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जिन्ना की प्रेम कहानी पर लिखी इस किताब में हम एक अलग ही जिन्ना से रूबरू होते हैं. |
मोहम्मद अली जिन्ना पूरा नाम था उनका जो मुंबई के सबसे ज्यादा फीस लेने वाले मशहूर बैरिस्टर थे। वकालत के अलावा आज़ादी के लिये चल रहे संघर्ष में उनकी खास भूमिका थी। अंग्रेज आलाकमान से ख़तो किताबत कर उनकी ही भाषा में बेहतर तरीके से जिरह कर अपनी बात मनवाने वाले जिन्ना की गिनती उस दौर के दस बड़े राष्ट्रवादी नेताओं में होती थी। और उन्हीं जिन्ना ने अपने पारसी दोस्त सर दिनशा पेटिट की बेहद खूबसूरत बेटी रूटी से प्रेम विवाह किया था। उस दौरान जिन्ना बयालीस साल के तो रूटी की उमर अठारह साल थी। ये उस दौर का लव जिहाद तो कतई नहीं था हाँ इसकी शुरूआत रूटी की ओर से ही हुई थी जो अपने घर आने वाले जिन्ना की विद्वता और उनके जिरह करने की अदा पर फिदा हो गयी थीं।
उस दौर में जिन्ना के लिये ये शादी करना आसान नहीं था क्योंकि उमर के उस पड़ाव तक उन्होंने इस बारे में सोचा ही नहीं था उनके लक्ष्य बड़े थे और वो अपने इन लक्ष्यों के आसपास किसी को फटकने भी नहीं देते थे। अपने परिवार तक को नहीं। रूटी के लिये तो ये और भी मुश्किल था मगर वो तो दीवानी थी। उसने अपने परिवार के सामने सोलह साल की उमर में ही ये फैसला सुना दिया था कि शादी तो वो जिन्ना से ही करेगी और अठारह की होते ही उसने घर से भाग कर ये शादी रचा ली। 20 अप्रैल 1918 को हुई इस शादी ने मुंबई के पारसी और मुसलिम समुदाय में हंगामा खड़ा कर दिया। ये असंभव किस्म का मिलाप था जो लोग मानकर चल रहे थे कि ज्यादा दिन चलेगा नहीं। जिन्ना जो अंग्रेजों के आगे तक झुकने को तैयार नहीं होते थे वो अपनी इस बालिका वधू के आगे बिछे रहते थे।
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बेइंतहा खूबसूरत रूटी जिन्ना को छेड़ती थीं, चिढ़ाती थीं ओर उनकी सारे राजनैतिक आयोजनों में उनके साथ साए की तरह साथ रहतीं थीं। रूटी मुंबई के रईस पारसी परिवार की पढ़ी-लिखी बेटी थी इसलिये उस पारंपरिक दौर में भी रूटी का पहनावा और उनका बिंदासपन लोगों का ध्यान खींचता था। मगर इन सबसे अलग आज़ादी के आंदोलन के तेजी से उभर रहे नेता जिन्ना अपनी पत्नी पर गर्व करते थे और उसके प्रति बेपरवाह रहते थे। जिन्ना के पास सब कुछ था -दौलत, शौहरत, रूतबा मगर जो नहीं था वो था उनके खुद के लिये ओर अपनी पत्नी के लिये वक्त।
जिन्ना ने जो कुछ पाया था अपनी मेहनत ओर अपने कभी किसी के आगे नहीं झुकने वाले व्यवहार के कारण ही इसलिये अपने आपको पूरे वक्त काम में व्यस्त रखना उनकी आदत थी। जो वो शादी के बाद भी बदलने को तैयार नहीं थे और यहीं से रूटी का अकेलापन शुरू होता था जो बाद में उनको जिन्ना से अलगाव, डिप्रेशन और बाद में कथित आत्महत्या का कारण भी बना। आत्महत्या इसलिये क्योंकि रूटी ने अपने मरने का दिन भी अपने जन्मदिन के दिन ही चुना। परियों सरीखी प्रेमकथा की नायिका ने शादी के दस साल बाद दम तोड़ा तो उसकी उमर मात्र 29 साल ही थी। ओर अपने पीछे रूटी छोड़ गयी बेटी दीना और अकेले जिन्ना को जिन्होंने कभी फिर शादी नहीं की। रूटी की मौत के बाद जिन्ना बदल गये, कुछ ज्यादा सांप्रदायिक हो गये और ज़िद्दी जिन्ना ने देश का बँटवारा कर ही दम लिया। जिन्ना के करीबी लोगों ने लेखिका को बताया है कि रूटी जिंदा रहती तो जिन्ना को बँटवारे तक नहीं जाने देती।
इस रोचक किताब में लेखिका ने पहले पन्ने से लेकर आखिरी तक प्रेम कथा में रोमांच बनाये रखा है। रोमांस के बीच में गुथी हुई उस दौर की राजनीतिक घटनाओं से महसूस होता है कि ये घटनाएँ किसी की भी जिंदगी में कितना असर करती है। गुजरात के काठियावाड़ के छोटे से गाँव से लंदन जाकर बेरिस्टर बनने की जिन्ना की कहानी भी बेहद प्रेरणादायक है। उसके बाद मुंबई आकर बडा वकील और नेता बनना जिन्ना की उस शख्सियत को दिखाता है कि जिसके बारे में हमें कहीं से मालूम ही नहीं हो सकता क्योंकि हमने जिन्ना को पाकिस्तान को सौंप दिया मगर आजादी के हमारे साझा संघर्ष में जिन्ना के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
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किताब में जिन्ना और गाँधी की तनातनी पर भी कुछ पन्ने लिखे गये हैं। कैसे गुजराती गाँधी ने मुंबई के जिन्ना को पीछे छोड़ा। और फिर कैसे जिन्ना ने उस लड़ाई में अपनी नयी भूमिका बनायी। शीला रेड्डी ने पाकिस्तान जाकर जिन्ना से जुड़े साहित्य को पढ़ा ओर मुंबई में पारसी समुदाय के लोगों के बीच जाकर रूटी और उनके परिवार से जुड़ी असंभव सी जानकारियाँ निकालीं। किताब के आखिरी पन्नों में रूटी का दर्द रूला देता है और अंत बैचेन कर देता है।
मंजुल पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित इस किताब का अनुवाद बेहद सरल है। हिंदी के पाठकों के लिये इस बेजोड़ किताब उपलब्ध कराने के लिये मंजुल का शुक्रिया।
-ब्रजेश राजपूत.
(एबीपी न्यूज़ से जुड़े ब्रजेश राजपूत चर्चित पुस्तक 'ऑफ़ द स्क्रीन' के लेखक हैं.)
'ऑफ़ द स्क्रीन' की चर्चा यहाँ पढ़ें >>
मिस्टर और मिसेज़ जिन्ना
लेखिका : शीला रेड्डी
अनुवाद : मदन सोनी
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 296
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