'छू लो आसमान' : प्रेरणादायक कहानियाँ जो ज़िन्दगी बदल देंगी

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महिलाएं बढ़ रही हैं,आसमान की ओर चल पड़ी हैं. रोक सको तो रोक लो!
प्रेरणाएँ कहीं से भी आ सकती हैं और किसी भी जगह से। उसके लिए जगह, वजह की भी जरुरत नहीं होती। अकसर प्रेरणाएँ ज़िन्दगी को निखारने का काम करती हैं। ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीने को उत्साहित करने का काम करती हैं प्रेरणाएँ। हम इंसानों को अनगिनत उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। हर मोड़ पर नयी चुनौती, नया जोखिम, नये अनुभव हासिल होते हैं। आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होना बेहद जरुरी है। यहाँ महिलाएँ हैं, उनके जज्बात हैं, उनकी कहानियाँ हैं जो हमें प्रेरित कर रही हैं।

रश्मि बंसल के विषय में एक बात जरुर कही जाती है -’वे प्रेरणा देती हैं जिसे लोग लम्बे समय तक याद रखते हैं.’ उनकी सभी पुस्तकें लाजवाब हैं। ‘छू लो आसमान’ उन साहसी और आत्मविश्वास से लबरेज महिलाओं की कहानी है जिन्होंने खुद को पहचाना और समाज के सामने एक मिसाल पेश की।

'छू लो आसमान' की लेखिका हैं रश्मि बंसल। पुस्तक का प्रकाशन वेस्टलैंड/यात्रा ने किया है तथा अनुवाद उर्मिला गुप्ता का है।

इस किताब को तीन हिस्सों में बाँटा गया है -
1. जिद्दी
2. बेशरम
3. बिंदास

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पहली कहानी रिंकी, कुसुम, किरण और मानसी की है जिन्होंने जिद की और जीत हासिल की खुद का भविष्य बदलने में। उन्होंने गाँव की दूसरी लड़कियों को प्रेरित किया कुछ नया करने के लिए। उन्होंने अपने गाँव के नियमों को बदल दिया। ‘उन्होंने बिना इजाजत एक छोटा-सा काम भी किया। और इसी काम ने उनके लिए एक नई दुनिया का दरवाजा खोल दिया।’ ये लडकियाँ फुटबॉल खेलती हैं और देश का नाम रौशन कर रही हैं। यह बदलाव मामूली नहीं, और यह बदलाव ज़िन्दगी को बदलने वाला है। यह दूसरों को प्रेरित करेगा ताकि वे भी आसमान में उड़ें और अपनी ज़िद पूरी करें।

चाहें राजस्थान की उषा चौधरी हों, छत्तीसगढ़ की मीना लाहरे, गुजरात की छाया सोलंकी, मध्य प्रदेश की राबिया खान या महाराष्ट्र की शीतल भाटकर, सभी ने ज़िद की और नया मुकाम पाया। ये महिलाएँ रिश्तों में बँधी थीं, मगर संभावनाएँ तलाश रही थीं। उन्होंने वही किया जो उन्होंने बेहतर समझा। उन्होंने वही कहा जो कहना चाहिए था।

मध्य प्रदेश की राबिया खान नेत्रहीन हैं। वह विश्वविद्यालय में बच्चों को कम्प्यूटर पढ़ाती हैं। उन्होंने अरबी कुरान को ब्रेल में परिवर्तित भी किया है। राबिया की कहानी किसी को भी हिला कर रख सकती है। यह उनकी ज़िद थी और समाज के लिए कुछ अलग करने का जुनून कि वे यह सब कर पायीं।

अदिति गुप्ता ने अपने दोस्त के साथ मिलकर ‘मेंसटूपीडिया’ की स्थापना की। उन्होंने पीरियड्स के लिए लोगों की मानसिकता को बदलने का बड़ा जिम्मा उठाया है। उनकी किताबें भारत की अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध हैं। स्कूलों में वे उन्हें फ्री बाँट कर वे युवाओं को जागरुक कर रहे हैं। यह बदलती सोच का नतीजा है जिसने समाज की सोच को बदला है।

