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मंजीत हिरानी हर अध्याय में कुत्ते के ज़रिए संदेश देने की कोशिश करती हैं. |
हिरानी जी की यह किताब इसलिये भी ख़ास है क्योंकि यहाँ हम एक पशु-प्रेमी की नज़र से पालतू कुत्ते की ज़िंदगी को करीब से जानकर प्रेरित और गर्व महसूस कर सकते हैं। हमारे मन में बड्डी की कहानी पढ़ते-पढ़ते ढेरों सवाल उमड़ते हैं जिनका उत्तर लेखिका देने की कोशिश करती हैं।
प्रभात प्रकाशन ने मंजीत हिरानी की पुस्तक 'How to be Human' का हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया है। रचना भोला 'यामिनी' ने अंग्रेज़ी भाषा से हिंदी में अनुवाद किया है।
यह अपनी तरह की अलग कोशिश है। यह कहानी बड्डी नामक एक कुत्ते की है जिसे मंजीत हिरानी ने बचपन से पाला। हालांकि शुरुआत में उन्हें थोड़ा अजीब लगा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता बड्डी से उनका जुड़ाव मजबूत होता गया। उन्होंने बड्डी से हर दिन कुछ अच्छा सीखा।
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मंजीत हिरानी लिखती हैं,'हमारा कुत्ता बड्डी, जब घर पर आया तो वह छह सप्ताह का था। मैंने बचपन में कभी कोई पालतू जानवर नहीं रखा और सच्चाई यही है कि मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता था। वास्तव में, अगर मुझे पता होता कि किसी के घर में कुत्ता है तो मैं कभी उस घर में नहीं जाती थी।'
मंजीत हिरानी ने पाया कि किस तरह एक कुत्ता हमारी जिन्दगी को पहले से अधिक सुखद बना सकता है। किस तरह हम इंसान इन प्राणियों से जीने के नुस्खे सीख सकते हैं। यह प्रेम, करुणा, परोपकार तथा मानवीयता जैसे जीवन-तत्त्वों को सरलता से सिखाने की अद्भुत क्षमतावाली अत्यंत प्रेरक व पठनीय पुस्तक है।
वे लिखती हैं,'बड्डी मेरे सामने ही बड़ा होने लगा और मैंने उसके और हमारे जीवन को गौर से देखते हुए, समानताएं खोजनी शुरु कर दीं। उसे कुदरत बहुत भाती थी और वह अपना अधिकतर जीवन कुदरती तौर पर ही बिताता था।'
20 अध्यायों में सिमटी यह किताब शुरु से अंत तक रोचकता से भरी है। पहले अध्याय में दूध वाले के साथ घटी घटना मजेदार है, लेकिन गहराई से देखा जाए तो उसमें एक संदेश छिपा है। बड्डी जब दो साल का हो जाता है तो उसकी हरकतें अलग हो जाती हैं। मंजीत के अनुसार 'अब वह जवान हो गया है।' वह मेहमानों को तंग करता है, सोफे आदि पर उछलकूद करता है। लेखिका ने बहुत ही सहजता से गहरी बात कह दी -'इस समाज को यह एहसास नहीं होता कि अगर शरीर को उसकी प्राकृतिक घड़ी के अनुसार न चलने दिया जाए, तो ऐसे में और भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।' उसके बाद उन्होंने अपने बेटे और उसके दोस्तों का जिक्र करते हुए ज्ञान भरी बातें कीं।
मंजीत हिरानी हर अध्याय में कुत्ते के ज़रिए संदेश देने की कोशिश करती हैं। उनके पास ज्ञान का जो भंडार है, जो उन्होंने बड्डी को देखकर महसूस किया है, और जो समाज में आजकल चल रहा है, उसका आकलन करने के बाद मंजीत अपना पक्ष रखती हैं। वे विचारों को खुला छोड़ने की बात करती हैं, लेकिन वे यह भी कहती हैं कि हर कोई चीज़ एक सीमा में होनी चाहिए।
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तीसरा अध्याय अभिभावकों के लिए बेहद जरुरी हो जाता है। मंजीत हिरानी ने इसमें पैरेंटिंग को समझाया है। वे लिखती हैं,'हमें प्रकृति और विद्वानों से पैरेंटिंग की खूबियाँ सीखनी चाहिए ताकि एक लंबा, स्वस्थ और प्रसन्नतापूर्ण जीवन जी सकें।'
इस पुस्तक की ख़ास बात यह है कि हम एक कुत्ते के जरिए जिंदगी जीने के नुस्खे सरलता के साथ सीख रहे हैं। लेखिका की तकनीक शानदार है जिसे हल्के-फुल्के अंदाज़ में उन्होंने प्रस्तुत किया है।
बड्डी का मन पवित्र है। वह दिल में किसी के लिए कोई द्वेष भाव नहीं रखता। वह देने में यकीन करता है, इसलिए हमेशा खुश रहता है। लेखिका कहती हैं कि किसी की मदद करके उसके चेहरे पर मुस्कान लाना अपने आप में एक संतोषदायक अनुभव हो सकता है। यही वजह है कि हम बड्डी को प्रसन्न पाते हैं।
