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ये कहानियाँ तुर्की की हैं। यहाँ भारत, पाकिस्तान से लेकर इराक भी समाया हुआ है. |
यह किताब हमारे मन के धागों को छू जाती है। कहानियों के इस संग्रह में दर्द है, प्यार है, जोखि़म है, बेबसी है, जुर्म है, कसक है, उन्माद है, संघर्ष है, और सुकून भी।
ये कहानियाँ तुर्की की हैं। यहाँ भारत, पाकिस्तान से लेकर इराक भी समाया हुआ है। चिलर इल्हान ने समाज की बात की है, रिश्तों की बात की है और उस दुनिया के हिस्सों के दर्द को भी दिखाया है जहाँ ज़िन्दगी और मौत का खेल जारी है।
इन कहानियों में बेबसी की ज़िन्दगी गुज़ारते हुए लोग हैं। सपनों में जीती हुईं लड़कियाँ, ख्वाबों को कुचलते हुए देखती औरतें, गरीबी और भूख से लड़ते लोग, सब है यहाँ जिसे पढ़कर कई बार आँखें नम भी हो जाती हैं। कई बार पाठक निराशा और अन्याय की तस्वीर को देखकर सोच में डूब जाता है। मौत, सम्मान के लिए हत्या, बलात्कार, आतंकवाद, बाल-विवाह आदि से जुड़ा यह संग्रह बेहद ख़ास किताब है।
प्रवास की उदासी और इसके ख़ालीपन को अपने में समाहित किए समाज की संस्कृति को दर्शाती कहानियाँ जो न सिर्फ लगातार प्रवासन का दर्द झेल रही है, बल्कि नैतिक पतन का शिकार होते-होते, खुद में ही जड़ हो गई हैं।

पुस्तक को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है-‘प्रवास’, ‘जुर्म’, ’बदला’, ’रूदन’ और ’वापसी’।
इस पुस्तक के लिए चिलर इल्हान को साहित्य के लिए यूरोपीयन यूनियन सम्मान से नवाज़ा गया है।
अपने सफर पर निकलने से एक दिन पहले उसने मुझे फोन किया था और कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो मैं उसकी चारों बहनों को उसका ताबूत ले जाने दूं। मरने के बाद भी वो शोहरत की भूखी थी।

पता नहीं कैसे कुछ मांओं की नींद हमेशा बहुत गहरी होती है, और कुछ घरों के पिता हमेशा अजनबी होते हैं।

मैं अपने पिता से नफ़रत करती थी। मैंने सारी ज़िन्दगी उनसे नफ़रत की थी, सब्र के साथ, और तड़प-तड़पकर मरने की दुआएं मांगती थी। उन्हें मरने में बहुत ज़्यादा समय लगा।

संग्रह की कहानियाँ सादगी से भरी हैं। यहाँ शब्दों का शोर सुनाई नहीं देता और न ही बेवजह विषय को खींचा गया है। यदि आपको कुछ ऐसा पढ़ना है जिसे पढ़कर आप संतुष्टी का अहसास कर सकें तो चिलर इल्हान की यह पुस्तक आपके लिए ही है।