![]() |
हम सब में एक मंटोइयत है, एक वह जज्बा जो चाहता है कि हम आजाद और ईमानदार हों. |
एक कुछ ऐसा एहसास था कि मैं मंटो को और लोगों तक पहुँचा सकूँ, ख़ासतौर पर आजकल की युवा पीढ़ी तक। उनकी सटीक कहानियाँ और उनके लेख आजकल के समाज को दर्शाते हैं। उनके गुज़र जाने के 60 साल बाद भी हम उनकी समस्याओं से जूझ रह हैं - जैसे, अपनी बात करने की आज़ादी, अपनी जगह से किसी कारणवश कहीं और जाने का दर्द और हर एक की समानता की राजनीति का ख़तरा। हमारी पहचान हमेशा ज़ात, मज़हब, वर्ग, जेंडर से होती है और मंटो ने उस सबके बारे में लिखा है। उनका लेखन एक ऐसे शीशे जैसा है जिसमें हमारे समाज का अक्स दिखता है। उन्होंने लिखा था : अगर आप मेरी कहानियाँ बरदाश्त नहीं कर सकते, तो ज़माना नाक़ाबिले बरदाश्त है।
मंटो वक़्त के बहाव के ख़िलाफ़ गए और 6 अदालती मुकदमों के बावजूद सच बोलने की हिम्मत की। अपनी 42 साल की जिन्दगी में उन्होंने 300 कहानियाँ, 100 रेडियो ड्रामा, बेहिसाब लेख और फ़िल्म स्क्रिप्टें लिखीं। वह इतना कुछ कहना चाहते थे कि लिखना उनकी मजबूरी बन गई। हालाँकि पिछले कुछ सालों में, मैं मंटो की रचनाओं में डूबी रही हूँ, लेकिन अभी भी उनका लिखा सारा नहीं पढ़ा है। मैंने उनकी रचनाएँ देवनागरी लिपि में और कुछ के अंग्रेज़ी में अनुवाद पढ़े हैं। हालाँकि, कुछ ही अनुवाद ओरिजिनल के पास थे।
मैं अपने इस मंटो सफ़र में इतनी मसरूफ़ रही हूँ कि इस किताब में जो अनूदित कहानियाँ, उन्हें पढ़ नहीं सकी हूँ। मैंने बहुत सोच समझकर इन कहानियों का चुनाव किया है। पिछले कुछ सालों में कुछ कहानियों ने मेरा साथ नहीं छोड़ा और जब मैंने नाम सोचे, ये नाम सबसे पहले आए। इस संग्रह में 15 कहानियाँ हैं। मैं चाहती थी कि लोग मंटो के फैले हुए दायरे को समझें। उनके कहानियों के पात्र अकसर वे लोग हैं जो समाज के कोनों में रहते हैं और औरतों के लिए सहानुभूति भरी नज़र रखते हैं, खासतौर पर वेश्याओं के लिए। उनकी यही बात उन्हें और लेखकों से अलग रखती है।
मंटो की कुछ कहानियाँ हिन्दुस्तान के बँटवारे के दर्दनाक हादसे को बयाँ करती हैं। मोज़ेल और ठंडा गोश्त जैसी कहानियाँ हिंसा के दौरान इनसानी फ़ितरत को दर्शाती हैं। मंटो की कहानियाँ कभी भावुक नहीं होतीं, बल्कि इस समाज की नंगी तसवीर दिखाती हैं। उनकी ज्यादातर कहानियों में जो मुख्य पात्र होता है, वह एक औरत होती है, जैसे खुशिया, हतक और दस रुपए में। इन कहानियों में औरत एक बेबस नारी नहीं, बल्कि एक ऐसी औरत है जिसकी इच्छाएँ हैं। वह ताकतवर है, धोखा भी खाती है और उसका आत्मसम्मान भी है। इस संघर्ष की 'सड़क किनारे' और 'सरकंडों के पीछे' जैसी कहानियाँ है जिनके बारे में बहुत लोग नहीं जानते हैं। 'सरकंडों के पीछे' वह कहानी है जो मैंने सबसे पहले पढ़ी और वो अभी तक मेरे जेहन में बसी हुई है।
मंटो की कहानियाँ सत्य और कल्पना के बीच की लाइन को तो धुँधला कर देती हैं लेकिन उनके लेख बिलकुल साफ़ होते हैं। वे जितना औरों के बारे में बताते हैं, उतना ही अपने बारे में। मैं क्योंकर लिखता हूँ से लेकर मुफ़्त नोशों की तेरह किस्में उनके ऐसे ही लेख हैं। उन्होंने सच और झूठ पर हमेशा बहस की और वह किस तरह से इस्तेमाल किया जाता है, उसके बारे में सफेद झूठ में लिखा। आजकल की दुनिया में, इससे ज्यादा और क्या सही होगा?
जब उन्होंने लोगों के बारे में तफ़सील से लिखा तो वह 'ख़ाका' कहलाया। मैंने उन लोगों का चुनाव किया है जो हैं तो मामूली लेकिन मंटो ने उन्हें गैरमामूली तरह से पेश किया है, जैसे एक ठग, महमूद भाई, जिसको एक दरियादिल इनसान बताया है। और, दूसरी तरफ मशहूर लोगों को उन्होंने एक आम आदमी की तरह से पेश किया, जिसमें से कुछ हैं - अशोक कुमार, श्याम और नर्गिस। उन्होंने उनके बारे में भी उतनी ही बेरहमी से ईमानदार होकर लिखा है जैसे अपने बारे में। वे सारे दाग़ और धब्बे सामने रख देते हैं। मंटो इनसानी वजूद को ऐसे बयान करते हैं जैसे बद से बदतर आदमी अच्छा हो सके और अच्छा ग़लती कर सके।
मंटो का वह भरोसा कि उनकी कहानियों और लेख से उन्हें मुक्ति मिलेगी, वही भरोसा मुझे भी है। किसी ताक़त से उस विरासत का हिस्सा हूँ मैं। मुझे यकीन है कि हम सब में एक मंटोइयत है, एक वह जज्बा जो चाहता है कि हम आजाद और ईमानदार हों।
सआदत हसन मंटो जो साउथ एशिया के सबसे बेहतरीन अफ़साना निगारों में से एक माने जाते हैं, जानते थे, हो सकता है सआदत हसन मर जाएँ, लेकिन मंटो जीता रहेगा!
~नंदिता दास.