पुस्तक समीक्षा : वाजपेयी -एक राजनेता के अज्ञात पहलू

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लेखक ने गहन अध्ययन, रिसर्च के बाद वाजपेयी की इस बेशकीमती जीवनी को तैयार किया है.
‘‘उल्लेख एन.पी. ने देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन का विश्लेषण करते हुए स्वतंत्र भारत की राजनीति के सात से ज्यादा दशकों का शानदार विवरण लिखा है। अटल बिहारी वाजपेयी पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल (1999-2004) पूरा किया है। वाजपेयी एक उत्कृष्ट वक्ता थे जो 2009 में स्वास्थ्य खराब हो जाने से पहले तक, करीब आधी शताब्दी तक अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं में शुमार रहे। सीमित लोगों को आकर्षित करने वाले संकीर्ण राजनीतिक एजेंडा वाली छोटी-सी हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी को वर्तमान की भारतीय संसद की सबसे बड़ी पार्टी बनाने की योजना तैयार करने में उनका योगदान रहा।’’

‘वाजपेयी: एक राजनेता के अज्ञात पहलू’ के लेखक उल्लेख एन.पी. हैं। पुस्तक को मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित किया है। यह 'The Untold Vajpayee: Politician and Paradox' का हिन्दी अनुवाद है। महेन्द्र नारायण सिंह यादव ने सरल और स्पष्ट भाषा में हिन्दी अनुवाद किया है।

अटलजी आज हमारे बीच नहीं हैं। उनकी राजनीतिक क्षमता, उनके विचार और व्यक्तित्व से यह पुस्तक हमें बहुत अच्छी तरह से परिचित कराती है। लेखक ने गहन अध्ययन, रिसर्च के बाद इस बेशकीमती जीवनी को तैयार किया है। वाजपेयी पर लिखी गयी यह पुस्तक सिलसिलेवार ढंग से उनके राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालती हुई आगे बढ़ती है। बीच-बीच में रोचक किस्से और घटनाएँ हमें उस शख्सियत से रुबरु कराते हैं जिसे हम शायद उतना नहीं जानते।

किताब की कुछ रोचक बातें देखें:

◼️ वाजपेयी की माता और पिता के प्रथम नाम संयोग से एक जैसे थे। माता कृष्णा देवी और पिता कृष्ण बिहारी थे।

◼️ वाजपेयी के पिता ग्वालियर के सरकारी स्कूल में हैडमास्टर थे। वे हिन्दी और अंग्रेजी दोनों पर समान अधिकार रखते थे। वे कवि थे और भाषण कला में उन्हें महारथ हासिल थी। वाजपेयी ने प्रखर वक्ता बनने की प्रेरणा अपने पिता से सीखी।

◼️परिवार में बाल अटल के कविता-प्रेम की चर्चा होती रहती थी।

◼️ वाजपेयी स्कूल के दिनों से ही आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे थे।

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◼️ स्कूल में उनकी दोस्ती प्रदीप से हुई जो बाद में कवि प्रदीप के नाम से मशहूर हुए। कवि प्रदीप ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों..’ नामक चर्चित देशभक्ति गीत लिखा।

◼️ कॉलेज के दिनों में वे गोपालदास सक्सेना के मित्र बने। गोपालदास बाद में ‘नीरज’ के नाम से मशहूर हुए। गोपालदास नीरज का कुछ समय पहले देहान्त हुआ है।

◼️ वाजपेयी कुछ समय के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई के सदस्य बन गए थे। वे वामपंथी विचाराधारा से भी प्रभावित हुए थे।

◼️ गाँधी जी के आंदोलनों के दौरान वाजपेयी के पिता इस बात को लेकर चिंतित थे कहीं उनका बेटा गाँधी से प्रभावित होकर राजनीति में न आ जाए। उन्होंने युवा अटल पर उनका असर महसूस किया था।

