ज़िन्दगी के सच को बयान करतीं ‘कुछ धुंधली तस्वीरें’

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यात्रा बुक्‍स ने विश्‍वजीत का एक ख़ास संग्रह प्रकाशित किया है जिसका नाम है ‘कुछ धुंधली तस्‍वीरें’.
विश्‍वजीत शब्‍दों से बहुत कुछ कह जाते हैं। उनके पास एक कवि का कोमल ह्रदय, शब्‍दों की लय और जीवन के वास्‍तविक रंगों की पहचान है। उनकी कविताओं में सच की झांकी तो मिलती ही है, साथ में विश्‍वजीत समाज में घटते-बनते-बिगड़ते समीकरणों को भी बताते चलते हैं।

यात्रा बुक्‍स ने विश्‍वजीत का एक ख़ास संग्रह प्रकाशित किया है जिसका नाम है ‘कुछ धुंधली तस्‍वीरें’। इस संग्रह को पढ़ने का अपना अलग ही आनंद है। विश्‍वजीत का कहने का अंदाज़ ऐसा है कि उनके साथ हम भी कविमय हो जाते हैं।

‘पत्‍ते’ कविता की इन पंक्तियों को देखें जहां विश्‍वजीत बहुत गहराई से अपनी बात कहते हैं :
‘पत्‍ते अपनी हरी चमड़ी के पीछे
अपनी हडि्डयां छुपा लेते हैं
मगर
जब वही पत्‍ते सूख जाते हैं
सारी चमड़ी उतर जाती है
रह जाता है केवल
हडि्डयों का एक पिंजर
चमड़ी का खोल तो बाक़ी है
बस जीवन की हरियाली तक।’

केदारनाथ सिंह यह मानते हैं कि विश्‍वजीत की कविताओं में ‘कल्‍पना की कोई मिलावट नहीं।’ वे कहते हैं,’इन कविताओं की जिस चीज़ ने मुझे सबसे अधिक आश्‍वस्‍त किया, वह है इनके भीतर की सच्‍चाईा यह सच एक व्‍यक्ति का प्रत्‍यक्ष अनुभूत सच है। ... कवि ने जो महसूस किया उसे भरसक कम-से-कम शब्‍दों में –और जहां तक हो सका, जस-का-तस न्‍यूनतम शब्‍दों में रख दिया है। यह हिंदी कविता का अलग अंदाज़ है।’

कवि ने इस संग्रह को ‘अनुभव’, ‘बंधन’, ‘समाज’, ‘राजनीति’ और ‘यादें’ में बांटा है जिसके अंतर्गत कुछ कविताओं को प्रकाशित किया गया है। कवितायें जि़न्‍दगी के सच को बयान करती हैं। उन तस्‍वीरों को बेबाकी से बयान करती हैं जिनसे समाज जुड़ा है, और जो हिस्‍सा हमें उससे जुड़ने को कहता है।

‘मेरा शहर’ कविता से ये पंक्तियां देखें -
‘इसी शहर में रहता हूं मैं
कैसे छोडूं  उसे 
जो हर पल 
हर घड़ी
रुप बदल के मोह लेता मुझे!

‘पेड़ों का गाना’ शीर्षक वाली कविता गहरी बात कह जाती है, देखें -
‘कभी धीमी हवा में दर्द घोलते
कभी तूफान के साथ गुस्‍से से गरज़ते
और जब तेज़ हवा चले
तो अपने जीवन का
गीत सुनाते
मुझे अक्‍सर रहता है
उसी एक गाने का इंतज़ार।’

इस संग्रह में कवि पाठक को खुद से जोड़ता है, इसी बहाने पाठक प्रकृति से जुड़ता है, वह समाज से जुड़ता है, वह कवि की यादों से जुड़ता है, और उसकी समझ से भी जुड़ जाता है।

विश्‍वजीत की कल्‍पनाओं का सागर पन्‍नों में हिलौंरे लेता है। अजीब तरह की खुशबू है, सुकून है उनकी कविताओं में जो हमें प्रभावित करती है। कवि होने का मतलब पाठक को संतुष्‍ट करना है, पाठक को यह जताना है कि वातावरण लय में है, सुकून में है, और समाज की, उसकी खुद की बात करना है –यही तो विश्‍वजीत की कवितायें रच रही हैं। उनके शब्‍दों में हल्‍की-फुल्‍की और कोमल भावनाओं की आवाज़ है।

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‘प्रेम’ कविता की पंक्तियां -
‘चलो एक साथ
इस रात
बैठें
बतियाते
सुबह तक
तभी तो चांद बताएगा
सूरज को
हमारे प्रेम की कहानी।’

उम्र की जड़ें अनुभव से जुड़ी होती हैं। जि़न्‍दगी की कहानी में नींव का महत्‍व होता है। ‘जड़ें’ कविता की पंक्तियां देखें -
‘बूढ़ा इंसान अपनी जड़ों को खोज रहा
शहर में रहता हुआ, अपने गांव को याद करता हुआ
सब कुछ होते हुए भी
अपने बचपन की आज़ादी को न भुला सका
क्‍या जड़ें हमें सीमित रखती हैं
या हमको देती हैं एक नींव का बल?’

न्‍याय की पड़ताल करती विश्‍वजीत की कविता ‘अंधा न्‍याय’ वास्‍तविकता दर्शाती है। देखें -
‘जो आज तक थे मुजरिम
आलीशान काली गाड़ी में चढ़ कर
अपने-अपने बंगलों को गए
और मैं?
मैं तो उसी बस के इंज़ार में खड़ा रहा
जो मुझे ले गए
ऐसी एक कचहरी की ओर
जहां न्‍याय
बिकता न हो।’

राजनीति पर विश्‍वजीत ने बहुत कुछ बेबाकी से बयान किया है। ‘लालच की मंडी’, ‘कुरूक्षेत्र’, ‘राक्षस’ कवितायें सच बयान करती हैं। देखें -
‘यही कर
जीवित रखता है
उस राक्षस को
हमारे लालच से ही जीवित है
यह रिश्‍वत का राक्षस
जो इस लाल पत्‍थर की इमारत में रहता है।’

आखिर में विश्‍वजीत की ये पंक्तियां -
‘मैं तो किताबों की संगति में मग्‍न
बंद हूँ अपने कमरे में
मुझे क्‍या परवाह
चार दीवारों के बाहर
आखि़र होता क्‍या?’

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