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विश्वामित्र के संघर्ष, साहस, आचरण तथा व्यावहारिक बदलाव का वर्णन रोचक भाषा-शैली में किया है. |
लेखक ने विश्वामित्र के जन्म से ब्रह्मऋषि तक के सफर और इस दौरान उनके संघर्ष, साहस, आचरण तथा व्यावहारिक बदलाव का वर्णन बहुत ही रोचक भाषा-शैली में किया है। उनके द्वारा अंतरिक्ष में अपने द्वारा बनाए समानांतर स्वर्ग की कथा में पौराणिक कथाओं पर आधुनिकता का आवरण लपेटकर लेखक ने पुस्तक में नवीनता का समावेश किया है।
ऋषि ऋचीक की पत्नी सत्यवती, जब अपनी माँ रानी रत्ना से पुत्र प्रदान करने वाला चमत्कारी पेय बदल देती है, तो केवल उनके बच्चों का भाग्य नहीं बदलता , बल्कि संपूर्ण मानव जाति का इतिहास परिवर्तित हो जाता है। इस घटनाक्रम के फलस्वरूप विश्वामित्र का जन्म होता है, जो एक क्षत्रिय का पुत्र है किंतु उसमें ब्राह्मणों के गुण हैं। उसके जीवन की यह द्विविधता शीघ्र ही प्रकट होने लगती है, जब वह गुरुओं में परम शक्तिशाली - ब्रह्मर्षि बनने का संकल्प लेता है। यह एक साहसी, हठी, अहंकारी किंतु दयालु व स्वप्नदर्शी आर्यावर्त राजा की दिलचस्प कहानी है, जो अपने समय के सुप्रसिद्ध ऋषियों में से एक बना।जरूर पढ़ें : 'विश्वामित्र जन्म से राजकुमार थे और अपने प्रयासों से ब्रह्मर्षि बने'
पुस्तक के अनुवादक आशुतोष गर्ग लिखते हैं : हिंदू साहित्य में असंख्य ऋषि मुनियों के नाम और वर्णन मिलते हैं। इनमें अधिकतर ने सादगी से जीवन बिताया, ईश्वर का भजन पूजन किया और तत्कालीन राजाओं को उपदेश आदि देने के उपरांत मर्त्यलोक त्याग दिया। इनमें बहुत कम ऐसे हैं, जिन्होंने मानव समाज के हित में चमत्कारी और उल्लेखनीय कार्य किए। ग्रंथों में, मुख्य रूप से, दो ब्रह्मर्षियों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने श्रेष्ठ व शाश्वत प्रतिमान स्थापित किए। ये दो ब्रह्मर्षि हैं - वसिष्ठ और विश्वामित्र!
जहाँ एक ओर वसिष्ठ की छवि, सौम्य और संयमी मुनि की है, वहीं विश्वामित्र का चित्रण भावुक, हठी, अहंकारी किंतु कृतसंकल्प ऋषि के रूप में मिलता है। कहते हैं, भावुक जन से ही महत कार्य होते हैं! विश्वामित्र निस्संदेह भावुक थे। उन्होंने क़दम-क़दम पर सृष्टि के नियमों को तोड़ा, एक अप्सरा को अपने प्रेम व सदाचार से मोहित कर लिया, देवताओं को बार-बार चुनौती दी, एक वृद्ध राजा को सशरीर स्वर्ग भेज दिया, ब्रह्मा की भाँति अंतरिक्ष में एक नवीन संसार की रचना कर डाली और फिर अंत में, जिन ऋषि वसिष्ठ से आजीवन उनका मतभेद रहा, उन्हीं से ‘ब्रह्मर्षि’ की उपाधि प्राप्त की!
विश्वामित्र ने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया, एक कर्मठ राजा की भाँति अपने राजधर्म का पालन किया, बाद में तपस्वी की भाँति गहन साधना की तथा फिर सृष्टिकर्ता द्वारा निर्धारित समस्त सीमाएँ तोड़कर असंभव को संभव कर दिखाया। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र का जीवन हर उस व्यक्ति के लिए उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो मन और शरीर की बाधाओं को पार करके, असंभव प्रतीत होने वाली आकांक्षाओं का अभिलाषी है!
पुस्तक की कथा का मूल उद्देश्य विश्वामित्र के जीवन से यह संदेश दिलाना लगता है कि अपराधों को स्वीकार कर उनपर पश्चाताप करने से एक अपराधी भी ब्रह्मऋषि जैसी गति प्राप्त कर सकता है। क्षत्रिय हो या ब्राह्मण इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ‘विश्वामित्र’ की प्रेरणाप्रद पौराणिक शैली से औपन्यासिकता की शैली में लिखी कहानी पठनीय है।
जरूर पढ़ें : 'विश्वामित्र जन्म से राजकुमार थे और अपने प्रयासों से ब्रह्मर्षि बने'
"विश्वामित्र"
लेखक : डॉ. विनीत अग्रवाल
अनुवाद : आशुतोष गर्ग
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 240
लेखक : डॉ. विनीत अग्रवाल
अनुवाद : आशुतोष गर्ग
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 240