◼️ 27 अगस्त 1942 को वाजपेयी और उनके भाई प्रेम को पुलिस ने पकड़कर हवालात में डाल दिया। आजादी के बाद उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला लेकिन अंग्रेजी की दिग्गज पत्रिका फ्रंटलाइन ने वाजपेयी का साक्षात्कार छापा जिसमें खुद उन्होंने खुलासा किया कि वे केवल ‘भीड़ का हिस्सा’ थे और 27 तारीख को बटेश्वर में हुई हिंसक घटनाओं में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।

◼️ ग्वालियर में स्नातक की पढ़ाई के दौरान वाजपेयी की मुलाकात राजकुमारी से हुई। राजकुमारी ने किसी ओर से शादी की लेकिन वे दोनों भारतीय राजनीति के सर्वाधिक गैर-परंपरागत युगल बने। अटल ने उनकी छोटी बेटी नमिता को गोद लिया और पाँच दशकों तक एक घर में साथ रहे। राजकुमारी कौल के पति की मृत्यु के बाद भी वे वाजपेयी के साथ रहीं। वाजपेयी का एक कथन मशहूर रहा,‘अविवाहित हैं, ब्रह्मचारी नहीं।’

◼️ वाजपेयी आर्य समाज से भी खासे प्रभावित रहे। वे आर्य समाज की शाखा से भी कुछ समय तक जुड़े थे।

◼️ वाजपेयी अच्छा खाना बनाना जानते थे। वे आरएसएस की अपनी संबद्धता के दौरान सीखे अनुभवों के कारण खुद ही खाना बनाने लगे और जल्द ही इस काम में उन्हें महारत हासिल हो गई।


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◼️ वाजपेयी राजनीति शास्त्र में एमए गोल्ड मेडलिस्ट थे।

◼️ 1950 के दशक के अंत के आसपास वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के स्टेनोग्राफर, सचिव, अनुवादक और सहायक, सबकुछ बन गए।

◼️ 1955 में लोकसभा उपचुनाव में जनसंघ के उम्मीदवार के रुप में वाजपेयी तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 28 प्रतिशत वोट मिले।

◼️ 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव में वाजपेयी बलरामपुर से चुनाव जीते। उन्हें पार्टी ने तीन सीटों से लड़ाया था।

◼️ भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने विदेश से आए किसी गणमान्य से परिचित कराते हुए कहा था,‘यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।’ लेकिन वाजपेयी संसद में नेहरु पर तीखे हमले करने से पीछे नहीं रहे।

◼️ आरएसएस नेता और जनसंघ के संस्थापक सदस्य बलराज मधोक और वाजपेयी में कटुता रही। कारण था वाजपेयी का बढ़ता कद। बाद में मधोक को ही पार्टी से बाहर निकाल दिया गया।

◼️ 96 साल की उम्र में अपनी मौत से 7 साल पूर्व 2009 में मधोक ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वाजपेयी, आडवाणी, नानाजी देशमुख और के.आर. मलकानी ने जनसंघ को बेहिसाब नुकसान पहुँचाया।

◼️ 1996 में नौकरशाह से राजनीतिज्ञ बने एन.के. सिंह ने कहा था कि वाजपेयी का प्रधानमंत्रित्व काल देश के लिए विनाशकारी है। वो मूल रुप में कांग्रेस का आदमी है।

ये चंद रोचक बातें किताब के शुरुआती 50 पन्नों में हैं। यह पुस्तक 200 पन्नों की है।

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लेखक उल्लेख एन.पी. की इस पुस्तक को बारीकी से पढ़ा जाए तो अनगिनत अज्ञात पहलू हमारे सामने होंगे जिनका जिक्र शायद कम होता है या उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। यह पुस्तक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की संदिग्ध मौतों का भी उल्लेख करती है। साथ ही बलराज मधोक से अटल बिहारी वाजपेयी की कटुता पर तफसील से प्रकाश डालती है। वाजपेयी का एक अलग तरह का प्रभाव था और वे लालकृष्ण आडवाणी के सहयोग से राजनीति में आगे बढ़ रहे थे।

