Sanjeev Paliwal Interview : 'एंकर की हत्या ना कराता तो शायद उपन्यास ही ना बनता'

sanjeev-paliwal-interview
लेखक संजीव पालीवाल का ख़ास साक्षात्कार जिसमें उन्होंने अपनी किताब 'नैना' के बारे में बताया.

आज तक में सीनियर एग्ज़िक्यूटिव एडिटर संजीव पालीवाल का पहला क्राइम-थ्रिलर उपन्यास 'नैना' जैसे ही रिलीज हुआ, वह बेस्टसेलर हो गया. यह उपन्यास खूब पसंद किया जा रहा है. इसे बेहद रोचक शैली में लिखा गया है. 

समय पत्रिका ने संजीव पालीवाल से ख़ास बातचीत की. 

 पहला उपन्यास और वह एक क्राइम फ़िक्शन -यह वर्षों की योजना थी या ऐसे ही किसी दिन विचार आया। इसपर विस्तार से बताएँ।

जब बड़ा हो रहा था और रोज़ी रोटी की चिंता सताती थी तब ज़ेहन में ये ख्याल बिल्कुल नहीं आया था कि लेखक बनना है। नौकरी करने के तकरीबन 20 साल बाद मेरी एक कहानी छपी। मीडिया में काम कर रहे लोगों से वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने कहानियां लिखवाकर एक संकलन निकाला था।

तब भी नहीं सोचा था कि कुछ लिखना है। वो तो अजीत अंजुम का ताव था, ज़िद थी तो कहानी लिख दी थी। लेकिन उससे भी अंदर से कोई ऐसी इच्छा शक्ति जागृत नहीं हुई कि लिखना है।

क्राइम फिक्शन लिखने का पहला विचार मुझे करीब 2008 में आया। एक ऐसी घटना उस साल घटी थी कि जिसने हमारे पूरे समाज को झिँझोड़ कर रख दिया था। वो केस है आरुषि मर्डर केस। आज भी वो केस हमारी स्मृतियो में ज़िंदा है। रह रह कर हमारे अंतरमन को सालता है। कहता है कि ऐसा संभव नहीं है। मैंने उसको आधार बनाकर किताब लिखना शुरु किया था। लेकिन उसे खत्म नहीं कर पाया। मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं उसका अंत कैसे करूंगा। लेकिन अब कहानी मेरे दिमाग में पूरी बन चुकी है। देखते है कि अब उसका नंबर कब आयेगा। लेकिन मैं जो लिखूंगा। वो फिक्शन होगा। 

और भी कोशिशें कीं लेकिन कभी वो परवान नहीं चढ़ सकीं। कभी अपने पर गुस्सा आया तो कभी खुद की काबिलियत पर शक हुआ। कभी सारा दोष अपने प्रोफेशन पर डाल दिया कि वक्त ही नहीं मिलता। कैसे सोचें और कब लिखें। तो ये सिलसिला पिछले 15 साल से चलता रहा। एक दिन पिछले साल यानी 2019 मार्च-अप्रैल के दरमियान एक आईडिया आया औऱ उसे लिखना शुरू कर दिया। देखते-देखते अगस्त की आखिर में वो उपन्यास मुकम्मल हो गया। यही उपन्यास नैना के रूप में आप सबके सामने है।   

naina-by-sanjeev-paliwal

 'नैना' नाम कहाँ से उपजा? न्यूज़ एंकर की हत्या क्यों? और वह भी महिला एंकर की, पुरुष भी हो सकता था। आपको नहीं लगता कि आप अपने पहले उपन्यास से सनसनी जैसा कुछ करना चाहते थे?

