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एक वर्ग विशेष के जीवन का वो सच जिसे समाज के हर सामान्य व्यक्ति को अवश्य जानना चाहिए. |
जब सामान्य जनजीवन उनकी हर भावना, संवेदना और इच्छाओं को दरकिनार कर उन्हें हेय दृष्टि से देखता है तब वो भूल जाता है कि वो भी इंसान हैं, उनकी भी आवश्यकताएँ हैं, उनमें भी आत्मसम्मान है, वो भी समाज का हिस्सा हैं और सम्मान से जीना चाहते हैं।
लेखक ने अपनी किताब के माध्यम से एक मजबूत संदेश दिया है कि अगर हम चाहें और किन्नरों को भी उचित शिक्षा और सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँ तो वे भी एक सामान्य व्यक्ति की तरह घर परिवार और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह बख़ूबी कर सकता है।

कहानी का आरंभ ग्रामीण परिवेश से होता है जिससे लेखक का ग्राम्य जीवन के प्रति प्रेम सहज ही उजागर होता है जो अंत तक किसी न किसी रूप में हमें पढ़ने को मिलता है।
ज़िन्दगी 50-50 का ताना बाना दो किन्नर पात्रों हर्षा और सूर्या के इर्द-गिर्द बुना गया है। हर्षा अनमोल नामक एक पात्र का भाई है। जहाँ अनमोल सामान्य है वहीं हर्षा किन्नर। अनमोल बचपन से ही हर्षा के साथ घर में होने वाले दुर्व्यवहार को देखता है। हर्षा धीरे-धीरे बड़ा होता है और उसे हर जगह ज़िल्लत और हिक़ारत का सामना करना पड़ता है। किन्नर होने की सजा भुगतनी पड़ती है जिसमें उसका कोई दोष नहीं। अनमोल धीरे-धीरे सारी बातों को समझता है। उसे अपने भाई से हमदर्दी है। वो अपने पिता से खासा नाराज़ रहता है जो हमेशा हर्षा को बिना वज़ह प्रताड़ित करते रहते हैं।
किन्नर संतान को जन्म देना भी एक अभिशाप से कम नहीं है।
"इतना आसान न है समाज में एक हिजड़े का बाप बनकर जीना। सूई की नोक पर रहना होता है।" इन शब्दों से एक किन्नर के बाप का दर्द उभरकर सामने आता है।
कई घटनाक्रमों को समेटे कहानी एक रफ़्तार से आगे बढ़ती है। बाद में अनमोल भी एक किन्नर संतान का पिता बनता है जिसका नाम सूर्या है। हर्षा के साथ हुआ अन्याय और दुर्व्यवहार उसके ज़ेहन में बचपन से ही घर बना लिया था। वो अपने भाई के लिए तो कुछ नहीं कर सका था लेकिन अपने बेटे के लिए फैसला करता है कि उसके लिए हर क़दम पर समाज से टकराएगा और अपने बेटे को अधूरी नहीं बल्कि एक पूरी ज़िंदगी जीने के क़ाबिल बनाएगा।
लेखक भगवंत अनमोल ने किन्नर समुदाय के दुख दर्द उनकी समस्याओं को उन्हीं के चश्मे से देखा है और अपनी किताब के माध्यम से उनका पक्ष मज़बूत तरीक़े से रखने की कोशिश की है जिसमें वो शत प्रतिशत सफल हैं। लेखक लेखनी के प्रति पूरी तरह ईमानदार है। कहानी में कहीं भी कुछ भी बनावटी नहीं दिखता। हर घटना अपने स्वाभाविक रूप में उभरकर पाठक के मन पर असर करती है।
किन्नर समुदाय के लोगों की भावनाएँ , ज़रूरतें, महत्वाकांक्षायें और उनकी समस्याओं आदि को अगर क़रीब से जानना हो, उन्हें महसूस करना हो, तो ज़िन्दगी 50-50 ज़रूर पढ़नी चाहिए। यह मात्र एक किताब ही नहीं अपितु एक वर्ग विशेष के जीवन का वो सच है जिसे समाज के हर सामान्य व्यक्ति को अवश्य जानना चाहिए।
~वंदना कपिल.
"ज़िन्दगी 50-50"
लेखक : भगवंत अनमोल
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़
पृष्ठ : 208
लेखक : भगवंत अनमोल
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़
पृष्ठ : 208