हाशिमपुरा 22 मई : आज़ाद भारत के सबसे बड़े हिरासती हत्याकांड का पर्दाफाश

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'यह ऐसा मसला था, जिसमें राजनैतिक नेतृत्व, नौकरशाही, पुलिस, मीडिया, न्यायपालिका--असफल और असहाय सिद्ध हुए.'

सन 1987 की 22 मई की रात में पीएसी द्वारा मेरठ के हाशिमपुरा से उठाकर कई दर्जन मुसलमानों को मारकर नहर में बहाया गया था। पीएसी के इस क्रूर हत्याकांड पर गाजियाबाद के तत्कालीन एसपी विभूति नारायण राय ने एक पुस्तक लिखी है। यह हत्याकांड गाजियाबाद से 15-20 किलोमीटर दूर मकनपुर गांव की नहर के पास किया गया था, जो गाजियाबाद जनपद में पड़ता है।

इस घटना से विभूति नारायण राय दहल गये थे। चूंकि हत्यारों ने घटना को अंजाम उनके क्षेत्र में दिया था। इसलिए पुलिस का जिला प्रमुख होने के नाते केस की तफ्तीश और दोषियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया आदि का दायित्व उन्हीं का था।

राय अच्छे लेखक हैं तथा इस कांड में शुरु से अंत तक पुलिस, प्रशासन, राज्य और केन्द्र सरकार के नौकरशाहों ने जिस भेदभावपूर्ण रवैये का परिचय दिया और जघन्य हत्याकांड के दोषियों को बचाने की जो कोशिश की उससे उनका दिल हिल गया। उन्होंने इस कांड के पीछे की हकीकत और उसके बाद की तमाम कार्यवाही को जनता के सामने लाने के लिए 'हाशिमपुरा-22 मई' के नाम से पुस्तक लिखी है। इसे राधाकृष्ण पेपरबैक्स ने प्रकाशित किया है।

पुस्तक पढ़ने से पता चलता है कि लेखक ने बहुत ही ईमानदारी से हकीकत पाठकों के सामने रख दी है। उन्होंने बिल्कुल निर्भीकता से हमारे शासन, प्रशासन तथा मीडिया की दायित्वहीनता और साम्प्रदायिकता मानसिकता को सबके सामने रख दिया है। लेखक के शब्दों में -'यह एक ऐसा मसला था, जिसमें राज्य के सारे स्टेक होल्डर- राजनैतिक नेतृत्व, नौकरशाही, पुलिस, मीडिया, न्यायपालिका--असफल और असहाय सिद्ध हुए। इसे भारतीय लोकतंत्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के लिए सबसे बड़े खतरे के रुप में लिया जाना चाहिए था, पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। किताब पर काम करते समय बहुत से लोगों ने सलाह दी थी कि मुझे इसे नहीं लिखना चाहिए। बार-बार याद दिलाने से जख़्म भरेंगे नहीं ताज़ा बने रहेंगे- मैं चाहता भी नहीं कि जख़्म भरें। भारतीय राज्य की आंखों में उंगलियां डाल-डाल कर याद दिलाने की ज़रुरत है कि उसने वह सब नहीं किया जो उसे करना चाहिए था, या वह सब किया, जिसे करने से भारतीय संविधान रोकता है। अगर हम हाशिमपुरा भूल गए तो भविष्य में और हाशिमपुरा होंगे।'
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साल 1987; दिन 22 मई; समय तकरीबन आधी रात। गाजियाबाद से सिर्फ पन्द्रह-बीस किलोमीटर दूर मकनपुर गाँव की नहर के किनारे आजाद भारत का सबसे भयावह हिरासती हत्याकांड हुआ था। पी.ए.सी. ने मेरठ के हाशिमपुरा मुहल्ले से उठाकर कई दर्जन मुसलमानों को यहाँ नहर की पटरी पर लाकर मार दिया था। विभूति नारायण राय उस समय गाजियाबाद के पुलिस कप्तान थे। 

यह पुस्तक लेखक द्वारा उसी समय लिये गए एक संकल्प का नतीजा है, जब वे धर्मनिरपेक्ष भारत की विकास-भूमि पर अपने लेखकीय और प्रशासनिक जीवन के सबसे जघन्य दृश्य के सम्मुख थे। साम्प्रदायिक दंगों की धार्मिक-प्रशासनिक संरचना पर गहरी निगाह रखनेवाले, और ‘शहर में कर्फ़्यू’ जैसे अत्यंत संवेदनशील उपन्यास के लेखक विभूति जी ने इस घटना को भारतीय सत्ता-तंत्र और भारतवासियों के परस्पर सम्बन्धों के लिहाज से एक निर्णायक और उद् घाटनकारी घटना माना और इस पर प्रामाणिक तथ्यों के साथ लिखने का फैसला लिया जिसका नतीजा यह पुस्तक है।

यह सिर्फ उस घटना का विवरण-भर नहीं है, उसके कारणों और उसके बाद चले मुकदमे और उसके फैसले के नतीजों को जानने की कोशिश भी है। इसमें दुख है, चिंता है, आशंका है, और उस खतरे को पहचानने की इच्छा भी है जो इस तरह की घटनाओं के चलते हमारे समाज और देश की सामूहिकता के सामने आ सकता है- घृणा, अविश्वास और हिंसा का चहुँमुखी प्रसार।

उम्मीद करते हैं कि इस किताब को पढ़ने के बाद हम एक सभ्य नागरिक समाज के रूप में अपने आसपास पसरते इस खतरे के प्रति सतर्क होंगे और इसे रोकने का संकल्प लेंगे जिसके कारण हाशिमपुरा जैसे कांड वैधता पाते हैं।

हाशिमपुरा 22 मई
लेखक : विभूति नारायण राय
प्रकाशक : राधाकृष्ण पेपरबैक्स
पृष्ठ : 160
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