पुस्तक के एक अध्याय में अनुशासन और नियम-कायदे के जीवन पर चर्चा की गयी है। मंजीत लिखती हैं,'बड्डी जैसा उपद्रवी कुत्ता भी थोड़े-से प्रशिक्षण के बाद घर के साधारण नियमों को समझ गया और उनका पालन करता है। इस देश के नागरिक होने के नाते हमें भी ऐसा ही करना चाहिए।'
बड्डी की यह खूबी है कि वह आज में जीता है। तभी लेखिका कहती हैं,'हमें सदा आनंद और उत्साह से परिपूर्ण होकर, बड्डी की तरह वर्तमान में जीना सीखना चाहिए।' असल में यह हमें आतंरिक तौर पर व्यवस्थित करने में सहायक सिद्ध होगा। हमें समझदार और ज्ञान के समग्र मेल के साथ जीवन का लुत्फ उठाने को प्रेरित करेगा।
पुस्तक में बड्डी को मस्तमौला बताया गया है जो अपने दिल और दिमाग से काम लेता है। उसका धार्मिकता या जीवन-मरण से कोई लेना-देना नहीं। वह अपनी दुनिया में खाता-पीता है, मौज करता है। बेहद चुटीले अंदाज़ में मंजीत हिरानी ने बड्डी और मछलियों के तालाब की बात कहकर गहरा संदेश दिया है। कहती हैं,'हमारे तालाब में कभी सैंतालीस मछलियाँ थीं, जो अब केवल बत्तीस रह गयी हैं। हारकर, हमें तालाब के आसपास बाड़ लगवानी पड़ी। वह अब भी उस जगह तक जाने के लिए कोई-न-कोई जुगत लगाता रहता है। मानसून के मौसम में वह मेढकों को चैन से जीने नहीं देता।' मंजीत कहती हैं,'अपने आसपास फटकने वाले किसी भी ऐसे बड्डी से सावधान रहें। अपनी लड़ाई स्वयं लड़ने को तैयार रहें।'
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'ज्योतिष' शीर्षक वाले अध्याय में बड्डी के जरिए लेखिका ने बताया है कि ग्रहों की चाल से परेशान होने की आवश्यकता नहीं। वह हमें किसी भी तरह क्षति नहीं पहुंचा सकते। सिर्फ उनका आनंद लें, अध्ययन करें, समझें और प्रेम करें। उनका मानना है कि नियति का संबंध ग्रहों से नहीं, हमारे प्रत्यनों से होता है। बाकी सब भ्रम है।

लेखिका ने अपने बेटे को बड्डी से सीखने की हिदायत भी दी है। वह उसे अपना गुरु माने तो जीवन में कभी भी मात नहीं खायेगा। इसके कुछ कारण हैं :
1. बड्डी बहुत होशियार है।
2. वह बहुत जल्दी सीख लेता है।
3. वह बहुत संवेदनशील है। हर चीज़ को गहराई से महसूस करता है।
4. बड्डी अपनी भूल का एहसास करता है। तथा उसे दोहराने की कोशिश नहीं करता।
5. वह सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है। इसलिए प्रसन्न रहता है।
6. वह संतुष्ट है इसलिए दुखी नहीं है।
7. वह भलाई में यकीन करता है।
8. बड्डी अंधविश्वासी नहीं है। इसलिए डरकर जीवन नहीं जीता।
यह पुस्तक उस उजाले की तरह है जो नया एहसास लेकर आता है। ऐसा उजाला जो ज़िन्दगी के सूखे रास्तों को हरियाली से भर देता है। और शायद कई बार उससे भी ज़्यादा उत्साहित महसूस कराता है।
''पालतू जानवर आपके जीवन से अकेलापन, तनाव और ऊब को घटाते हैं।''
यह किताब हमें ख़ुद के करीब भी लाती है। हम कौन हैं? क्यों हम ऐसे हैं? हमें क्या चाहिए? बड्डी एक संत की भूमिका में भी है। वह जीने के बेहतरीन गुर सिखा सकता है। बुरे रास्ते से अच्छे मार्ग पर ले जा सकता है। रिश्तों की क़ीमत होती है, और भरोसा जताना-जीतना अहमियत रखता है।
बड्डी एक गुरु की तरह मौन धारण कर उपदेश देता है। ज़रा गौर करने पर हम उसकी दुनिया का हिस्सा होते हैं, और वो हमारा!
पुस्तक हमारी सोच को साफ करती है। यकीनन मंजीत हिरानी के पालतू बड्डी की कहानी प्रेरित करती है, उत्साहित करती है तथा जिंन्दगी जीने का अच्छा मकसद देती है। इस पुस्तक को जरुर पढ़ना चाहिए क्योंकि ज़िन्दगी की सीख देने वाले 'बड्डी' से आपको भी प्यार हो जायेगा!
जीने के नुस्खे बड्डी से सीखें
लेखिका : मंजीत हिरानी
अनुवाद : रचना भोला 'यामिनी'
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 144
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लेखिका : मंजीत हिरानी
अनुवाद : रचना भोला 'यामिनी'
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