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यह पहला प्रयास आपको सुखद अनुभूति करायेगा जिसे लंबे समय तक महसूस किया जा सकता है. |
युवा कवि अजय गुप्ता का पहला कविता संग्रह ‘रंगोली’ अलग-अलग रंगों से बना खूबसूरत संग्रह है जिसमें उन्होंने जीवन की बारीकियों को अपनी कूची से कागज़ पर उकेरा है। अनुज्ञा बुक्स ने इसे हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित किया है।
इस संग्रह में 85 कविताओं को दस खण्डों में लिखा गया है। अजय ने समाज के रंगों का अनुभव किया है। एक रचनाकार का पहला प्रयास आपको सुखद अनुभूति करायेगा जिसे लंबे समय तक महसूस किया जा सकता है।
पहले भाग ‘पुराणों के रंग’ में ‘शिव पूर्ण विज्ञान’ की पंक्तियाँ देखिए -
तुम्हीं सृजन तुम्हीं सृष्टा
तुम्हीं दृश्य तुम्हीं द्रष्टा
तुम्हीं प्रकाश तुम्हीं तम
तुम्हीं यथार्थ तुम्हीं भ्रम
तुम निर्माण तुम्हीं निर्माता
तुम संविधान तुम्हीं विधाता
इसी भाग से ‘द्रोपदी’ कविता को पढ़ना चाहिए। यह कविता समाज के लिए आईना है।
‘अन्तर्मन के रंग’ की कविता ‘अन्धविश्वास’ में अजय गुप्ता ने कम शब्दों में अच्छी परिभाषा दी है। पढ़ें -
जहाँ बुद्धि
साथ छोड़ दे।
जहाँ पर हो
आत्मविश्वास का अंत।
वहीं से होता है
अन्धविश्वास का
प्रारम्भ।
कवि ने समाज में चल रही उथलपुथल को संग्रह के दूसरे भाग में बयान किया है। एक जगह वे कहते हैं -
मैं क्या हूँ...
मैं टुकड़ों-टुकड़ों में
विभाजित हो चुका
समाज हूँ।
‘प्रकृति के रंग’ खण्ड में कवि ने प्रकृति पर हो रहे अत्याचार पर चर्चा की है। उन्होंने बहुत ही सरलता से अपनी बात रखी है।
अजय ने शब्दों की कारीगरी से काव्य को हरा-भरा और पढ़ने में सुकून-भरा किया है। उनकी कविताएँ बोझिल बिल्कुल नहीं लगतीं। वे उत्साहित होकर, डूबकर, एक-एक शब्द को सूक्ष्मता से गूँथकर अपनी रचनाओं को रचते हैं। हर खण्ड का अपना महत्व है। हर खण्ड का अलग रंग है। तभी यह कविता संग्रह ‘रंगोली’ है।
‘समाज के रंग’ में समाज और राजनीति पर प्रकाश डाला गया है। ‘आज की राजनीति’ की पंक्तियाँ देखिए -
राजनीति हुई अनीति अब,
कूटनीति हुई कुनीति अब।
वचन आश्वासन में फँस गया,
दायित्व सिंहासन में बस गया।
अजय की यह कविता सचमुच आज की राजनीति और सत्ता के मद में चूर राजनेताओं पर प्रहार है। हर क्षेत्र में राजनीति समाज को प्रभावित कर रही है।
किसानों की समस्याओं पर लिखी चंद पक्तियों में कवि ने किसान की वर्तमान दशा का जबरदस्त तरीके से वर्णन किया है। देखिए -
भूख से मर जाता
है सबका अन्नदाता
उलझे हैं
नियम कानून में
उसके भाग्य विधाता।
‘बेटियाँ’ कविता में सच बयान किया है अजय गुप्ता ने। पढ़ें ये पंक्तियाँ -
आकाश बस इक बार दे के
देख तो इनको ज़रा
परवाज़ पर तुम कह न दो
कि हैं कयामत बेटियाँ।
अजय की ग़ज़ल भी दिल को छू जाती है जिसमें ज़माने की हकीकत पढ़ी जा सकती है। देखिए -
बेकारी और बर्बादी बड़ा मसला हुआ होगा
बेकारों को इकट्ठे कर बड़ा जलसा हुआ होगा।
जिसे बासी बता कर तुम सड़क पर फैंक आये थे
घिरे ग़ुरबत में बच्चों का वही खाना हुआ होगा।
गरीबों को सताने की रवायत को भुलाया हो
सियासत में न ऐसा भी कोई नेता हुआ होगा।
कहना गलत नहीं होगा कि अजय के पास हर रंग का खज़ाना है। वे कविता, गीत, ग़ज़ल को लिखते हैं जिसे पढ़ना एक अलग तरह का अनुभव है। कविताएँ पाठक को सोचने पर मजबूर करती हैं।