‘वाजपेयी ने जल्द ही अपने विरोधियों को मात देते हुए एक जादूगर-सी प्रतिष्ठा अर्जित कर ली। वाजपेयी के साथ उनकी सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा गर्व से इस बात की पुष्टि करते हैं। उनका मानना है कि वाजपेयी हर तरह के षड़यंत्रकारियों को मात देने के विशेषज्ञ रहे।’

इमरजेंसी के दौरान जेल में बंद वाजपेयी ने मजेदार बात कही थी। उन्होंने हँसकर कहा था,‘अब इंदिरा गाँधी मुझे खिलाएँगी और वही कपड़े भी देंगी।’

किताब बताती है कि वाजपेयी ने भाजपा को ऐसी पार्टी के तौर पर लोगों के बीच ले जाने में कोई कमी नहीं रखी जो भारत के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ती है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, और जो कांग्रेस का एक लोकतांत्रिक विकल्प है। हालांकि वाजपेयी के जमाने में कांधार में आतंकियों को छोड़ा गया, संसद पर हमला हुआ और करगिल का युद्ध हुआ जिसमें भारत के नौजवान सैनिक मारे गए। उनके कार्यकाल के दौरान भारत ने पोखरण में परमाणु विस्फोट कर दुनिया को चौंकाया था।

उल्लेख एन.पी. ने एक अध्याय में वाजपेयी की गोद ली बेटी के पति रंजन भट्टाचार्य का जिक्र किया है। लिखा है कि आउटलुक पत्रिका में ‘रिंगिग द पीएमओ’ (पीएमओ में हेराफेरी) नामक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया कि पीएमओ में एक खास तिकड़ी का सिक्का चलता है। उसके बाद प्रकाशित ‘वाजपेयीज़ एच्लीज़ हील’ (वाजपेयी की कमज़ोर नस) में भट्टाचार्य जिन सरकारी सौदों में शामिल थे उनकी सूची दी गई थी जिनमें हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट थे। उसके बाद आउटलुक के मालिक पर इनकम टैक्स के छापे पड़े। इसे मीडिया का उत्पीड़न करार दिया गया। विपक्ष तथा कई मीडिया संस्थान पत्रिका के समर्थन में आए। संपादक विनोद मेहता को मजबूर किया गया कि वह माफी मांगें।

गुजरात में गोधरा कांड के बाद नरेन्द्र मोदी से वाजपेयी ने ‘राजधर्म का पालन’ करने को कहा था। जून 2002 में 'टाइम' मैगज़ीन ने वाजपेयी की कथित स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर कई बातें लिखीं जिन्हें पढ़कर लोग हैरान थे। पत्रिका ने उन्हें ‘व्हिस्की’ का लुत्फ उठाने वाला बताया। लिखा,‘वह कमजोर अविवाहित व्यक्ति डगमगाया और खोया-खोया लगता है, वृद्ध साधु से कहीं ज़्यादा एक आम बूढ़ा आदमी।’ साथ ही उनकी कमजोर होती याद्दाश्त पर भी टिप्पणी की गयी थी।

2004 में भाजपा की हार हुई और उसे दस साल तक सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ा।

‘लेकिन इतिहास भी तुलना के ज़रिए, वर्तमान को अपने ही विचित्र तरीके से देखता है। इस लिहाज से, वाजपेयी का इतिहास बार-बार अपने आप को कभी स्मृतियों, कभी संदर्भों तो कभी झटकों के तौर पर प्रबल रुप से दोहराता रहता है। ग्वालियर के एक छोटे से शहर के स्कूल टीचर के बेटे से लेकर, आर्य समाज का सदस्य बनने, आरएसएस की पूर्णकालिक सदस्यता, जनसंघ का नेता, सांसद, भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष, विपक्ष के नेता और फिर पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनने तक जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया, वाजपेयी के सबसे अच्छे वर्ष सर्वश्रेष्ठ थे, विशेष रुप से उनका आखिरी दौर।’

"वाजपेयी - एक राजनेता के अज्ञात पहलू"
लेखक : उल्लेख एन.पी.
अनुवाद : महेन्द्र नारायण सिंह यादव
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस