रुक जाना नहीं : सफलता की राह पर बढ़ते जाने के प्रेरक मंत्र

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यह किताब हर आयु वर्ग को पढ़नी चाहिए. खासकर युवाओं के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है.
'कॉम्पटीशन में सफलता की उम्मीद में अपनी किस्मत आजमाने की चाहत लिए छोटे-छोटे शहरों की, खाली-बोर दुपहरों से, झोला उठाकर चलने वाले युवा क्या करें कि उनकी सफलता की संभावनाएँ बढ़ जाएँ। युवा अभ्यर्थी अपने व्यक्तित्व में ऐसे कौन से बदलाव या सुधार लाने की कोशिश करें सपने साकार हो सकें। इन्हीं प्रश्नों से जूझते युवाओं के कुछ सवालों के जवाब देने की ईमानदार कोशिश मैं अपने सीमित ज्ञान, अनुभव व नजरिए के आधार पर कर रहा हूँ।' ~निशांत जैन

हिंद युग्म और एका ने निशांत जैन की प्रेरणादायक पुस्तक 'रुक जाना नहीं...' प्रकाशित की है। लेखक ने इस पुस्तक में सफलता की राह पर बढ़ते जाने के प्रेरक मंत्र बेहद सरल भाषा में दिए हैं।

यह किताब हर आयु वर्ग को पढ़नी चाहिए। खासकर युवाओं के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं।

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लेखक निशांत जैन ने स्वयं सफलता और असफलता का स्वाद चखा है। वे स्वयं कहते हैं कि अपने कैरियर में बीस-इक्कीस से अट्ठाईस साल की उम्र में आईएएस बनने तक तमाम प्रतियोगी परीक्षाएं दी हैं जिनमें उन्होंने हरी उतार-चढ़ाव का सामना किया है। यहीं से उन्हें अलग-अलग अनुभव हुए जिनका सार उन्होंने इस पुस्तक में दिया है।

यह पुस्तक हिंदी भाषी युवाओं के लिए बहुत उपयोगी साबित होगी। यह मूल हिंदी भाषा में लिखी गई है। आमतौर पर इस तरह की पुस्तकें अंग्रेजी से हिंदी के रूप में पढ़ने को मिलती हैं। निशांत जैन का अपनी बात कहने का तरीका इतना सरल है कि पाठक उसे आसानी से समझ सकता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को इसे जरूर पढ़ना चाहिए।

निशांत जैन लिखते हैं कि यह किताब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हिंदी मीडियम के युवाओं को केंद्र में रखकर लिखी गई है।

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पुस्तक का पहला अध्याय बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें लेखक ने व्यक्तित्व को सँवारने के लिए शानदार टिप्स दिए हैं। उन्होंने लिखा है कि सकारात्मक रहना और जिंदादिली से जीना सफलता के लिए बहुत जरूरी है। उन्होंने हमेशा सीखते रहने पर जोर दिया है। सिविल सेवा परीक्षा पर चर्चा करते हुए लेखक कहते हैं कि सफलता और उसके बाद के सुधीर्घ कैरियर में एक वैचारिक परिपक्वता और निरंतर सीखने का जज़्बा बेहद जरूरी है। सीखने की अदम्य ललक और लालसा किसी की भी राह को आसान कर सकती है।

लेखक ने आत्मनिरीक्षण को जरूरी बताया है। इसलिए वे खुद को पहचानने और उसकी ताकत अनुसार कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। यही वजह है कि कार्य करने से पूर्व हमारी पूरी तैयारी होनी चाहिए। खुद की खूबियां एवं कमजोरियां मालूम होना आवश्यक है। कमियों को निखारा जा सकता है। उन्हें बेअसर किया जा सकता है। यह किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए उपयोगी साबित हो सकता है।

निशांत जैन ने व्यस्त और मस्त रहने के लक्षण और फायदे इस पुस्तक के जरिए बताए हैं। वे कहते हैं कि व्यस्त रहना एक नियामत की तरह है। यदि मस्त रहकर व्यस्त रहा जाए तो यह सोने पर सुहागे की तरह है। साथ ही उन्होंने अपनी आदतों में बदलाव करने के शानदार तरीके भी सुझाये हैं जिनका पालन कर कोई भी व्यक्ति व्यस्त रहते हुए भी मस्त रह सकता है। इसका फायदा आपके आसपास के लोगों को भी होगा क्योंकि खुश रहकर खुशी फैलती है। यह एक तरह से सकारात्मक माहौल पैदा करता है।

इस किताब की एक सबसे अच्छी बात यह भी है कि निशांत जैन ने बीच-बीच में प्रेरणादायक पंक्तियाँ देकर हर अध्याय को और अधिक प्रभावपूर्ण बनाया है।

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निशांत जैन द्वारा अपनी तैयारी के अंतिम दिनों में लिखी एक कविता भी इस पुस्तक में दर्ज है :

सकारात्मक सोच संग उत्साह और उल्लास लिए,
जीतेंगे हर हारी बाज़ी, मन में यह विश्वास लिए।

उहापोह-अटकलें-उलझनें, अवसादो का कर अवसान,
हों बाधाएं कितनी पथ में, चेहरों पर बस हो मुस्कान।

अंतर्मन में भरी हो ऊर्जा, नई शक्ति का हो संचार,
डटकर, चुनौतियों से लड़कर, जीतेंगे सारा संसार।

लें संकल्प सृजन का मन में, उम्मीदों से हो भरपूर,
धुन के पक्के उस राही से, मंजिल है फिर कितनी दूर।

जगें ज्ञान और प्रेम धरा पर, गूंजे कुछ ऐसा संदेश,
नई चेतना से जागृत हो, सुप्त पड़ा यह मेरा देश।

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पुस्तक के दूसरे हिस्से में सफलता की 26 शानदार कहानियाँ आपको पढ़ने को मिलेंगी। हर कहानी साथ शुरू हुई थी। हर कहानी में संघर्ष के बाद सफलता की बात है। हर कहानी प्रेरणा देती है आगे बढ़ने के लिए। हौंसला देती है अपने सपनों को पूरा करने के लिए। यह कहानियाँ उन लोगों की हैं जिन्होंने खुद को साबित किया। चाहें उनके सामने कितनी भी बाधाएँ क्यों न आईं हों, वे डिगे नहीं, हटे नहीं, अड़े रहे जज्बे के साथ, और अपना लक्ष्य हासिल किया। उत्तर प्रदेश के आशीष कुमार से राजस्थान के विजय सिंह तक, सभी ने अपने सपनों को पूरा किया। आज ये असंख्य लोगों की प्रेरणा भी हैं।

रुक जाना नहीं

लेखक : निशांत जैन
प्रकाशक : हिन्द युग्म / एका वैस्टलैंड
पृष्ठ : 160

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