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रामायण के विविध संस्करणों पर इस पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गयी है. |
एपिक चैनल पर देवदत्त पट्टनायक के कार्यक्रम में होने वाले सवाल-जवाब पर आधारित उनकी तीसरी पुस्तक भी चर्चित है। पुस्तक का हिन्दी अनुवाद रचना भोला 'यामिनी' द्वारा किया गया है।
देवदत्त पट्टनायक की यह किताब रामायण के विविध संस्करणों के बारे में विस्तार से चर्चा करती है। बौद्ध धर्म व जैन धर्म के बारे में सूचनापरक प्रसंगों के साथ उनका आकर्षक इतिहास भी यहाँ पढ़ने को मिलता है। देवदत्त ने इस पुस्तक में हिन्दू धर्म के अनेक रीति-रिवाज़ों के पीछे की रोचक कहानियों का वर्णन किया है। यह किताब पन्द्रह से ज्यादा सूचनाप्रद तथा प्रेरक प्रसंगों के साथ शिक्षा व मनोरंजन का अद्भुत मेल है जिसे बहुत ही सरल और सहज तरीके से देवदत्त पट्टनायक ने बताया है।
किताब के पहले अध्याय में देवदत्त हमें ग्राम देवता और ग्राम देवी के विषय में बताते हैं। उनका मानना है कि ग्राम देवियाँ प्राय: उर्वरता से संबंध रखती हैं। वे यह भी कहते हैं कि इन्हें स्थानीय तौर पर ताई, अम्मा, बा आदि से संबोधित किया जाता है। ये अन्न की देवी हैं। दूसरी तरफ वे देवों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ये शिकारियों की तरह ग्राम की सीमाओं की रक्षा करते हैं। साथ ही वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि इस आधार पर ग्राम देवी और देवता में अंतर नहीं किया जा सकता। देवदत्त कहते हैं कि धरती को माता के रुप में देखा जाता है। ग्राम देवी माता का ही एक रुप है। वहीं कुलदेवता की अवधारणा का जिक्र करते हुए देवदत्त पट्टनायक ने कहा है कि इसका ग्राम देवता से निकट संबंध है।
रामायण के संस्करणों पर इस पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गयी है। संत एकनाथ ने मराठी भाषा में 'भावार्थ रामायण' रची जिसका रचनाकाल तुलसीदास के समय का ही था। किताब में लिखा है कि 'एकनाथ रामायण' में राम को भक्ति के स्वरुप में प्रकट किया गया है, जबकि वाल्मीकि रामायण में राम एक नायक हैं जिसमें वीर रस की प्रधानता है। कर्नाटक में आरंभिक रामायण 'रवेरामायण' के नाम से जानी जाती है।
देवदत्त पट्टनायक ने लक्षद्वीप में इस्लाम धर्म को मानने वाले मोपला मुसलमानों के बारे में लिखा है कि वे केरल से संबंध रखते हैं। उनके काव्य में रामायण का अंश मिलता है। उनके द्वारा राम को सुल्तान कहा जाता है जहाँ 'रा' को अक्सर 'ला' कहा जाता है। उनका काव्य 'मापलेपट्टु' यानी मोपला का संगीत कहलाता है। इन गीतों में भी रामायण की कहानियों को सुना जा सकता है।
पुस्तक में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि की रामायण परंपराओं की जानकारी मिलती है। रामायण के फारसी भाषा में अनुवाद का जिक्र करते हुए देवदत्त कहते हैं कि फारसी में रामायण अकबर के लिए लिखी गयी थी। इसे 'रज्मनामा' युद्ध की पुस्तक का नाम दिया गया। यह 'रामायण' और 'महाभारत' का फारसी अनुवाद है। इसमें चित्र भी बनाए गये हैं क्योंकि अकबर निरक्षर था। उसे चित्र दिखाने के साथ-साथ कथायें पढ़ कर सुनाई जाती थीं।
थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, बाली, वर्मा, कम्बोडिया के बारे में लेखक कहते हैं कि हजारों साल पूर्व समुद्री व्यापारियों के माध्यम से यहाँ रामायण का प्रचार-प्रसार हुआ। थाइलैंड के राजा के बारे में रोचक बात है कि यहाँ चकरी वंश के राजा रामा कहलाते थे और उनके राज्य की राजधानी अयुथ्या कहलाती थी। यदि उनसे पूछें तो वे कहेंगे कि राम उनके यहाँ हुए और बाद में वे भारत आए। उनका मानना है कि रामायण उनके यहाँ से है। उनके यहाँ 'रामकीयन' नामक राम काव्य भी मिलता है।
