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केदारनाथ सिंह, अरुण कमल और तेजी ग्रोवर के काव्य-संग्रह... |
आँसू का वज़न
केदारनाथ सिंह ने शब्दों की लय को अलग मुकाम पर पहुँचाया है। वे यथार्थ और समाज पर रचनाओं का अद्भुत संसार रचते हैं। यह कविता संग्रह बेहद पठनीय है।
केदार जी गहराई से शब्दों को आकार देते हैं -
कितनी लाख चीख़ों
कितने करोड़ विलापों-चीत्कारों के बाद
किसी आँख से टपकी
एक बूँद को नाम मिला-
आँसू
कौन बताएगा
बूँद से आँसू
कितना भारी है।
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योगफल
अरुण कमल ने मौजूदा परिप्रेक्ष्य में इस संग्रह में कई रचनाएँ रची हैं। उन्होंने देश और राजनीति पर खुलकर बात की है। वे रंग-बिरंगी कविताओं को अपनी खूबसूरत कूची से आकार देते हैं। कई बार भावुकता में खुद को समेट कर नया रंग उत्पन्न करते हैं। अरुण जी ने गहरे संदेश दिए हैं जो इस कविता-संग्रह को ख़ास बनाते हैं।
'किस वतन के लोग' कविता से ये पंक्तियाँ देखें -
अन्तिम सन्दूक लिए
आखरी ढोर डांगर लिए
एक पाँव में चप्पल डाले
नंगे पाँव खाली देह लिए
ये कौन हैं, कौन लोग, ये कौन?
कहाँ जा रहे हैं इतने पाँव-
बंगलुरु से मुम्बई बागडोगरा
दिल्ली अनन्तनाग अबूझमाड़ दरभंगा से
अपने ही घर अपनी ही रसोई से-
ये किस देश किस वतन के लोग हैं?
कहाँ है इनका राष्ट्र इनकी भूमि?
हम जो चाहते थे सारी दुनिया को घर बनाना
आज अपना चूल्हा उठाये
भाग रहे यहाँ से वहाँ-
कहाँ हो मेरी माँ मेरी मातृभूमि?
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दर्पण अभी काँच ही था
तेजी ग्रोवर ने पाठकों को अपनी कविताओं के द्वारा सोचने पर विवश किया है। यहाँ शब्दों का मेल और उनका प्रभाव गहरा है।
संग्रह से निम्न पंक्तियाँ देखें -
तुम्हारी नाव की जलरेखा
चाँदी के दर्पण में
छप रही है पहाड़ों के अक्स पर
जहाँ इस घड़ी
विश्राम कर रही होंगी
श्वेताक्षरों की पंक्तियाँ
बिम्बों के सानिध्य में
कुछ भी,
कुछ भी हो गुज़रेगा
दर्पण से झिरती हुई रात में।
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