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तसलीमा नसरीन ने समाज में व्याप्त पुरुषवादी सोच और पुरुष तंत्र के हर पक्ष को उजागर किया है. |
पूर्वी देशों में तो स्त्रियों और बच्चियों की दशा और भी दयनीय है. उन्हें हर दिन किसी न किसी पुरुष की यौनेच्छा का शिकार होना पड़ता है फ़िर भी इस पुरुष संचालित समाज में पुरुष शिखर पर है. लेखिका ने पुरुषवादी समाज को नसीहत दी है और स्पष्ट किया है कि "यह विकृत मानसिकता के लोग हैं जो औरतों को देखकर अपनी कामेच्छा पर नियंत्रण नहीं रख पाते और बलात्कार जैसी अमानवीय घटना को अंजाम दे बैठते हैं".. इसे रोकने को लेकर भी लेखिका का मत स्पष्ट है. एक जगह उन्होंने लिखा है किकोई भी क़ानून या सज़ा इसे नहीं रोक पाएगी. जिस दिन से पुरुष बलात्कार करना बंद कर देगा ये उस दिन ही रुकेगी.
बलात्कार बंद होगा, कब बंद होगा इस प्रश्न का सबसे अच्छा उत्तर है -‘जिस दिन पुरुष बलात्कार करना बंद करेगा, उसी दिन बलात्कार बंद होगा.’ कब, किस समय बंद करेंगे -यह पूरी तरह से ही पुरुषों का मामला है. सम्मिलित रुप से तय करें कि इस दिन से या इस हफ्ते से या इस महीने से या इस साल से अपनी प्रजाति (प्रजाति) पर यह भयानक, वीभत्स अत्याचार वे अब और नहीं करेंगे.

तसलीमा नसरीन ने हमेशा ही सभी धर्मों में मुख्य रूप से इस्लाम में प्रचलित कट्टरपंथ और अंधविश्वासों पर कुठाराघात किया है जिसके लिए उन्हें इस्लामिक कट्टरपंथियों का आक्रोश सहना पड़ा यहाँ तक कि देश-निकाला भी दे दिया गया. वो आज भी एक निर्वासित जीवन जीने को मज़बूर हैं. अपने इस दर्द को भी उन्होंने बख़ूबी उकेरा है. बहुत हद तक यह आत्मकथात्मक शैली में लिखी गयी किताब है. इसके हर शीर्षक में लेखिका का दर्द उभरा है और समाज के हर पहलू का सच बिखरा है.
हमेशा ही लेखिका ने औरतों की आज़ादी, उनके अधिकार, स्त्री पुरुष साम्यवाद, जबरन थोपने वाली प्रथाओं और मानवाधिकार की लड़ाई लड़ी है और उन पर अपनी क़लम का तीखा प्रहार किया है. यह किताब भी इन्हीं बुराइयों के खिलाफ़ खड़ी दिखाई देती है.
~वंदना कपिल.
'निषिद्ध’
लेखिका : तसलीमा नसरीन
अनुवाद : सांत्वना निगम
संपादन : विमलेश त्रिपाठी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 272
लेखिका : तसलीमा नसरीन
अनुवाद : सांत्वना निगम
संपादन : विमलेश त्रिपाठी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 272