कश्मीर की हाफिज़ा खान ने शिक्षा के क्षेत्र में जो काम किया वो सराहनीय है। यह उनके लिए आसान नहीं था क्योंकि यह मामला लड़कियों का था। वे जुटी रहीं और बदलाव हुआ, जिसका परिणाम सुखद रहा। उन्हें आज लोग ‘सिस्टरजी’ के नाम से पुकारते हैं।

ज्योति धावले ने वो किया जिसके लिए यह किताब पढ़ना बेहद जरुरी हो जाता है। वे एचआईवी पोजिटिव हैं और दूसरों को ज़िन्दगी के गुर सिखा रही हैं। एक सामाजिक संस्था की एम्बेसडर हैं। एचआईवी और एड्स जैसे विषयों पर खुलकर बोलती हैं, मगर वे यहाँ तक कैसे पहुँची और क्यों उनकी ज़िन्दगी नर्क बन गयी थी, यह किताब आपको बतायेगी।

80 साल की ‘पिज्जा ग्रैनी’ पद्मा श्रीनिवासन ने उम्रदराज़ी में एक नया मकसद ढूँढ लिया और अपनी ज़िन्दगी को नए मायने दिए। वे कहती हैं -
‘हम नारियल के पेड़ की जड़ में पानी देते हैं और वो वापस अपने सिरे से हम तक पानी पहुँचाता है। तो मैं यही कहूँगी कि आप देना बंद मत करो। आप दुआएँ ही पाओगे।’

इस पुस्तक में मोटरसाईकिल चलाने वाली लड़कियों की बात भी है जिसे पढ़ना रोचक और सुखद है।

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कई मायनों में यह किताब बेहद ख़ास है :
1. यह हमें जोश से भर देती है और ऐसा विश्वास दिलाती है कि ज़िन्दगी सबसे अनमोल है, उसे जाया न किया जाये। आगे बढ़ा जाये ताकि ज़िन्दगी से ज़िंदगियों को प्रेरित किया जाये।
2. हौंसला और खुद पर विश्वास सबसे बड़ी चीज़ होती है। ज़िन्दगी एक जंग की तरह है। यहाँ हर पल जूझना पड़ता है। ज़िन्दगी की जंग को जीतने के लिए खुद को जीतना बेहद जरुरी है।
3. किसी भी बड़े काम की शुरुआत छोटे काम से होती है।
4. तरक्की के लिए नज़रिया बदलना पड़ता है।
5. अनुभव से सीखना सबसे महत्वपूर्ण है। दूसरों से प्रेरित होकर भी नयी बातें सीखी जा सकती हैं।
6. हार मानकर पीछे हटना सबसे बड़ी कमजोरी है। इसलिए विजेता बनने के लिए मुश्किलों से जूझना पड़ता है।
7. रिश्तों और भावनाओं को सँभालकर रखना चाहिए। ये आड़े वक्त में काम आते हैं।
8. सपने देखना बुरा नहीं। सपने हकीकत में जरुर बदलते हैं, लेकिन उसके लिए मन में हौंसला और उड़ने की इच्छा होना बेहद जरुरी है।

रश्मि बंसल की यह किताब नहीं पढ़ी, तो क्या पढ़ा। क्योंकि ये महिलाएँ प्रेरणा से भरी हैं, जो ज़िन्दगी की सीख दे रही हैं। ताकि कुछ बेहतर हो, कुछ ख़ास हो, कुछ ऐसा जो भविष्य को उज्ज्वल कर दे।

लेखिका कहती हैं कि अपनी ज़िन्दगी की कमान सँभालकर, अपनी ताकत को आजमाइए। आप हालात, समाज या किसी दूसरे बाहरी तत्व की शिकार नहीं। वहीं जुनूनी, सकारात्मक और ताकतवर महिला बनिए जिसके लिए आपने जन्म लिया है।

"छू लो आसमान"
लेखिका : रश्मि बंसल
अनुवाद : उर्मिला गुप्ता
प्रकाशक : वेस्टलैंड / यात्रा बुक्स
पृष्ठ :  135