मिथिलेश गुप्ता की 'भूत वाली बात'

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‘जस्ट लाइक दैट’ और ‘तेरी इश्क वाली खुशबू’ के लेखक की कुछ यादें, कुछ बातें.

लेखक मिथिलेश गुप्ता की नई किताब आई है '11:59' जिसे काफी पसंद किया जा रहा है. उनका एक फैन-बेस है, जो उनकी पहली किताब से ही उनसे जुड़ गया था और निरंतर बढ़ रहा है. युवाओं की नब्ज़ को जानने की कला में मिथिलेश माहिर हैं. रोमांस से लेकर हॉरर लिखते हैं और उनकी किताबों की सफलता यह बताती है कि पाठक उनसे संतुष्ट है.

मिथिलेश साझा कर रहे हैं कुछ यादें, कुछ बातें :

बात 1995 की है, हमारे शहर में कुछ अजीबोगरीब घटनाएँ घटने लगी थी जिसका कारण किसी को समझ नहीं आ रहा था। मुझे इतना ही याद है, इस घटना के  कुछ सालों बाद जब मैंने होश संभाला तो मुझे भी उन घटनाओं के बारे में कुछ बातें पता चली। आस-पड़ोस में भी उस घटना का जिक्र सुना हुआ था। हालाँकि बचपन के उस दौर में हम कई झूठी कहानियों को भी सच मान कर डर जाया करते थे। लेकिन यह कोई आम घटना नहीं थी, बल्कि उन दिनों इस घटना का जिक्र कई लोगों के मुँह से सुन चुका था। कई लोगों के मुँह से इस कहानी का जिक्र सुनने के बाद मैंने आखिरकार मम्मी से इसकी सच्चाई के बारे में जानना चाहा। मम्मी ने मुझे बताया कि वहाँ जंगल में अक्सर घटनाएँ घटती रहती है। उन्होंने ये भी बताया कि यह घटना मेरे मामा जी के साथ भी घट चुकी थी। हुआ यूँ था कि एक रात को मामा जी हमारे घर से निकल कर अपनी पत्नी, यानि मेरी मामी जी को लेकर स्कूटर से अपने घर जा रहे थे।  

रात का लगभग 12:15 बज चुका था। उनके घर और हमारे घर के बीच में 3 किलोमीटर लंबा एक जंगल पड़ता था। चूँकि सतपुड़ा के जंगल ज्यादातर सागौन के वृक्षों से ढके होते हैं, जो देखने में काफी घने लगते हैं, वही उन जंगलों के बीच से होते हुए एक डामर की रोड दो शहरों को जोड़ने का काम करती थी। उस रात मामा जी जब उस रूट से गुजर रहे थे तो अचानक उनकी  स्कूटर  रोड पर किसी चीज से टकराई और  मामा और मामी स्कूटर से नीचे गिर पड़े। मामी का सिर फट चुका था, कहते हैं कि मामा जी की स्कूटर भी चालू नहीं हो पा रही थी। रास्ता वैसे भी सुनसान था तो आस-पास किसी की मदद मिलना लगभग नामुमकिन था।

आखिरकार काफी कोशिश करने के बाद जब उन्हें कुछ समझ में नहीं आया तो वे जैसे-तैसे मामी को लेकर आधा किलोमीटर पीछे यानि हमारे घर पहुँचे। मामी की हालत देखकर सब घबरा गए। लेकिन घबराने की बात सिर्फ उनका सिर फटना ही नहीं था, बल्कि उनका अजीब व्यवहार था। वह अजीब तरह की आवाज़ निकाल रही थीं और मामाजी उन्हें बड़ी मुश्किल से पकड़कर घर तक लेकर आए थे। मामी जी का चेहरा पूरा सफेद पड़ चुका था। उनके बाल पूरे बिखरे हुए थे। मामा जी से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने उस घटना का जिक्र किया। 

उन्होंने बताया कि आखिर उनके साथ क्या हुआ और कहा कि उनका स्कूटर अभी भी वही रास्ते में पड़ा हुआ है। मामी जी की मरहम पट्टी करने के बाद उनके सिर से बहते हुए खून को तो रोक लिया गया, लेकिन उनकी अजीब हरकतों को रोक पाना मुश्किल होता जा रहा था। उस रात नाना जी ने पास के ही किसी पंडित को बुलवा कर झाड़-फूँक करवाया। 

पंडित जी ने यह बताया कि उन पर कोई साया था। मम्मी ने बताया कि वह अमावस की रात थी और ऐसी भी घटनाएँ पहले भी वहाँ पर हो चुकी थी। 

कहते हैं कि अमावस की काली रातों में सड़क के ठीक बीचों-बीच कोई बैठा हुआ मिलता है। वह किसी से कुछ नहीं बोलता। बस आने-जाने वाले लोगों को गिराकर, उनकी साइकिल या गाड़ी से नीचे कर देता था। 

वह कौन था और वह ऐसा क्यों करता था? यह वाली बात मुझे काफी दिनों बाद पता चली। दरअसल उस जंगल के शुरुआत में ही एक इंग्लिश मीडियम स्कूल था। जहाँ पर कुछ सालों पहले एक पाँचवी क्लास के बच्चे की मौत स्कूल बस के नीचे दबकर हो गई थी। लोगों का मानना था कि यह वही बच्चा है जो आते-जाते लोगों को परेशान करता है। कुछ लोग तो ऐसा भी कहते थे कि वह टिफिन बॉक्स लेकर रास्ते में बैठा रहता है। लेकिन यह घटना हर आम रातों में नहीं घटती। यह घटना अमावस की रात को हुआ करती हैं। इस बात को अब भी कई लोग नकारते हैं। लेकिन यह घटना जिन लोगों के साथ हो चुकी है, वह इस घटना को आज भी लोगों से साझा करते रहते हैं। 

