व की और बढ़ें! और अपने मनुष्य जीवन मिलने का अवसर न गँवाए।
आपने बच्चे, परिवार और दिव्यता से संबंधित कई किताबें पढ़ी होंगी। हो सकता है कि इस किताब को पढ़ने से शुरुआत में आपको ऐसा लगे कि हम बच्चों और परिवार की बात कम, जबकि बाकी बातें ज्यादा कर रहे हैं। लेकिन जब आप पूरी किताब पढ़ेंगे, तब आपको समझ आ जाएगा कि हम जड़ से लेकर डाली, पत्तियाँ, फल व फूलों तक पहुँच चुके हैं। फिर आपको निर्णय लेना होगा कि जीवन रूपी इस पेड़ में कौन सी जगह पर इलाज की जरूरत है और कौन सी जगह ऑपरेशन की जरूरत है।
ध्यान रहे इस पुस्तक में आध्यात्मिक खोज स्वयं की खोज ईश्वर प्राप्ति आदि शब्दों का मतलब वो असीम आनंद, शांति व खुशी की प्राप्ति करना है, जो आपसे कोई नहीं छीन सके।
डिवाइन चाइल्ड
लेखक : अशोक चौधरी/रीना चौधरी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 168