ज़िन्दगी 50-50 : किन्नरों की ज़िन्दगी पर एक बेहतरीन कृति

zindagi 50 50 bhagwant anmol
एक वर्ग विशेष के जीवन का वो सच जिसे समाज के हर सामान्य व्यक्ति को अवश्य जानना चाहिए.
एक ऐसे वर्ग विशेष की ज़िंदगी पर आधारित है जिसे समाज का सामान्य वर्ग एक अलग दृष्टिकोण से देखता है। लेखक भगवंत अनमोल ने अपनी इस कृति के माध्यम से समाज के उस तबके के लोगों के जीवन, उनकी इच्छाएँ, महत्वाकांक्षाएँ, ज़रूरतें और भावनाएँ दुनिया के सामने लाने की कोशिश की है जिन्हें हम किन्नर या हिजड़ा जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं।

जब सामान्य जनजीवन उनकी हर भावना, संवेदना और इच्छाओं को दरकिनार कर उन्हें हेय दृष्टि से देखता है तब वो भूल जाता है कि वो भी इंसान हैं, उनकी भी आवश्यकताएँ हैं, उनमें भी आत्मसम्मान है, वो भी समाज का हिस्सा हैं और सम्मान से जीना चाहते हैं।

लेखक ने अपनी किताब के माध्यम से एक मजबूत संदेश दिया है कि अगर हम चाहें और किन्नरों को भी उचित शिक्षा और सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँ तो वे भी एक सामान्य व्यक्ति की तरह घर परिवार और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह बख़ूबी कर सकता है।
zindagi 50 50 book review

कहानी का आरंभ ग्रामीण परिवेश से होता है जिससे लेखक का ग्राम्य जीवन के प्रति प्रेम सहज ही उजागर होता है जो अंत तक किसी न किसी रूप में हमें पढ़ने को मिलता है।

ज़िन्दगी 50-50 का ताना बाना दो किन्नर पात्रों हर्षा और सूर्या के इर्द-गिर्द बुना गया है। हर्षा अनमोल नामक एक पात्र का भाई है। जहाँ अनमोल सामान्य है वहीं हर्षा किन्नर। अनमोल बचपन से ही हर्षा के साथ घर में होने वाले दुर्व्यवहार को देखता है। हर्षा धीरे-धीरे बड़ा होता है और उसे हर जगह ज़िल्लत और हिक़ारत का सामना करना पड़ता है। किन्नर होने की सजा भुगतनी पड़ती है जिसमें उसका कोई दोष नहीं। अनमोल धीरे-धीरे सारी बातों को समझता है। उसे अपने भाई से हमदर्दी है। वो अपने पिता से खासा नाराज़ रहता है जो हमेशा हर्षा को बिना वज़ह प्रताड़ित करते रहते हैं।

किन्नर संतान को जन्म देना भी एक अभिशाप से कम नहीं है।

"इतना आसान न है समाज में एक हिजड़े का बाप बनकर जीना। सूई की नोक पर रहना होता है।" इन शब्दों से एक किन्नर के बाप का दर्द उभरकर सामने आता है।

कई घटनाक्रमों को समेटे कहानी एक रफ़्तार से आगे बढ़ती है। बाद में अनमोल भी एक किन्नर संतान का पिता बनता है जिसका नाम सूर्या है। हर्षा के साथ हुआ अन्याय और दुर्व्यवहार उसके ज़ेहन में बचपन से ही घर बना लिया था। वो अपने भाई के लिए तो कुछ नहीं कर सका था लेकिन अपने बेटे के लिए फैसला करता है कि उसके लिए हर क़दम पर समाज से टकराएगा और अपने बेटे को अधूरी नहीं बल्कि एक पूरी ज़िंदगी जीने के क़ाबिल बनाएगा।

bhagwant anmol author

लेखक भगवंत अनमोल ने किन्नर समुदाय के दुख दर्द उनकी समस्याओं को उन्हीं के चश्मे से देखा है और अपनी किताब के माध्यम से उनका पक्ष मज़बूत तरीक़े से रखने की कोशिश की है जिसमें वो शत प्रतिशत सफल हैं। लेखक लेखनी के प्रति पूरी तरह ईमानदार है। कहानी में कहीं भी कुछ भी बनावटी नहीं दिखता। हर घटना अपने स्वाभाविक रूप में उभरकर पाठक के मन पर असर करती है।

किन्नर समुदाय के लोगों की भावनाएँ , ज़रूरतें, महत्वाकांक्षायें और उनकी समस्याओं आदि को अगर क़रीब से जानना हो, उन्हें महसूस करना हो, तो ज़िन्दगी 50-50 ज़रूर पढ़नी चाहिए। यह मात्र एक किताब ही नहीं अपितु एक वर्ग विशेष के जीवन का वो सच है जिसे समाज के हर सामान्य व्यक्ति को अवश्य जानना चाहिए।

~वंदना कपिल.

"ज़िन्दगी 50-50"
लेखक : भगवंत अनमोल
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़
पृष्ठ : 208