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जब व्यक्ति अपनी इच्छा से अकेलापन चुनता है, तब वह 'एकान्त' पा जाता है. |
अकेलापन एक ऐसी स्थिति है कि प्रत्येक के जीवन में कभी न कभी आती ही है। कभी भीड़ में व्यक्ति नितान्त अकेला पड़ जाता है। आमतौर पर बुढ़ापे की ओर झुकते समय परिस्थितिवश व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो जाता है। उस समय ऐसा लगता है कि हर कोई उसकी भावनाओं से खेल रहा है।

दामोदर खड़से का उपन्यास 'खिड़कियाँ' वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। यह उपन्यास जीवन की सच्चाईयों को बहुत ही हल्के-फुल्के अंदाज़ में हमारे सामने प्रस्तुत करता है। दामोदर खड़से की 'खिड़कियाँ' अलग संसार में खुलती हैं।
यहाँ दामोदर खड़से ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को पिरोया है। अरुण प्रकाश की पत्नि के देहान्त के बाद वे एकाकीपन में जीने लगते हैं। वे एक पत्रिका शुरु करते हैं ताकि जीवन की नीरसता को मात दे सकें। उनकी पत्रिका का नाम 'एकान्त' है। अमेरिका में अपनी बेटी और दामाद से मिलने के बाद वे जब भारत लौटते हैं तो उन्हें अलग तरह का अहसास होता है।
इस पुस्तक में खिड़कियाँ खुलती हैं जो अरुण प्रकाश को नये संसार में ले जाती हैं। यहाँ से वे लोगों के जीवन को महसूस करते हैं, उन्हें जानने की कोशिश करते हैं।
'खिड़कियाँ' पढ़ते समय ऐसा लगता है कि पाठक लेखक के साथ वहीं मौजूद है। हर दृृश्य जैसे उसके सामने चल रहा है। पाठक स्वयं को जाग्रत करने की कोशिश करने लगेगा। यह उपन्यास उम्रदराजों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। रिटायर लोगों को इसे जरुर पढ़ना चाहिए।
यहाँ भावनाओं की एक तह खुलती जाती है। हर अहसास अपना-सा लगने लगता है। उपन्यास धीरे-धीरे ज़िन्दगी के अहसासों को बताता चलता है।
जब व्यक्ति अपनी इच्छा से अकेलापन चुनता है, तब वह 'एकान्त' पा जाता है। फिर इस 'एकान्त' में अकेले होकर भी खुश रहता है। ऐसे स्थति में वह स्वयं को तरोताज़ा, सकारात्मक और ऊर्जावान रखता है। अरुण प्रकाश ऐसा 'एकान्त' हासिल करने में यशस्वी हो जाते हैं। वे 'खिड़कियों' से कई लोगों के जीवन को अनुभव करता हैं। उन्हीं अनुभवों से वे अपने जीवन को देखते हैं -इसी से उन्हें एकान्त की प्राप्ति होती है। ऐसा ही एकान्त पाठक महसूस कर सकें, यही दामोदर खड़से बताना चाहते हैं और लगता है, यह बताने में वह पूर्णत: सफल हुए हैं।
खिड़कियाँ
लेखक : दामोदर खड़से
पृष्ठ : 192
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
लेखक : दामोदर खड़से
पृष्ठ : 192
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन