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लेखक हरिंदर सिक्का का ख़ास साक्षात्कार जिसमें उन्होंने अपनी किताबों पर चर्चा की. |
'कॉलिंग सहमत' की सफलता उसपर बनी फिल्म 'राज़ी' की तरह रही। अब आपका हालिया प्रकाशित उपन्यास 'विछोड़ा' भी ख़ासा चर्चित हो रहा है। इसपर क्या कहना चाहेंगे?
'विछोड़ा' एक ऐसी कहानी है जो मेरे दिल के बेहद ही करीब है। कॉलिंग सहमत की ही तरह, यह कहानी भी सत्य घटना पर आधारित है। इस कहानी की नायिका बीबी अमृत कौर की ज़िन्दगी तमाम संघर्षों से भरी हुई है मगर उनका साहस और उनकी अदम्य इच्छाशक्ति, पाठकों के लिए एक प्रेरणा है। औरतों के बारे में तमाम भ्रांतियाँ हैं। हम एक देवी की मूर्ती को तो पूरा सम्मान देते हैं, उसकी पूजा करते हैं, मगर असल ज़िन्दगी में उन्हें निरीह और अबला ही समझते हैं। बहुत ज़रुरत है हमें ऐसे साहित्य को प्रोत्साहन देने की जो महिलाओं के वास्तविक स्वरुप को सामने ला सके। बीबी अमृत कौर और उनके जैसी न जाने कितनी महिलायें हैं जो न तो देवी हैं और न ही अबला, मगर उनकी साधारण सी ज़िन्दगी के असाधारण उतार चढ़ाव, और उनसे जूझने की क्षमता एक बेहतरीन प्रेरक कहानी बन जाती हैं।

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पहली किताब से दूसरी किताब का सफ़र कैसा रहा?
'कॉलिंग सहमत' के शोध के दौरान मैं दो बार पाकिस्तान गया। यात्राओं के दौरान मेरा तारुफ़ बीबी अमृत कौर की कहानी से हुआ। उनकी ज़िन्दगी का संघर्ष मार्मिक होने के साथ-साथ बहुत ही प्रेरणादायक भी था। यह कहना गलत नहीं होगा की 'विछोड़ा' की एक स्पष्ट रूपरेखा मेरे ज़हन में बन चुकी थी, 'कॉलिंग सहमत' का लेखन समाप्त करने से पहले ही, और यही वजह थी की मैंने अमृत कौर की कहानी को शुरू करने मैं ज़्यादा वक़्त नहीं लगाया। क्योंकि यह कहानी सत्य घटनाओं पर थी, तो इसके रिसर्च और प्रमाणों की खोजबीन में ज़रूर मैंने अपना पूरा वक़्त दिया।
आपने ‘नानक शाह फ़कीर’ फिल्म बनाई जिसे देश-विदेश में ढेरों पुरस्कार मिले। उसके बाद कैसे आपने लेखन-क्षेत्र की ओर कदम बढ़ाया?
सहमत' का लेखन मैंने 'नानक शाह फ़क़ीर' फिल्म बनाने से बहुत पहले शुरू कर दिया था। मैं न तो अपने आप को एक लेखक मानता हूँ और न ही एक फिल्ममेकर। लोगों को बहुत ही विस्मय होता है जब मैं उनसे ऐसी बातें करता हूँ पर आप मेरा यकीन मानिये, मैंने अब तक दोनों किताबों को एक लेखक बतौर नहीं लिखा, बल्कि एक भावुक इंसान की तरह लिखा, जो बस अपनी भावनायें अपने शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना चाहता था। फिल्म बनाने का मेरा फैसला भी एक भावनात्मक निर्णय था। फिल्म या मेरी लेखनी महज़ एक माध्यम है अपने किरदारों को सम्मान देने का।

