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नरेन्द्र कोहली ने अपनी कृतियों में पाठकों को हर बार नयापन देने की कोशिश की है. |
जहाँ इतिहास है, वहाँ उस ऐतिहासिक काल की कड़वाहट भी है, जिसे न आप भूल सकते हैं, न उसके कारणों को दूर कर सकते हैं। जहाँ वर्तमान है, वहाँ अपने मूल देश के प्रति प्रेम भी है और छिद्रान्वेषण भी। न स्वयं को अपने देश से असम्पृक्त कर सकते हैं और न ही उसको उसकी त्रुटियों के साथ स्वीकार कर सकते हैं। न देश के अपने को पाये, न पराये। न उसे स्वीकार कर पाये, न अस्वीकार। इसके चरित्र व्यक्ति नहीं हैं, वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो अभी स्थिर नहीं हो पायी हैं। वे परिवर्तन की चक्की में पिस रहे हैं और अपने वास्तविक रुप को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। अपने देश को स्मरण भी करते हैं और उसे भूल भी जाना चाहते हैं। जिनके प्रति प्रेम है, उन्हें भूलना चाहते हैं; और जिन्हें प्रेम नहीं करते, उन्हें अपनाना चाहते हैं। उनसे मिलना भी चाहते हैं और उनसे दूर भी रहना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह परिवर्तन और नये निर्माण की कथा है।
नरेन्द्र कोहली के लिखने का अंदाज़ अलग है, जिसे पढ़ना सुखद अनुभव है। उन्होंने अपनी कृतियों में पाठकों को हर बार नयापन देने की कोशिश की है। यह उपन्यास बेहद पठनीय है।
सागर-मन्थन
लेखक : नरेन्द्र कोहली
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 310
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लेखक : नरेन्द्र कोहली
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
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