'देवलोक' में देवदत्त ने लिखा है कि रामायण में सुग्रीव सूर्यपुत्र है जबकि बाली इंद्र का पुत्र है। महाभारत में कर्ण सूर्यपुत्र है और अर्जुन इंद्र का पुत्र है। इंद्र और सूर्य का बैर इनके सभी प्रसंगों से झलकता है। एक अध्याय में सूर्य की पत्नियों का जिक्र भी रोचक है। लेखक सूर्य के मंदिरों के बारे में चर्चा करते हैं और कहते हैं कि किसी समय सूर्य देव के विशाल और भव्य मंदिर बनते थे। उनमें अरुण नाम से प्रकाश स्तंभ लगाया जाता था। अब सूर्य की उपासना के लिए अलग से सूर्य मंदिर नहीं रहे। सूर्य देव के भक्तों के बारे में देवदत्त लिखते हैं कि सबसे पहले साम्ब का नाम लिया जाता है जो भगवान कृष्ण के पुत्र थे। कृष्ण साम्ब को कोढ़ी होने का श्राप देते हैं तो उपाय स्वरुप महर्षि कटक साम्ब से कहते हैं कि सूर्य देव उसे रोगमुक्त कर सकते हैं। इसे वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित है कि सूर्य की रोशनी त्वचा रोगों को दूर करती है। साम्ब जब रोगमुक्त हुआ तो उसने कोणार्क में सूर्य मंदिर स्थापित किया।
राधा-कृष्ण के विषय पर देवदत्त पट्टनायक ने अपने विचार रखते हुए कहा है कि हजारों वर्ष प्राचीन वेदों में राधा व कृष्ण का नामोल्लेख नहीं है। महाभारत में हमें पहली बार कृष्ण के विषय में बताया गया है। 'भागवत् पुराण' में पहली बार रासलीला का वर्णन मिलता है लेकिन यहाँ राधा का कहीं नाम नहीं आता। राधा पहली बार प्राकृत काव्य में प्रकट होती हैं। हाल नामक कवि द्वारा रचित 'गाथासप्तशती' में राधा व कृष्ण के प्रेम के बारे में बताया गया है। इसमें 700 गाथाओं का जिक्र आता है। यहाँ कृष्ण को देवता नहीं, बल्कि गोपाल बताया गया है। वहीं 'गीतगोविन्द' नामक ग्रंथ में कृष्ण कोई भगवान नहीं, राधिका के प्रेमी हैं।
‘देवलोक सीजन 3 पर आधारित यह पुस्तक हमारी संस्कृति और सभ्यता की जड़ों का प्रतिनिधित्व करती है। कठिन दार्शनिक विषयों, चिंतन-मनन से जुड़े आख्यानों में छिपे प्रतीकों व सरल अर्थों को लेखक, सहज, सरल और बोधगम्य शैली में प्रकट करते हैं। वे उन जड़ों को सिंचित कर रहे हैं, जिनके बल पर आज हमारी अखंड संस्कृति रुपी सलिला, सदियां बीतने के बावजूद, गर्व से अक्षुण्ण प्रवाहित होती चली जा रही है।’ ~रचना भोला 'यामिनी'
देवदत्त लिखते हैं कि गंगा किनारे स्थित कुछ मंदिरों में राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं लेकिन कृष्ण के बड़े मंदिरों जैसे ओड़िशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर, गुजरात के श्रीनाथ जी मंदिर, महाराष्ट्र के पंढरपुर मंदिर, कर्नाटक के उडुपि मंदिर और केरल के गुरुवायूर मंदिर में राधा की मूर्तियाँ नहीं हैं।
एक जगह किताब में कहा गया है कि रामायण में राम की कथा और महाभारत में कृष्ण की कथा को प्रत्यक्ष तौर पर भगवान या देवता से नहीं जोड़ा गया है। इसके बाद जब पुराण आए तो उन्हें भगवान कहा गया।
इस पुस्तक में हम जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ग्रीक माइथोलॉजी, आदि पर विस्तार से चर्चा की गयी है। साथ ही रावण पर पूरा अध्याय लिखा गया है जिसे पढ़कर हमारे बहुत से सवालों का उत्तर मिल जाता है। देवदत्त लिखते हैं कि रावण ने शिव जी से ही ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान भी पाया था। उन्होंने 'रावण संहिता' का जिक्र किया है। भारत में कुछ समुदाय स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं या रावण की पत्नी मंदोदरी को अपने वंश का बताते हैं। रावण को नायक या खलनायक के प्रश्न के जवाब में देवदत्त का कहना है कि कोई भी पूरी तरह से अच्छा या बुरा नहीं होता। इन सब पात्रों को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। वहीं लेखक रामायण के हवाले से लिखते हैं कि रावण हम सबके भीतर बसता है। जो स्त्रियों की बात नहीं सुनता, उसे जला देना चाहिए।
देवदत्त पट्टनायक इसाई धर्म और बाइबल पर भी विस्तृत चर्चा करते हैं। कुल मिलाकर यह किताब अलग-अलग धर्मों आदि के बारे में जानने के उत्सुक पाठकों के लिए बहुत अच्छा दस्तावेज है।
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देवलोक -3
लेखक : देवदत्त पट्टनायक
अनुवाद : रचना भोला 'यामिनी'
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 174
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लेखक : देवदत्त पट्टनायक
अनुवाद : रचना भोला 'यामिनी'
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
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