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भारतीय नौसेना के अनुभव का कितना असर आप अपने उपन्यासों में देखते हैं?
एक सैनिक ताउम्र सैनिक रहता है। नौसेना ने मुझे काफी कुछ दिया, बहुत कुछ सिखाया। सबसे बड़ी सीख दी कि देश से बढ़कर कुछ भी नहीं। हम ऋणी हैं इस देश के और शायद ये सेना का ही असर होगा कि मेरी दोनों किताबों में देश को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। एक और बड़ी सीख दी सेना ने मुझे, और वो थी महिलाओं का सम्मान करना। कोई भी सच्चा सैनिक न तो महिलाओं पर ज़्यादती कर सकता है, और न ही अपने सामने ज़्यादती होने दे सकता है।
आपके दोनों उपन्यासों के केन्द्र में महिला है। एक महिला भारत से पाकिस्तान जाती है अपने देश की खातिर, दूसरे में एक महिला को अपने परिवार से बिछड़ना पड़ता है। क्या दोनों कहानियों में विभाजन के बाद का विभाजन है या इसके जरिए आप उन कहानियों को प्रस्तुत करना चाहते हैं जो अनसुनी कर दी गईं या दोनों बातें आप सही मानते हैं?
मैं आपकी दोनों ही बातों से इत्तिफाक रखता हूँ। विभाजन ने न सिर्फ देश को बाँटा, बल्कि बहुत सी दरारों को भी बड़ा कर दिया। बँटवारे ने न जाने हमें कितनी कहानियाँ दीं मगर सब दर्द भरी। ये एक ऐसा ज़ख्म है जो कभी नहीं भरेगा और नासूर बनकर हमें दर्द देता रहेगा।
बँटवारे ने समाज का वहशियाना रूप हमें दिखाया। न जाने कितने घर उजड़े, कितने विश्वास टूटे और कितनी ज़िंदगियाँ बर्बाद हुईं। दर्द की असंख्य कहानियों में जब मैं सहमत और बीबी की कहानियों से रूबरू होता हूँ, तो मुझे इनकी कहानियों को दुनिया के सामने लाने का मन करता है। इन दोनों कहानियों मैं बहुत पीड़ा है, मगर इस पीड़ा के साथ बहुत प्रेरणा भी है। यह कहानियाँ अनसुनी हैं, और मेरी ज़िम्मेदारी बनती है कि मैं इनके जीवन का संघर्ष, त्याग और साहस सबको सुनाऊँ।

'विछोड़ा' की मुख्य पात्र बीबी अमृत कौर संघर्षशील और बेखौफ महिला का प्रतिनिधित्व करती है। वह एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व साबित होती है। आज के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो महिलायें बीबी अमृत से क्या हासिल कर सकती हैं?
मुझे लगता है की महिलाएँ बहुत ही निर्भीक और साहसी होती हैं। हर महिला अपने जीवनकाल में कभी न कभी, अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर, मेरे कहानी के पात्र बीबी अमृत कौर की झलक ज़रूर देती है। औरतें जिस तरह से समाज की विकृत मानसिकता और पक्षपात को झेलते हुए, अपने परिवार का और खुद का सम्मान बनाये रखती हैं, यह सचमुच असाधारण है। मेरी किताब औरतों के इसी जज़्बे को सलाम करती है। इससे पुरुष वर्ग भी काफी कुछ सीख सकता है जैसाकि अमृत कौर का साहस, उनका धीरज और क्षमा करने का हौंसला।
भविष्य की क्या योजनायें हैं –फिल्मों पर फोकस रहेगा या पूरी तरह लेखन-क्षेत्र में समय देंगे?
जैसाकि मैंने आपको पहले भी बताया, न तो मैं अपने आप को एक लेखक मानता हूँ और न ही फ़िल्मकार। मुझे जब-जब कोई कहानी प्रेरणा देगी, मैं उसे लोगों तक पहुँचाना चाहूँगा, ज़रिया चाहें किताब हो या फिल्म। मुझे यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी लगती है, कि जो कहानियाँ और लोग मुझे प्रेरित कर रहे हैं, मैं उनके बारे में युवा वर्ग और आने वाली पीढ़ी को बताऊँ।
~समय पत्रिका.