कोरोना जंग की सप्तपदी : कोरोना से बचने के आध्यात्मिक सिद्धान्त

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पं. विजय शंकर मेहता जीवन प्रबंधन गुरु हैं. उनके कॉलम अखबारों में प्रकाशित होते हैं. 

वे उज्जेन स्थित हनुमान चालीसा ध्यान केन्द्र 'शांतम' के मुख्य संस्थापक हैं. हनुमान चालीसा द्वारा ध्यान का विशेष कोर्स करवाते हैं. 

पं. विजय शंकर की किताब 'कोरोना जंग की सप्तपदी' ऐसे समय में आई है जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है. यह किताब कोरोना की लड़ाई को आध्यात्मिक तरीके से लड़ने के लिए प्रेरित करती है. किताब का का संपादन मीडिया एंटरप्रेन्योर अंशु हर्ष ने किया है. वे मासिक पत्रिका 'सिम्पली जयपुर' और समाचार-पत्र 'वॉइस ऑफ़ जयपुर' की संपादक व प्रकाशक हैं. 

पढ़ें पं. विजय शंकर मेहता के विचार :

कोरोना की जंग है - बचना है, बचाना है तभी जीत हासिल होगी… कभी-कभी कोई ऐसी महामारी दुनिया में पैर पसार लेती है, जिससे लाखों लोगों की जान चली जाती है। इस पीढ़ी के लिए यह घटना अभूतपूर्व है।

कोरोना ने हमारा सामना एक ख़तरनाक स्थिति से करवा दिया है। हमारी सारी कोशिशें इस महामारी की गति रोकने के लिए हो रही हैं, ख़त्म करने के लिए नहीं। यह बीमारी ख़त्म नहीं होगी। सरकेगी, ज़्यादा ताक़त लगा देंगे तो घिसटने लगेगी, ऐसा अब चिकित्सा जगत भी कहने लगा है।

कोई नहीं जानता इसकी वैक्सीन कब बनेगी। इसीलिए अब यह नारा ही ब्रह्म वाक्य है “उपाय ही उपचार है।” ऐसा ही एक उपाय है “सोशल डिस्टेंसिंग”, अगर सोशल डिस्टेंसिंग भी फेल हो गई इस बीमारी को रोकने में, तो मानवता अपनी तबाही की कल्पना भी नहीं कर पाएगी।

कोरोना हमारे साथ और हम जो कोरोना के साथ कर रहे हैं, अगर यह युद्ध है तो मुख्य हथियार है - सोशल डिस्टेंसिंग। सामाजिक, व्यक्तिगत स्तर पर दूरी और एकांत। भारत में जो भी किया जाए उससे भारतीयता विलग नहीं होना चाहिए। कोरोना का व्यवहार पूरी दुनिया के साथ एक जैसा है। उसने अपने संक्रमण के आक्रमण में भेद नहीं रखा। क्या बड़े, क्या छोटे सभी देश दर्द से कराह रहे हैं उसमें हमारा भारत भी शामिल है।

लेकिन हम कोरोना के साथ क्या कर सकते हैं, इसमें हमारी भारतीय मौलिकता काम आएगी, आ रही है, वह है हमारा अध्यात्म। हम धर्म और अध्यात्म का अंतर यहीं समझते चलें। धर्म ‘शरीर’ है तो अध्यात्म ‘आत्मा’ है। धर्म सतह है आत्मा गहराई है, धर्म ऊर्जा है आत्मा शक्ति है, धर्म हमारी पहचान है, आत्मा हमारा होना है।

ज़िंदगी आसान नहीं होती, उसमें सदा समुद्र की लहरों की तरह उथल-पुथल चलती रहती है। ज़िंदगी में शांति और अशांति इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे जीवन के केन्द्र में क्या है?
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कोरोना का सारा प्रहार शरीर पर रहेगा, आहत भी शरीर होगा। आत्मा की अनुभूति ही आत्मा की समझ है। जिसने आत्मा पर इस दौर में स्वयं को टिका लिया उसका आत्मबल ही कोरोना को पराजित करेगा।

