उन्नीसवीं सदी में पटना की होली

patna khoya hua shahar book
अरुण सिंह की यह पुस्तक पटना शहर के इतिहास का रोचक दस्तावेज़ है..
होली का त्योहार विदेशियों के लिए हमेशा आश्चर्य और कौतूहल का विषय रहा है। 1858 ई. में पटना में रहने वाले एक ब्रिटिश अधिकारी ने होली के दिन का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। उसने लिखा है,'होली के दिन मेरे सेवक मुझे होली की बधाई देने आये। वे मेरे लिए लाल रंग का पाउडर और बेर लेकर आये थे। मैंने उनका उपहार स्वीकार किया। किन्तु यह मेरे लिए महँगा था। क्योंकि यहाँ का दस्तूर था कि बदले में मुझे भी उन्हें उपहार देना था। यह भारत का अलिखित नियम था। इसका उल्लंघन मैं कैसे करता?'

उसने आगे लिखा है,'होली के दिन हिन्दुओं के बीच मदिरा का सेवन आम बात थी। मेरे यहाँ काम करने वाले अधिकारी और सेवकों का उस दिन मदिरा के नशे में होना इस बात की पुष्टि कर रहा था। हमेशा अनुशासित रहने वाले मेरे कर्मचारी उस दिन अपना संयम खो रहे थे।'

बिशप हेबेर ने भी अपने जर्नल में होली के बारे में लिखा है। उसने लिखा,'मैंने पहले बहुत शराबी पुरुषों को देखा किन्तु होली के मौके पर इन हिन्दुस्तानियों के रंग कुछ और ही हो जाते हैं। इस आनन्दोत्सव में वे पूरी तरह लिप्त हो जाते हैं।' वह लिखता है,'मेरे गार्ड के सिपाही मार्च के वक़्त बग़ल से गुज़रती महिलाओं को अश्लील गाना गाकर फिकरे कसते हैं। वे अभद्र भाषा का भी प्रयोग करते हैं। महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार वे अन्य दिनों में शायद ही करते हैं।'
patna book by arun singh

इसके भी बहुत पहले 1030 ई. के आसपास ईरानी मूल का यात्री अल-बरुनी अपनी भारत यात्रा के क्रम में पटना से गुज़रता था। उसने अपने वृत्तान्त में उन दिनों पटना में मनाई जाने वाली होली के बारे लिखा था। उसने होली को यहाँ का एक महत्वपूर्ण त्योहार बताया था।

मुग़लकाल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधा बाई और जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का अन्दाज़ ही बदल गया था। शाहजहाँ के समय में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अन्तिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को उनके मंत्री रंग लगाने जाया करते थे।

(अरुण सिंह).

पटना : खोया हुआ शहर
लेखक : अरुण सिंह
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 232
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