काफी वक्त लगा था मुझे नाम तय करने में। सोचने में। नाम ऐसा चाहिये था जो कि आज की दुनिया का हो। ट्रेडीशनल हो, लेकिन सुनने में मॉर्डन हो। एक रिदम हो। इस नाम को कोई एंकर आज हमारे बीच ना हो। (लेकिन बाद में पता चला कि नैना नाम की एक न्यूज़ एंकर हैं।)

एंकर की हत्या ना कराता तो शायद उपन्यास ही ना बनता। यही नय़ापन है इस उपन्यास में। क्राइम में सनसनी ना हो तो क्राइम नही पढ़ेंगे लोग। देश के सबसे पुराने और चर्चित टीवी शो का नाम ही सनसनी है। सनसनी से ही लोग आकर्षित होते हैं। जहां तक महिला एंकर की बात है तो आजकल महिला प्रधान उपन्यास और सीरीज़ ही चल रहे हैं।

लोग उन्हीं के बारे में जानना चाहते हैं। गूगल सर्च सबसे ज़्यादा महिलाओं के बारे में ही करते हैं।

 प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में आपका अच्छा अनुभव है। न्यूज़रूम की हकीकत आप जानते हैं। क्या ख़बरों को तड़क-भड़क से प्रस्तुत करना ज़रूरी है या ऐसा करना मजबूरी बन गई है?

प्रिंट और टीवी दोनो समाज का आईना हैं। लोग जो चाहते है आज उन्हें वही मिलता है। पहले एडीटर अपनी समझ से खबरों को चयन करते थे आज जनता की नब्ज़ को समझ कर उनकी समझ के हिसाब से खबरों का चयन और प्रस्तुतिकरण करते हैं।

 क्या नैना का किरदार किसी एंकर से प्रेरित है?

नहीं, ये पूरी तरह से काल्पनिक कहानी है।

naina-book-crime-fiction

'नैना' यहाँ क्लिक कर प्राप्त करें : https://amzn.to/2z9TMZZ

 'नैना' से आप क्या संदेश देना चाहते थे या इसे आप मात्र मनोरंजन का साधन मानते हैं?

नैना से मैंने कोई संदेश देने की कोशिश नहीं की है। अगर किसी को उसमें संदेश नज़र आता है तो ये उसकी अपनी समझ है। मैं उस समझ को सराहता हूं तारीफ करता हूं। नैना पूरी तरह से काल्पनिक और मनोरंजन के लिये लिखा गया उपन्यास है।

 हर उपन्यास का एक ख़ास मक़सद होता है। 'नैना' का क्या मक़सद है?

मनोरंजन, मनोरंजन और मनोरंजन।

 इतनी व्यस्तता के बावजूद उपन्यास लिखने के लिए समय कैसे निकालते थे?

इतने साल वक्त नही निकाल पाया। इस बार नैना ने ये काम करा दिया। कैसे हुआ ये मुझे खुद नही पता। कहते है कि हर उपन्यास की अपनी किस्मत होती है। उसकी कुंडली होती है। नैना की कुंडली में ऐसे योग रहे होंगे जिन्होंने उसे पूरा करा लिया। छपवा लिया। सक्सेफुल करा दिया।

naina-crime-fiction-novel

'नैना' की समीक्षा यहां क्लिक कर पढ़ें >>

 लेखक बनना आसान है या न्यूज़ एंकर?

दोनो में से कोई भी काम आसान नहीं है। मैने दोनो ही काम किये है । इसलिये कह सकता हूं कि एंकर्स के प्रेशर कोई नहीं समझ सकता। खास तौर पर आज जब हर वक्त आप पर सोशल मीडिया की नज़रें होती हैं। लेखन के लिये एक अलग माइंड चाहिये। अलग मेंटल फ्रेम की ज़रूरत है।

 एक लेखक को कितना पढ़ना चाहिए?

बहुत पढ़ना चाहिये। दरअसल जब मैं नैना को लिख रहा था तो मैने कुछ नहीं पढ़ा। मुझे लगता था कि मुझ पर किस का असर ना हो जाये। लेकिन अब समझ आया कि पढ़ना आपको कभी नही छोड़ना चाहिये। पढ़ने से आपका दिमाग खुलता है। दुनिया नयी नज़र आती है।

'नैना' यहाँ क्लिक कर प्राप्त करें : https://amzn.to/2z9TMZZ

 अगली योजना क्या है? 

अगला क्राइम फिक्शन उपन्यास लिखा जा रहा है। कोशिश है कि उसको भी जुलाई के अंत तक खत्म कर दिया जाये। जिससे वो भी जल्द से जल्द सबके सामने आ सके।

-समय पत्रिका.

जरुर पढ़ें : लेखक हरिंदर सिक्का का ख़ास साक्षात्कार जिसमें उन्होंने अपनी किताबों पर चर्चा की.