जयंती रंगनाथन की 'एफ.ओ. ज़िन्दगी' : नए ज़माने की रोचक कहानी

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जयंती रंगनाथन की पुस्तक 'एफ.ओ. ज़िन्दगी' में ज़िन्दगी को लेकर सीखने को बहुत कुछ है.

जयंती रंगनाथन की पुस्तक 'एफ.ओ. ज़िन्दगी' ऐसी कहानी कहती है जिसमें भागती-दौड़ती युवाओं की बातें, उनके जीवन में बनते-बिगड़ते रिश्ते, उधेड़बुन, भ्रम, आशा-निराशा आदि मौजूद हैं। यह ऐसी किताब है जिसे पढ़कर रोमांच, मुस्कान, मायूसी, हैरानी होती है। शुरु से ही पाठक कहानी में रम जाता है। कारण है उसका फास्ट-पेस होना।

'एफ.ओ. ज़िन्दगी' का मतलब है फालतू ओवरसेंसि​टव ज़िन्दगी। नई पीढ़ी के लिए 'एफ.ओ.' शब्द के बहुत मायने हैं। पुस्तक में नयी और पुरानी पीढ़ी की सोच के बीच की रस्साकशी को बहुत ही अच्छी तरह से दिखाया गया है।

जयंती रंगनाथन ने यहाँ एक प्रयोग करने की कोशिश की है। इसका असर यह हुआ कि कहानी की गति तेज हुई, लंबा खींचने से बचा गया, मोड़ लगभग हर पन्ने में आते हैं। यह उत्सुकता पैदा करता है। जब पाठक उत्सुक है, तो समझिए वह कहानी से बँधा हुआ है। एक बार कहानी के साथ आपका नाता हुआ, फिर कहानी आपकी हुई। भाषा को सरल रखा गया है।
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युवाओं की कहानी है, इसलिए उनके हाव-भाव, विचार-व्यवहार वास्तविक जीवन से उठाये गये हैं। मुख्य रुप से तीन पात्र हैं जिनके इर्दगिर्द कहानी घूमती है -इति, श्रुति और गौरव।

कई पात्र बीच-बीच में आते रहते हैं और कहानी को टर्न देकर चले जाते हैं। इति और गौरव शादी कर लेते हैं। एमएलए की बेटी इति की दुनिया बदल जाती है। गौरव के साथ भी यही होता है। इति के पिता अपनी बेटी से बात नहीं करते। माँ इति के लिए फिक्रमंद है। इति की बहन श्रुति पिता की बात मानती है और उनकी पसंद के लड़के से विवाह करती है। लेकिन कहानी का असली ट्विस्ट तब आता है जब गौरव के हाथों एमएलए का मर्डर हो जाता है।

ऐसा क्या हुआ जो गौरव से यह हुआ? इसके लिए किताब पढ़नी होगी।

युवाओं का दुनिया को देखने का नज़रिया ‘बेफिक्रा’ होता है। इसकी कीमत वे चुकाते भी हैं। जयंती रंगनाथन ने यही दिखाने की कोशिश की है। बिना सोचे-विचारे ज़िन्दगी को समझने का दावा करना युवाओं के भविष्य को हैरत में डाल देता है।

माता-पिता हमेशा अपने बच्चों की फिक्र करते हैं। जयंती एक जगह ज़िन्दगी का सार लिख देती हैं-
'ढाई घण्टे की फ़िल्म तो है नहीं कि ज़िन्दगी के एक मोड़ पर आकर सबकुछ ठीक हो जाये और सब एक साथ 'कभी ख़ुशी कभी ग़म' की तर्ज पर अन्त में एक बड़ी सी हैप्पी फ़ैमिली बन जाये।'
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एक जगह पिता का दर्द देखें - 'मेरी बच्ची, आलोक, मैंने क्या-क्या नहीं सोचा था उसके लिए! देख तो, नयी-नवेली दुल्हन सफ़ेद कपड़े में खड़ी थी मेरे सामने। ख़ाक ख़ुश रखता होगा वो लफंगा उसे? मेरी बेटी अपने बाप से पैसा ऐसे माँग रही थी, जैसे भीख माँग रही हो। अरे मेरा सबकुछ मेरी बेटियों का ही तो है। उन्हीं को तो देना है सबकुछ। कलेजा छलनी हुआ जा रहा है यार!'

इस किताब को युवा पीढ़ी के लिए लिखा गया है। तेज भागती ज़िन्दगी में एडजस्ट करना मुश्किल होता है, लेकिन युवाओं को लगता है कि सब ठीक हो जाएगा। बिना यह जाने की भविष्य में क्या होगा, वे अपने पेस को बनाए रखते हैं। कुछ ठोकर लगकर गिरते हैं, कुछ अपनी सूझबूझ से बचकर निकल जाते हैं। यह पुस्तक युवाओं को केन्द्र में रखकर लिखी गयी है। वे अपनी राह तलाश पाते हैं, निखर जाते हैं, या बिखर जाते हैं। यह पुस्तक पढ़कर पता चल सकता है।

कुल मिलाकर 'एफ.ओ. ज़िन्दगी' में ज़िन्दगी को लेकर सीखने को बहुत कुछ है।

एफ.ओ. ज़िन्दगी

लेखिका : जयंती रंगनाथन
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 166

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