'सेपियन्स' : वह प्राणी जो एक ईश्वर बन गया

सेपियन्स : मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास
करीब 100,000 साल पहले मानव की कई प्रजातियाँ बसती थीं, लेकिन आज स़िर्फ हम (होमो सेपियन्स) हैं.
'सेपियन्स' में डॉ. युवाल नोआ हरारी ने मानव जाति के रहस्यों से भरे इतिहास का विस्तार से वर्णन किया है। इसमें धरती पर विचरण करने वाले पहले इंसानों से लेकर संज्ञानात्मक, कृषि और वैज्ञानिक क्रांतियों की प्रारम्भिक खोजों से लेकर विनाशकारी परिणामों तक को शामिल किया गया है। लेखक ने जीव-विज्ञान, मानवशास्त्र, जीवाश्म विज्ञान और अर्थशास्त्र के गहन ज्ञान के आधार पर इस रहस्य का अन्वेषण किया है कि इतिहास के प्रवाह ने आख़िर कैसे हमारे मानव समाजों, हमारे चारों ओर के प्राणियों और पौधों को आकार दिया है। यही नहीं, इसने हमारे व्यक्तित्व को भी कैसे प्रभावित किया है।

सत्तर हज़ार साल पहले होमो सेपियन्स महज़ एक नाचीज़ प्राणी हुआ करता था, जो अफ्रीका के एक कोने में अपने काम में लगा हुआ था। बाद की सहस्राब्दियों में वह समूचे ग्रह के मालिक और पारिस्थितिकीय तत्र के लिए एक आतंक में बदल गया। आज वह एक देवता बनने की कगार पर खड़ा है, ना सिर्फ़ एक शाश्वत यौवन हासिल करने, बल्कि सृजन और संहार की दैवीय क्षमताओं को भी हासिल करने के लिए तैयार।

दुर्भाग्य से पृथ्वी पर सेपियन्स के अब तक के कार्यकाल ने ऐसा बहुत कम उत्पन्न किया है, जिस पर हम गर्व कर सकें। हमने अपने परिवेशों को नियन्त्रित किया है, खाद्यान्न के उत्पादन में इज़ाफ़ा किया है, नगरों का निर्माण किया है, साम्राज्य खड़े किए हैं और व्यापार के व्यापक नेटवर्क तैयार किए हैं, लेकिन क्या हम दुनिया में व्याप्त दुःख की मात्रा को कम कर सके हैं? मनुष्य की शक्ति में अक्सर जो अपरिमित वृद्धि हुई उसने अनिवार्यतः सेपियन्स की व्यक्तिगत खुशहाली में इज़ाफ़ा नहीं किया, और आम तौर से दूसरे प्राणियों को भारी दुःख पहुँचाया है।

करीब 100,000 साल पहले धरती पर मानव की कम से कम छह प्रजातियाँ बसती थीं, लेकिन आज स़िर्फ हम (होमो सेपियन्स) हैं। प्रभुत्व की इस जंग में आख़िर हमारी प्रजाति ने कैसे जीत हासिल की? हमारे भोजन खोजी पूर्वज शहरों और साम्राज्यों की स्थापना के लिए क्यों एकजुट हुए? कैसे हम ईश्वर, राष्ट्रों और मानवाधिकारों में विश्वास करने लगे? कैसे हम दौलत, किताबों और कानून में भरोसा करने लगे? और कैसे हम नौकरशाही, समय-सारणी और उपभोक्तावाद के गुलाम बन गए? आने वाले हज़ार वर्षों में हमारी दुनिया कैसी होगी? इस किताब में इन्हीं रोचक सवालों के जवाब समाहित हैं.
'सेपियन्स' में डॉ. युवाल नोआ हरारी

जहाँ तक मानवीय परिस्थिति का सम्बन्ध है, पिछले कुछ दशकों में हमने अकाल, महामारी और युद्ध में कमी लाकर कम से कम कुछ वास्तविक तरक्की की, लेकिन दूसरे प्राणियों की हालत पिछले किसी भी समय के मुकाबले बहुत तेज़ी से बिगड़ रही है, और मनुष्यता के सौभाग्य में हुई वृद्धि इतनी ताज़ा और नाजुक है कि उसके टिकाऊपन के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

इसके अलावा, उन विस्मयकारी करतबों के बावजूद जो इंसान कर सकते हैं, हम अपने लक्ष्यों को लेकर अभी भी अनिश्चित हैं और हम हमेशा की तरह असन्तुष्ट बने हुए प्रतीत होते हैं। हमने डोंगी से लेकर लम्बी नाव तक और उससे लेकर भाप से चलने वाले जहाज़ों और अन्तरिक्ष शटल तक प्रगति की है, लेकिन कोई नहीं जानता कि हम कहाँ जा रहे हैं। हम पहले के किसी भी वक़्त के मुकाबले यादा ताकतवर हैं, लेकिन इस ताक़त का हम क्या करें इसकी कोई ख़ास योजना हमारे पास नहीं है। इससे भी बदतर स्थिति यह है कि मनुष्य हमेशा से ज़्यादा गैरजिम्मेदार प्रतीत होते हैं। केवल भौतिकी के नियमों को अपने साथ लिए हम ऐसे स्वयंभू देवता हैं, जो किसी के भी प्रति जिम्मेदार नहीं हैं। नतीज़े में हम अपनी सुख-सुविधाओं और मौज-मस्ती में कुछ और इज़ाफ़े की तलाश में लगे हुए, और कभी सन्तुष्ट ना होते हुए अपने सहचर प्राणियों और चारों ओर व्याप्त पारिस्थितिकी पर कहर बरसा रहे हैं।

क्या ऐसे असन्तुष्ट और गैरज़िम्मेदार देवताओं से ज़्यादा ख़तरनाक कोई और चीज़ हो सकती है, जिन्हें यह भी नहीं मालूम कि वे क्या चाहते हैं?

~युवाल नोआ हरारी.

सेपियन्स : मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास
लेखक : युवाल नोआ हरारी
अनुवाद : मदन सोनी
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 454
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