'मुल्क' के ज़रिए अनुभव सिन्हा ने समाज को आईना दिखाया है

'मुल्क' के ज़रिए अनुभव सिन्हा
यह किताब एक उम्मीद जगाती है और सामाजिक जागरुकता की बात करती है.
अनुभव सिन्हा की फिल्म 'मुल्क’ की पटकथा को राजकमल प्रकाशन समूह ने एक सफल प्रयोग के तौर पर प्रस्तुत किया है। फिल्म की पटकथा को किताब की शक्ल में पढ़ना एक सुखद अनुभव है। यही वजह है कि प्रकाशक कुछ अन्य पटकथाओं पर भी काम कर रहे हैं ताकि उन्हें भी किताब के रुप में लाया जा सके।

प्रकाशन जगत में नये तरीके नये पाठक वर्ग को भी जोड़ते हैं। अनुभव सिन्हा की इस किताब के बाद यह साबित हो गया है। विषय ऐसा है जिसपर पहले भी कई बार फिल्में बनी हैं, किताबें लिखी गयी हैं, मगर फिल्म देखने के बाद उसे पढ़ने की उत्सुकता के कारण अलग तरह का अनुभव होना स्वाभाविक है। इस किताब को तेजी से पढ़ा जा सकता है। एक पन्ना जहां शुरु किया समझ लिजिए खुद को आप अंतिम पन्ने तक ताजगी के साथ बरकरार रखेंगे, थकान का तो नामोनिशान नहीं होगा, बल्कि अदालती कार्यवाही में जिरह तो सबसे रोचक लगेगी।

पहली बात जो सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है कि यह किताब एक उम्मीद जगाती है। समाज के लिए आईना है। 'मुल्क’ के असली मायने समझाती है। ज़िन्दगी हर किसी की कीमती है। मुसलमान होना कोई गुनाह नहीं। हर किसी के लिए उनका परिवार महत्व रखता है।

अनुभव सिन्हा को इस किताब के लिए सराहा जाना चाहिए। उन्होंने एक ऐसा प्रयास किया है जिसे कुछ साल पहले किया जाना चाहिए था मगर किसी ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखायी। लगता है कि वे पिछले कुछ सालों से राजनीतिक और सामाजिक हालातों को बारीकी से परख रहे थे। उनके भीतर कुछ ऐसी उथलपुथल होगी जिसे बाहर आना ही था। उन्होंने देश से सवाल किए हैं, लोगों से पूछा है। यह किताब हर किसी से सवाल कर रही है। यह किताब हर किसी से कुछ न कुछ पूछती है।

यहाँ जोड़ने की बात हो रही है। तोड़ने की बात करने वालों को करारा जवाब दिया गया है। आरती मोहम्मद के शब्दों को समझिए, महसूस कीजिए, हर उत्तर मिल जाएगा।

'एक मुल्क काग़ज़ पर नक्शों की लकीरों से नहीं बँटता सर, मुल्क बँटता है दिमाग़ में, रंग से, भाषा से, धर्म से और जात से। और सन्तोष आनन्द जी ने बहुत ख़ूबसूरती से इस मुल्क को 'हम और वो’ में बाँट दिया है।'
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'मुल्क’ की चमक और साहस स्तब्ध कर देते हैं। हमारे समय की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक।'
~शेखर गुप्ता
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'मुल्क’ ने बतौर भारतीय मुझे गर्व और खुशी से भर दिया।' 
~विशाल ददलानी
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'यह सिर्फ मुसलमानों की कहानी नहीं है। यह उन सब लोगों की कहानी है जो अकेले पड़ गए हैं या जिन्हें अकेला कर दिया गया है। भीड़ ने बहुत सारे घर घेर लिए हैं पर वे घर किसी के भी हो सकते हैं। मुझे और आपको अपने बच्चों को उस भीड़ से निकालना होगा।’ 
~गौरव सोलंकी
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साम्प्रदायिकता फैलाने वाले भी हमारे और आपके बीच ही पैदा हुए हैं, आगे भी होते रहेंगे। वे अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों को विभाजित कराने में ही करते हैं। उनसे लड़ने के लिए हमें एक-साथ मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि हिन्दू और मुसलमान मिलकर एक 'मुल्क’ में आपसी भाईचारे से रह सकें।

यह किताब कुछ नए दरवाज़े खोलेगी, आपको भीतर से जगायेगी, उम्मीद से लबरेज़ कर देगी और सबसे अच्छी बात 'मुल्क’ को जोड़ने का काम करेगी।

मुल्क
प्रकाशक : अनुभव सिन्हा
राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 136
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