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सचिन के लिए खेल ज़िन्दगी है. उन्होंने मैदान में हर एक पल को ख़ास मानकर जिया है. |
क्रिकेट के खेल से नाम और शोहरत कमाने वाले सचिन तेंदुलकर बचपन में आम बच्चों की तरह शरारती थे। उन्होंने हर बार इस बात का जिक्र किया है कि कैसे उनके कोच रमाकांत आचरेकर ने उनकी अपार ऊर्जा को एक खेल में लगाया जिससे एक महान क्रिकेटर का जन्म हुआ। इस पुस्तक में हम सचिन के बचपन के कई अनजाने किस्से भी पढ़ेंगे। कई ऐसे खुलासे भी सामने आयेंगे जिन्हें जानकर पाठक हैरान हो सकते हैं। अपने जीवन के मशहूरियत के दिनों से विवादास्पद काल तक को सचिन ने तफसील से बताया है।
पुस्तक के प्रत्येक अध्याय को बहुत ही सरल तरीके से लिखा गया है। रोचक शैली में लिखी यह किताब युवाओं को प्रेरित करती है।
सचिन तेंदुलकर लिखते हैं : भले ही क्रिकेट मेरी दुनिया की धुरी रहा हो, लेकिन मेरा परिवार मेरे लिए लंगर के समान है। उन लोगों ने न तो मुझे जबरन धकेला और न जरूरत से ज्यादा मेरी तारीफों के पुल बाँधे, लेकिन उन्होंने मेरे लिए जो सबसे जरूरी चीज की- क्रीज पर मेरे कदमों को तलाशा और मुझे खेलने दिया, खेलने दिया, खेलने दिया। एक तरफ, लंबे-लंबे बस सफर थे, मेरी खाली जेबें थीं, खींचने-उठाने के लिए भारी-भरकम किट बैग था, एक जोड़ी क्रिकेट ड्रेस थी, जिससे मुझे सामंजस्य बैठाना था, अंडर-15 वेस्ट जोन के लिए चयनित न हो पाना था...और वहीं दूसरी तरफ, एक खास फ्रूट कॉकटेल था, जिसको मेरे पिता समय-समय पर जश्न के तौर पर मुझे दिलाते थे। स्कूल क्रिकेट में मेरे पहले शतक के बाद आचरेकर सर का घर पर रात के खाने पर आना, अंडर-14 और अंडर-16 टीमों के साथ खेलना...इसे एक पूर्ण और रोलरकोस्टर सफर ही कहा जाएगा।

पुस्तक में सचिन ने प्रेरणादायक टिप्स भी दिए हैं। 16 नवंबर 2013 को वानखेड़े स्टेडियम में उनके द्वारा दिया गया विदाई भाषण भी किताब में दिया गया है जिसमें उन्होंने कई पहलुओं पर चर्चा की है। उनके लिए खेल ज़िन्दगी रहा है। उन्होंने मैदान में हर एक पल को ख़ास मानकर जिया है।
तेंदुलकर किताब में लिखते हैं : स्पर्धा का स्वागत करें, क्योंकि चुनौतीपूर्ण हालात में ही आप कुछ नया सुधार करने लायक सीखते हैं, और तभी आप सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं.

सचिन लिखते हैं : क्रिकेट जीवन की शुरुआत से ही मैं हारने से नफरत करता था। लेकिन खेल में यह बहुत जल्दी सीख लेना होता है कि हारने पर आप बहुत देर तक चिंतित नहीं रह सकते और यही नहीं, जीतने पर भी आप ज्यादा देर तक इतरा नहीं सकते; क्योंकि आगे हमेशा एक नया खेल तैयार रहता है, अगला टूर्नामेंट, अगला मौका। आपको केवल एक चीज करनी होती है- गेंद पर अपनी एकाग्रता बढ़ाते जाना होता है। और मैंने ऐसा ही करने का प्रयास किया।

अपने 24 साल के लंबे करियर के दौरान शायद ही ऐसा कोई क्रिकेट रिकॉर्ड होगा, जो सचिन तेंदुलकर से अछूता रहा हो। उनकी स्ट्रोक खेलने की विशिष्ट शैली ने उन्हें ऐतिहासिक हस्ती बना दिया, क्योंकि यह उनकी ही विलक्षण क्षमता थी कि वह दुनिया के किसी भी हिस्से में और मैदान के किसी भी कोने में गेंद मार सकते थे।
सचिन तेंदुलकर हमें हर अध्याय में प्रेरित करते हैं, लिखते हैं : अगर ऐसा कुछ है, जिसे मेरे जीवन ने मुझे दिखाया, तो यह कि सपने जरूर सच होते हैं, लेकिन पहले आपको अपना सपना तलाशना होगा और उसमें पूरी तरह भरोसा करना होगा। तभी आप और आपका सपना मिलकर एक हो जाएँगे, और फिर किसी चीज या किसी के जरिए उसे अलग नहीं किया जा सकेगा।
