गाथा रामभतेरी : बनजारों और राजघरानों के संबंधों की कहानी

राजस्थानी बनजारों और राजघरानों के कई विस्मयकारी, मनोरंजक और छुपे रहस्यों की जानकारी इसमें मिलती है.
कई कहानी संग्रह तथा उपन्यासों की लेखिका कुसुम खेमानी की पुस्तक 'गाथा रामभतेरी' बनजारों की गोद में पली-बढ़ी रामभतेरी नामक एक ऐसी कन्या की कल्पित कहानी है जो आगे चलकर बनजारा समाज के अलावा तत्कालीन राजघराने के राजकुमार तक को प्रभावित करती है तथा संपूर्ण समाज के लिए सामाजिक सुधारों और सेवाओं के बल पर प्रेरणास्रोत बनती है।

राजशाही के देशकाल के घटनाक्रमों के चरित्रों को उपन्यासी कलेवर प्रदान करते हुए लेखिका ने कहानी का शुभारंभ बनजारन गाली-गलौच संवाद से शुरु किया है। आधुनिक लेखन में इसे प्रचलन में लाया जा रहा है तथा फिल्मी दौर में आजकल गालियाँ मौलिक संवाद का अंग बनती जा रही हैं। शायद लेखिका ने पाठकों में उपन्यास को रुचिकर बनाने को ऐसी भाषा-शैली का प्रयोग किया। आगे पूरे उपन्यास में इस तरह की गाला-गलौच का कोई जिक्र नहीं है। शुरुआती संवाद यह है -'ऐ दाखी रांड! खसम खाणी! चूहड़ी! कुंजड़ी! हरामखोर! रांड! तू आधी रात यहाँ क्यूँ मरने आई है?''

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राजस्थानी बनजारों और राजघरानों के कई विस्मयकारी, मनोरंजक और छुपे रहस्यों की जानकारी इस पुस्तक में मिलती है। हालांकि बनजारा संस्कृति की पृष्ठभूमि पर लिखी पुस्तक में लेखिका संस्कृतनिष्ठ हिन्दी को लेखन का आधार बनाये हुए हैं। अधिकांश संवाद उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद के पात्रों की भाषा-शैली में हैं। रामभतेरी बनजारों में पलने-बढ़ने के बावजूद शास्त्रीय हिन्दी में संवाद करती है।

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