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अरुण सिंह की यह पुस्तक पटना शहर के इतिहास का रोचक दस्तावेज़ है.. |
उसने आगे लिखा है,'होली के दिन हिन्दुओं के बीच मदिरा का सेवन आम बात थी। मेरे यहाँ काम करने वाले अधिकारी और सेवकों का उस दिन मदिरा के नशे में होना इस बात की पुष्टि कर रहा था। हमेशा अनुशासित रहने वाले मेरे कर्मचारी उस दिन अपना संयम खो रहे थे।'
बिशप हेबेर ने भी अपने जर्नल में होली के बारे में लिखा है। उसने लिखा,'मैंने पहले बहुत शराबी पुरुषों को देखा किन्तु होली के मौके पर इन हिन्दुस्तानियों के रंग कुछ और ही हो जाते हैं। इस आनन्दोत्सव में वे पूरी तरह लिप्त हो जाते हैं।' वह लिखता है,'मेरे गार्ड के सिपाही मार्च के वक़्त बग़ल से गुज़रती महिलाओं को अश्लील गाना गाकर फिकरे कसते हैं। वे अभद्र भाषा का भी प्रयोग करते हैं। महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार वे अन्य दिनों में शायद ही करते हैं।'
इसके भी बहुत पहले 1030 ई. के आसपास ईरानी मूल का यात्री अल-बरुनी अपनी भारत यात्रा के क्रम में पटना से गुज़रता था। उसने अपने वृत्तान्त में उन दिनों पटना में मनाई जाने वाली होली के बारे लिखा था। उसने होली को यहाँ का एक महत्वपूर्ण त्योहार बताया था।
मुग़लकाल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधा बाई और जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का अन्दाज़ ही बदल गया था। शाहजहाँ के समय में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अन्तिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को उनके मंत्री रंग लगाने जाया करते थे।
(अरुण सिंह).
पटना : खोया हुआ शहर
लेखक : अरुण सिंह
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 232
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लेखक : अरुण सिंह
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