लंका की राजकुमारी : क्या शूर्पणखा लंका के विनाश का कारण थी?

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कविता काणे उपेक्षित महिलाओं को आवाज़ देकर उनका हक़ दिलाने में जुटी हैं.
"शूर्पणखा का अर्थ है, एक ऐसी स्त्री जो नाखून की तरह कठोर हो। उसके जन्म का नाम मीनाक्षी था, अर्थात् मछली जैसी सुंदर आंखों वाली। शूर्पणखा, रामायण की ऐसी पात्र है जिसे सदा गलत समझा गया है। वह उन भाइयों की छत्र-छाया में बड़ी हुई, जिनकी नियति में युद्ध लड़ना, जीतना तथा ख्याति व प्रतिष्ठा अर्जित करना लिखा था। परंतु इस सबके विपरीत शूर्पणखा के जीवन का मार्ग पीड़ा और प्रतिशोध से भरा था."

रामायण और रामचरित मानस जैसे ऐतिहासिक महाकाव्यों की चर्चित पात्र शूर्पणखा लंका की राजकुमारी थी अथवा लंका के विनाश का कारण? इस सवाल के जवाब की खोज के लिए लेखिका कविता काणे का उपन्यास 'लंका की राजकुमारी' पढ़ना होगा। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद आशुतोष गर्ग ने किया है जिसे मंजुल पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया है।

कविता काणे ने पौराणिक इतिहास में वर्णित कई महिला पात्रों की आवाज़ बनकर उनके उपेक्षित जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई है। कर्ण की पत्नी उरुवी, लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, मेनका अप्सरा आदि पर लेखन के बाद लेखिका ने शूर्पणखा के बारे में विस्तार से लिखा है। शूर्पणखा का एक नाम मीनाक्षी भी था। वह रावण की बहन, ऋषि विश्रवा और कैकसी की इकलौती बेटी थी।
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कविता काणे की पुस्तक 'लंका की राजकुमारी'
‘इस बार शूर्पणखा को अपने दमन, आक्रोश, बदले और संभावित पाप मुक्ति की कहानी सुनाने का मौक़ा मिला है। हम लंबे समय से जानते हैं कि रावण की छोटी बहन एक “उत्पाती” असुर थी जिसने अयोध्या के निर्वासित राजकुमारों राम और लक्ष्मण को लुभाने की चेष्टा की थी और इसका भीषण अंजाम लक्ष्मण की तीक्ष्ण तलवार से हुए अंग-भंग के रूप में झेला था। इस बारे में उसकी अपने भाई से की गई शिकायत के फलस्वरूप जो घटनाओं की श्रंखला शुरू हुई उससे उसका लगभग हर पुरुष रिश्तेदार मारा गया। लेकिन क्या हमलोग उसके भूत, वर्तमान, भविष्य के बारे में कुछ और जानते हैं?’ 

‘कविता काणे इस कमी को दूर करने की भरसक कोशिश कर रही हैं, जो कि महान मिथक महाकाव्यों में लंबे समय से उपेक्षित महिलाओं - पत्नियों, माँओं और बहनों को आवाज़ देकर उनका हक़ दिलाने में जुटी हैं। और कर्ण की पत्नी उरुवी, सीता की बहन उर्मिला और अप्सरा मेनका के बाद अब बारी है मीनाक्षी की, जो कि ऋषि विश्रवा और असुर राजकुमारी कैकसी की छोटी और इकलौती पुत्री है।’

रामचरित मानस सहित अनेक सनातन तथा पौराणिक ग्रंथों में राम-रावण युद्ध के पीछे सीता को पाने का मूल कारण बताया गया है। शूर्पणखा का थोड़ा रोल इसे आगे बढ़ाने में पंचवटी से शुरु होता है। शूर्पणखा पर जो भी लिखा गया है वह उसे एक जंगली, चरित्रहीन तथा विचित्र हरकतों वाली भयंकर शक्ल की महिला ठहराने भर का हिस्सा है।

'लंका की राजकुमारी' में लेखिका कविता काणे ने उसे इसके विपरीत एक अत्यंत आकर्षक, बड़ी आंखों वाली सांवली महिला तथा बहुत ही चालाक और समय तथा परिस्थितियों के अनुसार चलने वाली स्त्री सिद्ध करने का प्रयास किया है। कई मिथकों और कल्पनाओं को बहुत ही सार्थकता के साथ एकाकार करने में लेखिका सफल हुई है। यह एक मनोरंजक तथा पठनीय उपन्यास है।

लंका की राजकुमारी
लेखिका : कविता काणे
अनुवाद : आशुतोष गर्ग
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 354

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