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रज़ा और कृष्ण खन्ना ने एक-दूसरे के पत्र सँभाल कर रखे. दो मूर्धन्य कलाकारों के बीच यह पत्र-संवाद बिरला है. |
260 पृष्ठों की इस पुस्तक में रज़ा तथा खन्ना के बीच 27 अगस्त 1956 से 14 सितंबर 2000 तक हुए पत्राचार के 97 पत्र प्रकाशित किए गये हैं जिनमें रज़ा के 59 तथा खन्ना द्वारा लिखे 38 पत्र शामिल हैं।
मण्डला के एक वन ग्राम में 1922 में जन्मे सैयद हैदर रज़ा ने दिल्ली में 2016 में शरीर त्यागा। जबकि कृष्ण खन्ना 1925 में आज के पाकिस्तान के फैसलाबाद में पैदा हुए। वे आजकल दिल्ली में रहकर कलाजगत की सेवाओं में लगे हैं। ये दोनों हस्तियां लंबे समय तक साथ रहीं। अमेरिका, इंगलैंड और फ्रांस जैसे देशों में सम्मानित होने के साथ-साथ भारत में भी पद्मश्री, पद्मभूषण आदि दर्जनों सम्मान प्राप्त किए।
इन विशिष्ट विभूतियों के पत्रों की भाषा, आशय और ज्ञान का अनुमान ऐसे में सहज ही लगाया जा सकता है। पत्रों से स्पष्ट हो जाता है कि हमारे ऐसे कला मूर्धन्य अपने समय में क्या सोच रहे थे, उनकी उत्सुकताएँ, बेचैनियाँ और प्राथमिकताएँ क्या थीं? एक विकासशील सौंदर्यबोध किस ओर बढ़ रहा था?

अशोक वाजपेयी लिखते हैं,'सैयद हैदर रज़ा हिन्दी को अपनी मातृभाषा मानते थे और हालांकि उनका फ्रेंच और अंग्रेज़ी का ज्ञान और उन पर गहरा अधिकार था, वे फ्रांस में साठ वर्ष बिताने के बाद भी हिन्दी में रमे रहे। यह आकस्मिक नहीं है कि अपने कला-जीवन के उत्तरार्द्ध में उनके सभी चित्रों के शीर्षक हिन्दी में होते थे। वे संसार के श्रेष्ठ चित्रकारों में 20-21वीं सदियों में, शायद अकेले हैं जिन्होंने अपने सौ से अधिक चित्रों में देवनागरी में संस्कृत, हिन्दी और उर्दू कविता में पंक्तियाँ अंकित कीं।'
'इस पत्राचार को क्रमश: कुछ पुस्तकों में प्रकाशित करने का इरादा है। इस सीरीज़ में पहली पुस्तक रज़ा और कृष्ण खन्ना के पत्राचार की है। सौभाग्य से इन दोनों ने एक-दूसरे के पत्र सँभाल कर रखे। दो मूर्धन्य कलाकारों के बीच यह पत्र-संवाद बिरला है।'
मेरे प्रिय : सैयद हैदर रज़ा एवं कृष्ण खन्ना के बीच पत्र-व्यवहार
संपादन : अशोक वाजपेयी/पीयूष दईया
अनुवाद : प्रभात रंजन
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन और रज़ा फाउंडेशन
पृष्ठ : 260
किताब का लिंक :https://amzn.to/37VIcxN
संपादन : अशोक वाजपेयी/पीयूष दईया
अनुवाद : प्रभात रंजन
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन और रज़ा फाउंडेशन
पृष्ठ : 260
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