अध्यात्म से जुड़ने का राजमार्ग तो योग है, लेकिन इस राजमार्ग तक जाने की कई पगडंडियां हैं। धरम-करम, दान-करुणा, पूजा-पाठ, स्वच्छता-सतर्कता, आयुर्वेद-प्राकृतिक चिकित्सा, देवस्थान और शास्त्र, आपका धर्म कोई भी हो, अपने-अपने धर्म से ये रास्ते पकड़ लीजिए। हमारी भारतीय संस्कृति के पास एक विशिष्ट स्थिति है जो पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं है, वह है संन्यास। गहराई में जा कर देखें तो संन्यास और सोशल डिस्टेंसिंग एक ही है। संन्यास दिव्य स्थिति है और सोशल डिस्टेंसिंग व्यवहारिक अनुशासन है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने सोच-समझ कर मानव जीवन के चार चरण (आश्रम) बनाए हैं। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। कोरोना के दौर में समझदारी होगी कि सीधे संन्यास पर छलांग लगा दी जाए। आप पहले तीन चरण में कहीं भी हों अभी सीधे संन्यास यानी सोशल डिस्टेंसिंग अपना लें।

एक फ़क़ीर हुए हैं दादू, सच्चे ऋषि थे। उन्होंने लिखा है…
ऊपरि आलम सब करै साधु जन घट मांहि,
दादू एतां अंतरा ताथै बनती नाहि।।

इसका सीधा संदेश है कि साधु की समाज से बनती नहीं, सुनने में बड़ा नकारात्मक लगता है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। इसे यूं समझें “ऊपरि आलम” यानी सब देह पर टिकते हैं। हम लोग शरीर पर शुरू होते हैं और शरीर पर ही ख़त्म हो जाते हैं, हम भूल ही जाते हैं कि शरीर के अलावा भी हमारा एक रूप है, वह है आत्मा। तो ये सांसारिक व्यक्ति की स्थिति है। सारा समाज इसी आचरण और आँख से संचालित है। अपना और दूसरे का शरीर देखो और भोगो, बस।

फिर लिखा है, “साधु जन घट माहि।” घट यानी भीतर उतरकर आत्मा। साधु शरीर से आगे बढ़कर आत्मा तक जाता है। इसी यात्रा में वह संन्यासी हो जाता है। ऐसे ही अंतर के कारण संन्यासी की समाज से बनती नहीं है, कोई झगड़ा नहीं है बस एक सामाजिक दूरी है। वह है समझ की गहराई की, इसे ही सोशल डिस्टेंसिंग कह लीजिए।

कोरोना के आघात ने हर वर्ग को अपनी-अपनी दरिद्रता का आभास करा दिया है. ऐसे में कल्याण का भाव ही सबको बचाएगा.
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शास्त्रों में परमात्मा ने अनेक अवसरों पर कहा है कि संन्यास दो तरह का है, एक आचरण संन्यास, एक आवरण संन्यास। केवल घर छोड़ने और भगवा वस्त्र पहनने से कोई संन्यासी नहीं होता; यह तो आवरण संन्यास होगा। कामनाओं का त्याग, तेरे (परमात्मा) के भरोसे के जीवन की घोषणा ही आचरण संन्यास है। यह तो घर में टिक कर, परिवार के साथ, समाज में रह कर भी घट सकता है, लेकिन दूरी बनी रहती है। वही संन्यास है, यही सोशल डिस्टेंसिंग है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की संबोधन शृंखला को याद करें। चौथी बार में उन्होंने सात बातें कही थीं। जन चर्चा ने इसका नामकरण सप्तपदी कर दिया। हमने इस पुस्तक के सात अध्याय इसी सप्तपदी को समर्पित किए हैं।

सप्तपदी भारतीय वैदिक परंपरा में वैवाहिक क्रिया का एक शब्द है। वर-वधु के सात पग, सात वचन जो दोनों एक दूसरे को देते हैं। मोदी जी की सप्तपदी व्यवहारिक हैं। इस पुस्तक में हमने इसे वैदिक सप्तपदी से जोड़ा है। जानबूझ कर नहीं, सच तो यह है ये संयोग से जुड़े ही हुए थे। हमने तो सिर्फ़ रोशनी डाली है इन पर।