कहते हैं कि आज भी टिफिन लिए छोटा बच्चा अक्सर लोगों को सड़क पर बैठा हुआ दिखाई देता है। सच्चाई क्या है, मैं भी नहीं जानता। लेकिन हमारे शहर में आज भी इस घटना का जिक्र कई लोग करते रहते हैं। 

इस कहानी का ज़िक्र मैं अपनी पहली किताब ‘वो भयानक रात’ में कर चुका हूँ। जिसकी कहानी इसी घटना से प्रेरित है। ‘वो भयानक रात’ मेरी पहली किताब थी जो सन् 2015 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में न सिर्फ लेखन जगत में मुझे एक नई पहचान दिलाई। बल्कि सूरज पॉकेट बुक्स के माध्यम से और काफी कुछ लिखने का अवसर भी मिला। ये किताब पाठकों को काफी पसंद आई और कुछ महीनों में ही इस किताब ने ई-बुक और पेपरबैक के रूप में काफी लोगों तक अपनी पहुँच बनाई। इस किताब को पढ़ने के बाद काफी पाठकों ने 30 पेज में लिखी गई कहानी को बढ़ाने का आग्रह किया। मैंने एक साल बाद इस किताब को बढ़ाकर 55 पेज कर दिया। कुछ घटनाओं को विस्तारित रूप दिया, जिससे कि यह कहानी और भी डरावनी बन सके। इस कहानी का द्वितीय संस्करण सन् 2017 में प्रकाशित हुआ और सबसे खास बात यह रही कि इस कहानी को पढ़ने वाले पाठकों ने द्वितीय संस्करण को फिर से खरीद कर पढ़ा। इस किताब के बाद मेरी दो अन्य किताबें प्रकाशित हुईं – ‘जस्ट लाइक दैट’ और ‘तेरी इश्क वाली खुशबू’।

यह दोनों ही रोमांटिक बुक्स थीं, जिन्हें काफी लोगों ने पसंद किया। कईयों ने तो यहाँ तक कहा कि एक तरफ जहाँ मैंने ‘वो भयानक रात’ जैसी हॉरर किताब लिखी तो वहीं दो रोमांस किताबें कैसे लिख सकता हूँ? हालाँकि उस समय मुझे ऐसा कुछ पता भी नहीं था कि मैं हॉरर के बाद रोमांस क्यों लिख रहा हूँ। बस कुछ ऐसा हुआ कि वह दो किताबें मन में घूमती हुई कहानियाँ लगी। जिसे मैंने किताब के पन्नों पर उतारा था। 

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हालाँकि ‘वो भयानक रात’ से इस किताब (11:59) के सफर के दौरान, काफी दोस्तों और पाठकों ने मुझसे यह सवाल कई बार पूछा कि मैंने दोबारा हॉरर किताब क्यों नहीं लिखी? हिंदी में आजकल वैसे भी हॉरर में किताबें गिनती की ही लिखी जा रही है। लेकिन सच बात तो यह है कि हॉरर के नाम पर मैं फिर कुछ अलग लिखना चाहता था। मैं यह चाहता था जिस तरह से ‘वो भयानक रात’ का कांसेप्ट और स्टोरी पाठकों को काफी पसंद आया, उसी तरह से कुछ लिख पाऊँ। हालाँकि हॉरर वाली कई कहानियाँ मेरे दिमाग में थी, लेकिन कुछ पेज लिखने के बाद उन्हें मैं ड्रॉप कर चुका था। अब मेरी चौथी किताब ‘11:59- दहशत का अगला पड़ाव’ आप लोगों के हाथ में है।

वैसे इस किताब को लिखने का कोई भी प्लान नहीं था लेकिन एक दिन फिर एक अजीबोगरीब कहानी ने इस किताब को लिखने के लिए मजबूर कर दिया। आपको बता दूँ कि यह किताब मैं पिछले साल जनवरी 2019 में ही पूरा कर चुका था। पर उपन्यास के रूप में इसे प्रकाशित करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था।

पहली बात यह कि ‘वो भयानक रात’ कॉमिक्स रूप में प्रकाशित होने के लिए रेडी हो रही थी। दूसरी बात, यह कहानी मैंने खासकर कॉमिक्स के लिए लिखी थी और मैं चाहता था कि पहले इस पर कॉमिक्स प्रकाशित हो और बाद में उपन्यास। लेकिन ‘वो भयानक रात’ कॉमिक्स की रिलीजिंग डेट 2019 से आगे बढ़कर 2020 हो चुकी थी। जो इसी महीने मार्च 2020 में ‘फिक्शन कॉमिक्स’ द्वारा प्रकाशित हो चुकी है और मैं उम्मीद करता हूँ कि यह कहानी भी कॉमिक्स के रूप में आपको पढ़ने के लिए मिलेगी। 

इस किताब के साथ मैं अपने पाठकों और दोस्तों की दो शिकायतें दूर करने जा रहा हूँ। पहला यह कि मैंने एक और हॉरर किताब लिख दी है और दूसरा यह कि यह किताब पिछली किताब की तरह लघु-उपन्यास न होकर एक संपूर्ण उपन्यास है। उम्मीद करता हूँ कि आपको यह मेरी कोशिश फिर एक बार पसंद आएगी। 

लेखन के तरीकों को अब भी सीख रहा हूँ। आप सभी की दुआएँ और सुझाव हमेशा मिलती रहनी चाहिए जिससे कि मैं और भी कहानियों को किताब का स्वरूप दे सकूँ।  

-मिथिलेश गुप्ता.