दिल्ली चलो : नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रेरक गाथाएँ

subhash chandra bose dilli chalo
सुभाषचंद्र बोस के संघर्ष को पुस्तक में लघु कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है.
हर मनुष्य संकल्पना करता है कि वह पृथ्वी पर अपनी ऐसी छवि बनाये कि उसे सदियों तक याद किया जाता रहे. हर व्यक्ति की आकांक्षा होती है कि वह ऐसे कार्य करे, जिससे कि वह महान बन जाए. व्यक्ति महान धन अथवा कुल से नहीं, बल्कि अपने दिव्य स्वभाव और भव्य आचरण से बनता है. इस पृथ्वी पर अनेक ऐसी महान विभूतियाँ विद्यमान हैं, जो अपने कार्यों और सदगुणों से आज भी लोगों के हृदय में अपनी जगह बनाए हुए हैं. महान विभूतियाँ मरती नहीं हैं, समाप्त नहीं होती हैं, बल्कि वे अपने कृत्यों से दीपक की उस लौ को जलाए रखती हैं, जो कई लोगों को दिशा दिखाती हैं.

सुभाषचंद्र बोस का दिव्य व्यक्तित्व एक दीपक नहीं, बल्कि एक सूरज बनकर हम सब को रोशनी प्रदान कर रहा है. उन्होंने कम उम्र में ही अपनी प्रतिभा व अस्तित्व को देश पर समर्पित करने का प्रण कर लिया था. अनेक अत्याचार और बाधाओं के बावजूद उन्होंने अपने आप को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया, बल्कि अपने अस्तित्व को भी ऐसी मजबूती दी, जो धूप में भी छाँव की अनुभूति कराती है. सुभाषचंद्र बोस के जीवन का केवल एक लक्ष्य था - आज़ादी. उन्होंने हर एक भारतीय से कहा,"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।" सुभाषचंद्र बोस बड़े-से-बड़े जोखिम से टक्कर लेते थे, क्योंकि वे इस बात को जानते थे कि बिना जोखिम की सफलता ऐसी विजय की तरह है, जिसमें गौरव न हो.
दिल्ली चलो : नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रेरक गाथाएँ

सुभाषचंद्र बोस के अचल विश्वास और कार्यों ने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था. उस समय सुभाषचंद्र बोस का अस्तित्व ही ब्रिटिशों के लिए ख़तरे की घंटी बन गया था. उन्हें ज्ञात हो गया था कि सुभाषचंद्र बोस अब भारत में उनके साम्राज्य को अधिक दिनों तक न रहने देंगे और हुआ भी यही. सुभाषचंद्र बोस ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतमाता के चरणों में न्योछावर कर दिया.

सुभाषचंद्र बोस के जीवन के साथ ही उनके संघर्ष को इस पुस्तक में लघु कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है. यदि पाठक सुभाषचंद्र बोस के विराट व्यक्तित्व की झलक इस पुस्तक माध्यम से पाएँगे तो मैं अपना प्रयास सफल समझूँगी।

-रेनू सैनी.

"दिल्ली चलो : नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रेरक गाथाएँ"
लेखिका : रेनू सैनी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन 
पृष्ठ : 248