कविता की पुकार : राष्ट्रकवि दिनकर की श्रेष्ठ कविताओं का संग्रह

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रामधारी सिंह दिनकर ने तैंतीस काव्य-संग्रहों के द्वारा हिन्दी काव्य जगत को समृद्ध किया है.
वाणी प्रकाशन ने हिन्दी के सभी मूर्धन्य कवियों की रचनाओं का एक सिलसिला शुरु कर काव्य प्रेमी हिन्दी भाषियों को सुनहरा मौका प्रदान किया है। इसी श्रृंखला में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पचास चुनिंदा कविताओं का संकलन भी प्रकाशित किया है जिसके संकलनकर्ता अरविन्द कुमार सिंह हैं।

दिनकर जी ने तैंतीस काव्य-संग्रहों के द्वारा हिन्दी काव्य जगत को समृद्ध किया है, वहीं उन्होंने 25 गद्य पुस्तकों की रचना कर गद्य साहित्य की भी सेवा की है।

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वाणी प्रकाशन ने जिन चुनिंदा कविताओं को प्रकाशित किया है उनमें देश-प्रेम, मजदूरों और किसानों की दुर्दशा, अंग्रेजी शासन से लेकर आज़ाद भारत तक के राजनीतिक हालात पर दिनकर जी की संवेदनशीलता की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। उनके काव्य में भक्तिकाल और छायावादी काव्य कला से एक अलग तरह की कविता का प्रवाह है। छन्द और अलंकारिकता के बँधन से मुक्त उनकी कवितायें लयात्मकता के साथ एक नये लेकिन आकर्षक काव्य की छवि प्रस्तुत करती हैं।

उनकी कवितायें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीयों में नवस्फूर्ति और जन जागरण की ज्वाला बनीं। किसी समय उन्होंने गाँधी जैसे नेता को आन्दोलित करने का भी आहवान किया था-
हिल रहा धरा का शीर्ष मूल, जल रहा दीप्त सारा खगोल।
तू सोच रहा क्या अचल मौन, ओ द्विधाग्रस्त शार्दूल बोल?

किसानों की तत्कालीन दुर्दशा का स्पष्ट चित्रण (हुंकार, 1937) में दिनकर जी ने किया है। देखें -
जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है;
छूटे कभी संग बैलों का, ऐसा कोई याम नहीं है।
मुख में जीभ, शक्ति भुज में, जीवन में सुख का नाम नहीं है,
वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं हैं।

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नीलकुसुम से एक बहुत लोकप्रिय कविता भी संकलन में है, देखिए -
आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

'कविता की पुकार’ संकलन में दिनकर जी के बहुआयामी काव्य की चुनिंदा और उत्कृष्ट कविताएँ हैं जिन्हें काव्य प्रेमियों को पढ़ने से उनकी काव्य प्रतिभा का प्रत्यक्ष अनुभव होगा।

रामधारी सिंह दिनकर की प्रथम काव्यकृति 'विजय  सन्देश’ है। यह सन् 1928 में प्रकाशित हुई, जब दिनकर जी मात्र 20 वर्ष के थे। सन् 1929 में उनकी दूसरी काव्यकृति 'प्रणभंग’ का प्रकाशन हुआ। 'रेणुका’, 'हुंकार’,'रसवन्ती’, 'कुरुक्षेत्र’, 'सामधेनी’, 'सूरज का ब्याह’, 'सीपी और शंख’, 'उर्वशी’, 'परशुराम की प्रतीक्षा’, 'हारे को हरिनाम’, 'रश्मि लोक’ सहित पैंतीस काव्य-संग्रहों के द्वारा दिनकर जी ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। किन्तु इसके अलावा 25 गद्य पुस्तकों की रचना भी की है।

"कविता की पुकार"
रामधारी सिंह दिनकर
संकलन : अरविन्द कुमार सिंह
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 168