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करण जौहर ने बचपन से लेकर अब तक के अपने बॉलीवुड सफ़र का तफ़सील से ज़िक्र किया है. |
प्रभात प्रकाशन ने करण जौहर की पुस्तक का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया है जिसे ‘एक अनोखा लड़का’ शीर्षक दिया है। अनुवाद नितिन माथुर द्वारा किया गया है।
करण जौहर की छवि जैसाकि सभी जानते हैं बेहद सरल, रोचक और ईमानदारी से भरी है। उनकी फिल्में अलग अंदाज़ के लिए जानी जाती हैं। संगीत उनकी जान होता है। कहानियाँ बोर नहीं करतीं, रिश्ते-नाते-प्यार-दुलार कूट-कूटकर भरा होता है। कहीं एक्शन-रोमांस बहता है, तो कहीं वे रियलिटी कार्यक्रमों में आकर सबका मन मोह लेते हैं। कुल मिलाकर करण जौहर एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने बॉलीवुड को नयी पहचान दी है। उन्होंने ज़िंदादिली और ‘कूल-बंदा’ होने की परिभाषा को भी नयी पहचान दिलाने की कोशिश की है। यह उनकी कामयाबी का मुख्य राज हो सकता है।
करण जौहर लिखते हैं,‘मैं जिन्दगी की ट्रेडमिल पर निरंतर दौड़ रहा हूँ। इसके सभी गेयर और लीवर मेरे हाथ में हैं। मैं कभी भी पहले से दसवें गेयर पर जा सकता हूँ। यह मेरी इच्छा पर निर्भर है। लेकिन मैं रातोंरात तो इस स्तर पर नहीं पहुँचा। यह मेरी कई वर्षों की मेहनत का नतीजा है।’

इस पुस्तक में करण जौहर ने बचपन से लेकर अब तक के अपने बॉलीवुड सफ़र का तफ़सील से ज़िक्र किया है। करण जौहर ने 'दिलवाले दुलहनिया ले जायेंगे' से अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन 'कुछ कुछ होता है' ने उनकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल कर रख दी।
इस फिल्म को लेकर करण बेहद डरे हुए थे। वे लिखते हैं,‘इस फिल्म में बहुत पैसा लग चुका था। इससे पूर्व और भी कई फिल्मों में नुकसान हो चुका था। हमारे लिए यह अंतिम प्रयास के जैसा था। अगर यह भी असफल रहता तो हम आगे कभी फिल्म नहीं बना सकेंगे। इस फिल्म के लिए मेरे पिता ने भारी मात्रा में कर्ज लेने के अलावा अपनी भी सारी जमा-पूंजी लगा रखी थी। उस दौर में इसे बनाने में 14 करोड़ रुपए लगे थे। यह बहुत बड़ी रकम थी। खासतौर पर एक नए निर्देशक के लिए।’
थिएटर में प्रीव्यू के दौरान करण की माँ और पिता यश जौहर बेहद भावुक हो गए। वे करीब पैंतालीस मिनट तक रोते रहे। उनके पिता बोले,‘मुझे तुम पर गर्व है।’ उन्होंने बाद में यह भी कहा,‘यह दुनिया की सबसे बेहतरीन फिल्म है। मेरे बेटे ने दुनिया की सबसे बेहतरीन फिल्म बनाई है।’ करण की माँ बोलीं,‘मुझे यकीन नहीं आ रहा कि यह मेरे बेटे ने किया है! यह दुनिया और यह फिल्म उसकी बनाई हुई है।’
करण जौहर ने इस पुस्तक में सिंगापुर में आईआईएफए के दौरान दिए एक खूबसूरत भाषण का ज़िक्र किया है जिसे पाठक बार-बार पढ़ना चाहेंगे। यह इस पुस्तक के सबसे नायाब शब्द हैं। भाषण के बाद अमित बच्चन ने कहा,‘मुझे लगता है कि यश जौहर के बारे में जो कुछ भी कहा जा सकता था, वह उनके पुत्र करण ने बखूबी कह दिया है। ऐसे बहुत ही कम पिता हैं, जिनका करण जैसा पुत्र हो और ऐसे बहुत थोड़े से करण हैं, जिनके यशजी जैसे पिता हों।’ यश जौहर का निधन 26 जून 2004 को हुआ।
‘काल’ फिल्म को बनाने से पहले करण को काफी सोचना पड़ा। यह उनके लिए अलग अनुभव रहा। बाद में उन्होंने ‘कभी अलविदा न कहना’ फिल्म बनाई जिसका विषय बहुत लोगों को नहीं पचा। उन्हें तीखी आलोचना का भी सामना करना पड़ा।
मसलन उन्हें कब प्यार हुआ, कब उन्होंने अपना कौमार्य खोया आदि। उन्होंने यह भी लिखा है कि जब भी उनका दिल टूटा, वे ओर बेहतर कहानी लिख पाए। वह लिखते हैं,‘दिल टूटने के बाद मैंने सबसे बेहतरीन लेखन किया। दिल टूटने के बाद मैंने ‘ऐ दिल है मुश्किल’ लिखी, जिसे बाद में निर्देशित किया। यह बहुत अजीब है कि दिल टूटना भी संतोषजनक हो सकता है।’
एक जगह करण जौहर लिखते हैं,'सीखने के लिए आपको असफल होना पड़ेगा। असफल होकर सीखने पर आप बने रहना सीख जाएंगे। सफलता और असफलता जीवन को आगे बढ़ाती है। केवल सफल होने पर यह संभव नहीं है।'
यह किताब हमें जीवन के कई अहम सबक भी सिखाती है।