कोरोना का वर्तमान घटनाक्रम जितना पीड़ादायक है उतना ही प्रेरणादायक भी। इस बीमारी को लेकर हम जितने समझदार हो जाएंगे उतने ही सुरक्षित रह जाएंगे। अब सवाल यह है कि यह “समझ” हम कहां से लाएं दृष्टांत से सिद्धांत समझने में भारतीय मन बहुत सुविधाजनक है। इसीलिए कोरोना से बचने के आध्यात्मिक सिद्धांत हमने हमारी संस्कृति के सात शास्त्रों से लिए हैं। ये ही पुस्तक के सात अध्याय हैं।

1. ‘रामायण’ जीना सिखाती है। रहने और जीने में फ़र्क़ है। रहता तो पशु भी है, लेकिन जीने की संभावना सिर्फ़ मनुष्य के पास है। ‘रामायण’ की कुछ घटनाओं से हम सप्तपदी के पहले चरण में चलेंगे।

2. ‘महाभारत’ रहना सिखाती है। रहने के कुछ नियम होते हैं। यदि तोड़ेंगे तो महाभारत जैसी घटनाएं हमारे जीवन में घटेंगी। इस कोरोना महायुद्ध में ‘महाभारत’ हमारे लिए आचार संहिता का काम करेगी।

3. ‘भागवत’ (पुराण) मरना सिखाती है। इसके नायक कृष्ण हैं। इसमें अनेक प्रेरणादायक प्रसंग हैं, जो मृत्यु की समझ हमें दे जाएंगे।

धर्म ‘शरीर’ है तो अध्यात्म ‘आत्मा’ है. धर्म सतह है आत्मा गहराई है, धर्म ऊर्जा है आत्मा शक्ति है, धर्म हमारी पहचान है, आत्मा हमारा होना है.
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4. ‘देवी भागवत’ (पुराण) संभालना सिखाती है। धर्म और विज्ञान की बनती नहीं, दोनों ज़्यादातर मौक़ों पर एक दूसरे की तरफ़ पीठ कर के ही रहते हैं, लेकिन एक जगह विज्ञान और धर्म सहमत हैं। ऊर्जा शक्ति के मामले में। विज्ञान ने भी स्वीकार किया है कि ये दोनों हैं। धर्म का तो आधार ही यही दोनों हैं। चिकित्सा विज्ञान कोरोना से जूझ रहा है, धर्म इसका सहारा बनेगा। इस पुस्तक में लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की लीलाओं से हम सीखेंगे। हमारी ऊर्जा भी कोरोना का उपचार बनेगी।

5. ‘शिव पुराण’ पालना सिखाती है। यह पुस्तक शिव की लीलाओं का वर्णन है। इसमें शंकर कल्याण के देवता हैं। कोरोना के आघात ने हर वर्ग को अपनी-अपनी दरिद्रता का आभास करा दिया है। ऐसे में कल्याण का भाव ही सबको बचाएगा। सप्तपदी के पांचवें चरण में हम शिव लीलाओं की चर्चा करेंगे।

6. ‘गीता’ करना सिखाती है। अब जो समय आने वाला है उसमें हमारा कर्म योग ही हमारा सहारा होगा। पेशेवर कार्यशैली बदल जाएगी, लेकिन जीतना है, जीना है, यही ‘गीता’ में कृष्ण ने समझाया था।

7. गणेश जी व हनुमान जी। ये दोनों लोक देवता हैं। यूं कहें कि इन दोनों के चरित्र में हमारे छह शास्त्रों के सिद्धांतों का निचोड़ है। ये दोनों ही हमारे बड़े निकट हैं। गणेश जी को याद किए बिना कोई कार्य आरंभ नहीं होता, हनुमान के स्मरण बिना कोई कार्य समाप्त नहीं होता।

कोरोना संग्राम में ये दोनों लोक देवता हमें सातवें अध्याय की सप्तपदी में मार्गदर्शन देंगे।

नरेंद्र मोदी की व्यवहारिक सप्तपदी, हमारी वैदिक सप्तपदी, सात शास्त्रों के प्रसंग और सात भाग वाली यह पुस्तक अब आपके हाथों में है। पढ़िए, बचिए, बचाइए, स्वयं को, सबको, इस जंग में यही जीत होगी।

कोरोना जंग की सप्तपदी
लेखक : पं. विजय शंकर मेहता
संपादक : अंशु हर्ष
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 150

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