![]() |
"प्रेस को स्वतन्त्रता दी गयी है कि वह निर्भीकतापूर्वक अपनी बात कहे". |
भारत ज्योति द्वारा 23 अक्टूबर 1994 को आयोजित 'प्रेस की स्वतन्त्रता' कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विषय गम्भीर है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति में, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता बहुत बड़ा योगदान देती है। यह एक प्रकार की जागरुकता उत्पन्न करती है। नागरिकों में अधिकार-बोध और कर्तव्य-बोध का भाव जाग्रत करती है। हमारे संविधान ने देश के सभी नागरिकों को अभिव्यति की स्वतन्त्रता प्रदान की है। उसे यदि कोई रोकता है, तो संविधान के प्रतिकूल आचरण करता है। मनुष्य बुद्धि और विवेक का प्राणी है। उसकी अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगाना सर्वथा अनुचित है। प्रेस को स्वतन्त्रता दी गयी है कि वह निर्भीकतापूर्वक अपनी बात कहे।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें क्यों चाहिए? हम कुछ कहना चाहते हैं। मानस को खोलना चाहते हैं पर कहने के अधिकार को जब सरकार छीनती है, तो वही लोकोक्ति चरितार्थ होती है -जबरा मारे और रोने न दे। आज रोने पर भी पाबन्दी लगाई जा रही है। यह बात शान के खिलाफ है। यदि हमारी आलोचना होती है, तो हमें अपने गिरेबान में झाँककर देखना होगा, अन्यथा जनहित खतरे में पड़ जायेगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री ने ‘हल्ला बोल' की घोषणा कर अपने कार्यकर्ताओं को दो समाचार-पत्रों को बाँटने न देने का खुला निर्देश देकर जनतन्त्र के साथ अन्याय किया है। यदि उन्हें, उन समाचार-पत्रों से कोई शिकायत थी, तो अदालत का द्वार खुला था। पर कानून को अपने हाथ में लेना जनतन्त्र की मान्यताओं के प्रतिकूल है। प्रेस कौंसिल इसीलिए तो है। पर इससे शिकायत न करके हल्ला बोल दिया। सरकार विज्ञापन देना बन्द कर सकती है। किन्तु ये ‘हल्ला बोल' क्या है?
समाचार-पत्र पढ़ने न पढ़ने का निर्णय पाठक करता है, न कि सरकार पर पाठक को अपनी मर्जी से समाचार-पत्र न पढ़ने देना यह कहाँ का न्याय है? बरेली के 80 पत्रकारों को क्यों नहीं जाने दिया गया? शासन में निरंकुशता बढ़ना जनतन्त्र के लिए खतरा है। इस समय उत्तर प्रदेश घोर अराजकता की ओर जा रहा है। मुख्यमन्त्री जी को इसका कोई पश्चात्ताप और खेद नहीं है, उल्टे अपने कार्यकर्ताओं की पीठ ठोंक रहे हैं। हम लोगों ने अयोध्या में गलती की थी, खेद प्रकट किया। इस समय लोकतन्त्र भीड़तन्त्र में बदल गया है। इसके विरुद्ध आवाज उठाने की जरूरत है। किन्तु मर्यादा का ध्यान रखना होगा। हम प्रतिपक्ष हैं, वे तो शासन में हैं, पर वे मर्यादा को त्याग चुके हैं। यह प्रवृत्ति रुकनी चाहिए। यह एक संक्रमण रोग है। क्या शासन में रहने वालों को ये सब शोभा देता है? सड़क पर हल्ला बोल विधानसभा में सदस्यों की पिटाई, सत्तापक्ष के संयम की कहानी बता रही है। वह खलेआम लोकतन्त्र पर कुठाराघात है।
राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी
लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 200
ISBN : 978-9387889309
लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 200
ISBN : 978-9387889309