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मनुष्यता को जीवित बने रहने के संघर्ष के से ऊपर उठा चुकने के बाद अब हम मनुष्यों को देवताओं के रूप में देखना चाहेंगे. |
युवाल नोहा हरारी चर्चित लेखक हैं। उनकी पुस्तक ‘होमो डेयस : आने वाले कल का संक्षिप्त इतिहास’ का हिन्दी अनुवाद मंजुल पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया है। अनुवाद मदन सोनी ने किया है। यह पुस्तक कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। यह किताब बेस्टसेलिंग रही है। युवाल नोहा हरारी की इससे पूर्व लिखी पुस्तक ‘सेपियन्स : मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास’ दुनियाभर में चर्चित है।
‘सेपियन्स’ में लेखक ने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की है जो बहुत अधिक दूर नहीं है, और जिसमें हम सर्वथा नयी चुनौतियों का सामना करने वाले हैं। वहीं, ‘होमो डेयस’ में उन परियोजनाओं, स्वप्नों और दु:स्वप्नों की पड़ताल की गयी है जो इक्कीसवीं सदी को आकार देने वाले हैं – मृत्यु पर विजय प्राप्त करने से लेकर कृत्रिम जीवन की रचना तक। यह पुस्तक संपूर्ण मानव जाति से सवाल भी करती है कि हम आखिर जा कहां रहे हैं? हम अपनी ही विनाशकारी शक्तियों से इस नाजुक संसार की रक्षा कैसे करेंगे?
होमो डेयस का मतलब है मानव देवता या अतिमानव। युवाल नोहा हरारी पुस्तक में कहते हैं कि मनुष्यता को जीवित बने रहने के संघर्ष के पाश्विक स्तर से ऊपर उठा चुकने के बाद अब हम मनुष्यों को देवताओं के रूप में देखना चाहेंगे। होमो सेपियन्स को होमो डेयस में बदलना हमारा उद्देश्य है।

लेखक ने पहले अध्याय में अकाल, महामारी और युद्धों का जिक्र किया है। उन्होंने सीधी और सरल भाषा में कहा है कि आजकल लोगों के मरने की वजह भूख नहीं बल्कि ज्यादा खाना है। उसी तरह दूसरे के हाथों मारे जाने के बजाय आत्महत्या अधिक हो रही हैं। इसे समझाने के लिए लेखक ने कई तर्क भी दिए हैं जिन्हें पढ़ना बेहद दिलचस्प है।
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होमो सेपियन्स अकेली वानर प्रजाति 70,000 सालों के भीतर भूमण्डल के पारिस्थितिकीय तन्त्र को मूलगामी और अपूर्व तरीकों से बदलने में कामयाब रही है.

हम अपने सुखों को चिरस्थायी बनाने के लिए पता नहीं क्या-क्या करने में जुटे हैं। यही वजह है हर साल हम पहले से बेहतरीन दर्द निवारक, नए खाद्य पदार्थों के स्वाद, आदि ला रहे हैं। हम अपने आराम को बढ़ावा दे रहे हैं और अपने सुखों को नए आयाम दे रहे हैं।
किताब में मनुष्य को देवताओं के स्तर पर ऊँचा उठाने के लिए लेखक ने तीन रास्ते सुझाये हैं : जैव अभियान्त्रिकी (बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग), साइबोर्ग अभियान्त्रिकी और अजैविक सत्ताओं की अभियान्त्रिकी।
नए मजहबों के उभरने की संभावना अफ़गानिस्तान की गुफ़ाओं या मध्यपूर्व के मदरसों से नहीं है. इसकी बजाय ये अनुसन्धान प्रयोगशालाओं से उभरेंगे.

संज्ञानात्मक क्रान्ति अकल्पनीय नए क्षेत्रों तक होमो डेयस की पहुंच मुमकिन बना सकती है और उनको आकाशगंगा के स्वामियों में बदल सकती है.

हमें खुद के सामने और व्यवस्था के सामने यह साबित करते रहना अनिवार्य है कि हम अभी भी मूल्यवान हैं। और मूल्य अनुभव करने में नहीं, बल्कि इन अनुभवों को मुक्त-प्रवाहित डेटा में बदलने में निहित है।

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हम इंटरनेट-ऑफ़-ऑल-थिंग्स को इस उम्मीद से गढ़ने का उद्यम कर रहे हैं कि यह हमें स्वस्थ, सुखी और शक्तिशाली बना देगा, लेकिन जब इंटरनेट-ऑफ़-ऑल-थिंग्स काम करने लग जाएगा, तो मनुष्य इंजीनियरों से चिप्स में और फिर चिप्स से डेटा में सिकुड़कर रह सकते हैं, और अन्ततः हम डेटा के तेज़ प्रवाह में उसी तरह घुल सकते हैं, जिस तरह उफनती नदी में मिट्टी का एक ढेला गल जाता है.

जैसे ही गूगल, फेसबुक और अन्य ऐल्गोरिदम सर्वज्ञ मार्गदर्शक बन जाते हैं, वे बहुत आसानी से एजेंटों और अन्तत: सम्प्रभु सत्ताओं का रूप ले सकते हैं.
इक्कीसवीं सदी की नई प्रौद्योगिकियां मानववादी क्रान्ति को उलटकर मनुष्यों को उनकी प्रभुता से वंचित कर सकती हैं, और उसके स्थान पर सारा प्रभुत्व अ-मानवीय ऐल्गोरिदमों को सौंप सकती हैं.
यह पुस्तक बेहद दिलचस्प तरीके से युवाल नोहा हरारी ने लिखी है। उन्हें इतिहास की अच्छी खासी समझ है और वे हर बात को तथ्य के साथ रखने के लिए जाने जाते हैं। यह किताब हमें भविष्य की संभावनाओं की खोज में ले जायेगी। हमारी प्रजाति का भविष्य क्या होगा, यह होमो डेयस हमें विस्तार से बताती है। साथ ही यह भी बताती है कि तकनीक का इसमें कितना बड़ा योगदान होगा?
यदि आपने युवाल की ‘सेपियन्स‘ पढ़ी है तो यह उससे आगे की बात करती है। जहां उसमें हमारे बीते हुए कल की बात हो रही थी, वहीं इसमें हमारे आने वाले की चर्चा हो रही है।