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मनोरमा विश्वाल महापात्र के काव्य में जीवन का अस्तित्व है, सहजता है, और जिंन्दगी का रस है. |
सालन्दी नदी के साथ शंखचील (एक मंगल पक्षी) के गाँव की बात कवि कर रही है। शंखचील के पंख सुनहले होते हैं। प्रसिद्ध कहावत है-हाय चील सोनाली अनार चील’। अपने गाँव और उसके पार्श्व में बहती नदी, दोनों स्थानित प्राण सिंहासन पर। लम्बी कविता एक साँस में पढ़ने लायक कविता। आरम्भ करने पर शेष करने तक गहरे भाव और नदी के छलछल स्वप्न से मुक्ति नहीं। मुझ-सा इस नदी मनस्क आदमी के लिए सालन्दी चित्रोत्पला की बहन है। कवि के काव्य जगत का यह अपरूप ग्रन्थन है।
काव्य चेतना की नदी यर्थाथ चेतना को उद्बोधित कर रही है। जीवन के हर चित्रपट संग एकाकार होकर कवि जीवन का इतिहास रच रहा है। शब्दों का हाथ बढ़ा कर वह उन्हें सहेजने की चेष्टा कर रही है। फिर भी सालंदी की छुअन अनपहुंच है।
जीवन नदी में रुपांतर करने का दुर्बार आवेग है, उसकी का एक काव्यरुप। देखें -
नदी-सी बह रही आवेग में।
मैं समूची नदी हो गई
नदी मनस्कता जीवनादर्श में।
रुपांतरित हो रही।
मनोरमा विश्वाल महापात्र के काव्य में जीवन का अस्तित्व है, सहजता है, और जिंन्दगी का रस है जो जीवन को प्रभावित करता है।
आखिर में ..
किससे मैंने सीखा गीत गाना
किससे सीखी
शब्दों के पीछे दौड़ने की कला
किसने मुझे सिखाया
गड़े हुए प्रथम प्रेम की स्मृति
सहेज रखना।
किसने मुझे बताया
हिरन न आता वश में
दौड़ो ना तेज धूप में
गीत आज गाओ कुछ लाभ नहीं।
मेरी प्रिय सहेली
सालंदी है नाम उसका
जो उलझी रहे
मेरी चेतना संग
घूम-फिर ले आकर
सपने बुन जाती।
सालन्दी : शंखचील का गाँव
रचनाकार : मनोरमा विश्वाल महापात्र
अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 72
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रचनाकार : मनोरमा विश्वाल महापात्र
अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
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